वर्तमान में अखिलेश यादव को प्रत्याशियों के सिलेक्शन में समस्या हो रही है! लोकसभा चुनाव के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी ने पूरा जोर लगा दिया है। पहले चरण के मतदान में महज कुछ दिन ही बचे रह गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ से ताबड़तोड़ जनसभाएं की जा रही हैं। वहीं सियासी लिहाज से सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी की स्थिति कन्फ्यूजन की बनी हुई है। राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा है कि सपा और कांग्रेस का विपक्षी गठबंधन अभी तक उधेड़बुन में ही हैं। अखिलेश यादव ने आठ से नौ जगहों पर प्रत्याशी बदल दिए। उनके कन्फ्यूजन की स्थिति पर सत्तारूढ़ भाजपा भी निशाना साधने और मौज लेने से पीछे नहीं रह रही है। इंडिया गठबंधन के तहत शीट शेयरिंग में कांग्रेस 17 और समाजवादी पार्टी 63 सीटों पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस की तरफ से अभी भी कई सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया जाना बाकी है। इनमें अमेठी और रायबरेली जैसी गांधी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली सीटें भी शामिल हैं। लेकिन सपा ने उम्मीदवारों में लगातार बदलाव करते हुए असमंजस की स्थिति बना दी है। अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव से ऐन पहले कुछ सीटों पर कैंडिडेट्स का नाम बदल रही है। पार्टी यहां 8 सीटों पर कई बार अपने उम्मीदवारों की ही अदला बदली में फंसी हुई है। राजनीतिक विश्लेषक अखिलेश के इस कदम को सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताते हैं। वहीं कई लोग इसे सपा की कन्फ्यूज पॉलिटिक्स का हिस्सा करार देते हैं।
समाजवादी पार्टी की तरफ से मेरठ, नोएडा, बागपत, बदायूं, मुरादाबाद, रामपुर, मिश्रिख के बाद अब लखनऊ में भी सपा के कैंडिडेट पर रार मची है। अखिलेश ने चुनाव के लिए पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का जो फॉर्म्युला सेट किया, उसी में पलीता लगता नजर आ रहा है। कई सीटों पर सपा अपने ही चक्रव्यूह में फंसी नजर आ रही है। एक बार जिस प्रत्याशी को टिकट दिया जाता है, फिर उसको लेकर पार्टी में विद्रोह की स्थिति के मद्देनजर दूसरे को टिकट दे दिया जाता है। मेरठ लोकसभा सीट में सबसे पहले अखिलेश ने सीनियर वकील भानु प्रताप सिंह को टिकट दिया। फिर विधायक अतुल प्रधान को प्रत्याशी बनाया गया। अतुल ने नामांकन कर दिया। लेकिन 24 घंटे बाद फिर टिकट बदलकर सुनीता वर्मा को दिया गया। ऐसे ही गौतमबुद्धनगर सीट से 16 मार्च को महेंद्र नागर प्रत्याशी बने। फिर 20 मार्च को उनकी जगह राहुल अवाना को टिकट दिया गया। 28 मार्च को एक बार फिर महेंद्र नागर प्रत्याशी बना दिए गए। कुछ ऐसा ही हाल बागपत में भी हुआ। यहां पहले जाट बिरादरी के मनोज चौधरी को सपा का टिकट मिला। फिर गुरुवार को प्रत्याशी बदलकर अमरपाल शर्मा को मैदान में उतारा गया। मुरादाबाद में भी 24 मार्च को वर्तमान सांसद एसटी हसन को टिकट मिला। 26 को उन्होंने पर्चा भरा। फिर 27 को विधायक रुचि वीरा को सिंबल देकर नामांकन करवा दिया गया। लखनऊ में भी रविदास मेहरोत्रा की जगह दूसरे प्रत्याशी को टिकट दिए जाने की चर्चा उठने लगी है।
उधर बदायूं में शिवपाल यादव भी अपने बेटे को विरासत सौंपने की जुगत में लगे हुए हैं। यहां पहले धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया गया था। फिर धर्मेंद्र को आजमगढ़ भेजकर यहां से शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया गया। अब शिवपाल अपनी जगह बेटे आदित्य यादव के लिए मैदान बनाने में जुटे हैं। ऐसे ही मिश्रिख सीट के लिए 19 फरवरी को रामपाल राजवंशी को टिकट मिला। 16 मार्च को उनके बेटे मनोज राजवंशी उम्मीदवार बने। अब मनोज की पत्नी संगीता उम्मीदवार हैं। बिजनौर सीट पर भी प्रत्याशी को लेकर असमंजस की स्थिति रही। यहां 15 मार्च को यशवीर सिंह को टिकट दिया गया। लेकिन फिर 24 मार्च को बदलकर दीपक सैनी को प्रत्याशी बना दिया गया। आजम खान के गढ़ रामपुर में भी सपा को असमंजस की स्थिति का सामना करना पड़ा। दिल्ली के मौलाना मोहीबुल्लाह नदवी को उम्मीदवार बनाया गया है। हालांकि यहां आजम कैम्प की तरफ से विरोध दर्ज कराया गया। आसिम रजा ने भी नामांकन कर दिया।
दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी टिकटों को लेकर सपा में अनिर्णय की स्थिति देखने को मिली थी। अवध, पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक उम्मीदवार घोषित होते रहे, टिकट कटते रहे और फिर नए नाम जुड़ते रहे। इलाहाबाद, आगरा, लखनऊ, अमरोहा, मथुरा, गोंडा, अमेठी, उरई, कालपी, संत कबीरनगर, देवरिया, भदोही आदि जिलों की सीटों पर नामों की उठापटक खूब चली, 2022 में हाल यह रहा कि अधिकतर सीटों पर सपा को हार का सामना करना पड़ा। स्थिति यह रही कि बाद में सपा ने प्रत्याशियों की आधिकारिक सूची जारी करना ही बंद कर दी। सीधे उम्मीदवार को फार्म ए और बी जारी किए जाने लगे। कुछ ऐसी ही रस्साकशी इस बार लोकसभा में भी देखने को मिल रही है।