अगर अखिलेश यादव कन्नौज से चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए खतरा पैदा हो सकता है! लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन में सीटों को बंटवारे को लेकर रस्साकशी जारी है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा कांग्रेस को 11 सीटें देने के एकतरफा ऐलान के बाद स्थितियां और कठिन हो चली हैं। उधर राष्ट्रीय लोकदल भी 7 सीटों से ज्यादा की उम्मीद सपा से कर रहा है। इस बीच समाजवादी पार्टी भी संभावित प्रत्याशियों को लेकर रणनीति बनाने में जुटी है। जिलों-जिलों से फीडबैक प्रॉसेस चल रहा है। खुद अखिलेश यादव के इस बार कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर चर्चाएं तेज हैं। इसी तरह डिंपल यादव मैनपुरी और शिवपाल यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ने की चर्चाएं हैं। जानकार मानते हैं कि अगर अखिलेश यादव कन्नौज की अपनी पुरानी सीट से दावेदारी करते हैं तो भाजपा के लिए मुकाबला कठिन होना तय है। बता दें अखिलेश यादव लगातार कन्नौज का दौरा कर रहे हैं। अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ ऐलान नहीं हुआ है लेकिन क्षेत्र में चर्चाएं तेज हैं कि अखिलेश यादव यहीं से मैदान में उतरेंगे। अखिलेश यादव यहां से तीन बार सांसद चुने जा चुके हैं। कन्नौज के बारे में कभी कहा जाता था कि यहां से यादव परिवार को चुनाव जीतने के लिए कैंपेन करने की भी जरूरत नहीं है। 1998 से 2019 तक इस सीट पर यादव परिवार का दबदबा रहा। कन्नौज लोकसभा सीट पर भाजपा के चंद्रभूषण सिंह उर्फ मुन्नू बाबू ने 1996 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की छोटी सिंह यादव को मात देकर सीट अपने नाम की थी। लेकिन इसके बाद 1998 में समाजवादी पाटीं ने प्रदीप कुमार यादव की अगुवाई में इस सीट पर अपना कब्जा बना लिया। इसके बाद 1999 में ये सीट यादव परिवार की हो गई।
1999 में मुलायम सिंह यादव यहां से जीते, फिर 2000 में उनकी जगह उपचुनाव में अखिलेश यादव ने ली। अखिलेश ने इसके बाद 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावा आसानी से जीत लिए। लेकिन 2012 में अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री हो गए और उन्होंने ये सीट अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए खाली कर दी। डिंपल ने 2012 का उपचुनाव निविर्रोध जीत लिया। फिर 2014 में मोदी लहर के बीच भी डिंपल यहां से जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं। लेकिन 2019 तक स्थिति बदल चुकी थी। लगातार प्रयास के बाद आखिरकार 23 साल बाद भाजपा यहां भगवा फहराने में सफल रही। भाजपा से सुब्रत पाठक ने सपा ही नहीं पूरे यादव कुनबे को चौंकाते हुए 12353 वोटों से मात दे दी।
जातिगत समीकरण की बात करें तो इस सीट पर हमेशा से मुस्लिम और यादव वोटबैंक का दबदबा रहा है। दोनों का वोट प्रतिशत 16-16 फीसदी के करीब है। वहीं उसके बाद ब्राह्मण मतदाता हैं, जिनकी 15 फीसदी हिस्सेदारी है। राजपूत यहां 10 फीसदी के करीब हैं और अन्य जातियां कुल मिलाकर 39 फीसदी हैं, जिनमें गैर यादव पिछड़ी जातियां और दलित शामिल हैं। वैसे तो मुस्लिम यादव वोटबैंक हर चुनाव में अपना असर डालता रहा। लेकिन 2019 के लाेकसभा चुनाव में भाजपा ने अन्य जातियों के वोटबैंक में तगड़ी सेंध लगा दी। सुब्रत पाठक की जीत में इसी अन्य फैक्टर ने विशेष योगदान दिया। अब सवाल ये है कि क्या इस बार भी ऐसा होगा? हालांकि टिकट अभी फाइनल नहीं हुआ है।
जानकारों के अनुसार कन्नौज सीट पर अखिलेश यादव ने पिछले काफी समय से ध्यान लगाया है। यहां वह वोटरों से सीधे संपर्क के साथ ही अपनी पीडीए रणनीति के तहत वोटरों को जोड़ने के प्रयास में हैं। वह सांसद सुब्रत पाठक पर भी लगातार हमलावर रहे हैं। दोनों तरफ से तल्ख बयानबाजियों के कई दौर चल चुके हैं। यहां भाजपा मजबूत जरूर है लेकिन अखिलेश यादव की छवि बड़ी चुनौती साबित होगी। जानकार ये भी कहते हैं कि रणनीति के लिहाज से हो सकता है भाजपा यहां से टिकट बदल भी सकती है। वैसे भाजपा के लिए इस सीट पर एक अन्य बड़ा पहलू भी पक्ष में दिख रहा है। दरअसल कन्नौज लोकसभा के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों मे भी भाजपा की मजबूत उपस्थिति है। कन्नौज लोकसभाा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें छिबरामऊ से अर्चना पांडेय, तिर्वा से कैलाश राजपूत, सदर सुरक्षित सीट से असीम अरुण हैं। एक सीट कानपुर देहात की रसूलाबाद एससी भी है, जहां से भाजपा की पूनम संखवार विधायक हैं। वहीं एक सीट औरैया की बिधूना है, जहां से रेखा वर्मा सपा विधायक हैं।