बीजेपी 2024 के चुनावों से पहले एक प्रयोग कर रहीं है! आमतौर पर देश में भाजपा और मुसलमानों को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं। मुस्लिम समुदाय के कम लोगों को टिकट देने का आरोप लगता है, हिंदुत्व वाले एजेंडे के कारण मुस्लिम विरोध की बातें होती हैं। ऐसे में जब भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों से नजदीकी बढ़ाई तो इस ओर लोगों की उत्सुकता बढ़ना लाजिमी था। यूपी में ज्यादा संख्या में बड़े शहर होने के कारण 17 नगर निगम हैं और भाजपा ने हिंदू कैंडिडेट्स को उतारकर सभी मेयर सीटें जीत लीं। छोटे शहरों में स्थानीय निकाय को नगर पालिका पंचायत कहा जाता है और वहां चेयरमैन पोस्ट के लिए भाजपा के 199 उम्मीदवारों में 32 मुस्लिम समुदाय से भी थे और 5 जीते। नगर निगमों में 1428 वार्ड हैं और नगर पालिका पंचायत में 5,327 वार्ड हैं। इस लिहाज से देखें तो कुल भाजपा उम्मीदवारों में मुसलमानों की संख्या बहुत कम रही। बहुत से लोग कहेंगे कि योगी आदित्यनाथ ने मुसलमानों को साथ लाने की एक छोटी सी कोशिश की है। फिर भी यह बदलाव पहले की तुलना में बहुत बड़ा है।
इतिहास पलटकर देखिए तो भाजपा कभी-कभार मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देती है क्योंकि उसका आक्रामक हिंदू एजेंडा रहा है। भाजपा हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी है और 1984 के आम चुनाव से अब तक उसकी सफलता का राज भी यही है। थिअरी में पार्टी सेक्युलर है। पार्टी में हमेशा से अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ (माइनॉरिटी सेल) रहा है। वाजपेयी-आडवाणी के दौर में भी वह कांग्रेस की आलोचना करते हुए खुद को इकलौती सच्ची धर्मनिरपेक्ष पार्टी कहती थी। वह कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है। लेकिन 9 साल के शासन में काफी कुछ बदला है। भाजपा शासित राज्यों ने कश्मीर फाइल्स और केरला स्टोरी जैसी फिल्मों को टैक्स फ्री कर दिया। क्रिटिक्स इन फिल्मों को इस्लामोफोबिया से जोड़ते हैं। कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने पीएफआई के इस्लामिक कट्टरता से हिंदुओं की रक्षा करने वाले के तौर पर खुद को पेश किया था।
हालांकि हाल में भाजपा ने हिंदुओं के सपोर्ट के साथ ही मुस्लिम वोटों का भी बड़ा हिस्सा हासिल करने की दिशा में काम करना शुरू किया है। पिछले दो दशकों में पार्टी ने चुनावों में 6-10 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल किए, जो ज्यादातर शिया मुस्लिम समुदाय से थे। जबकि सुन्नी बहुसंख्यक कांग्रेस को सपोर्ट करते रहे हैं। लेकिन अब भाजपा ने रणनीति बदलते हुए पसमांदा मुसलमानों को लुभाने की कोशिश की है।’ पसमांदा मुस्लिम दलित और बैकवर्ड मुस्लिम माने जाते हैं।
भारतीय मुसलमानों की तीन श्रेणियां हैं- अपर क्लास के अशरफ, ये जमींदार या कहिए संपन्न वर्ग से आते हैं। हिंदू धर्म की उच्च जातियों से इस्लाम अपनाने वाली जातियां इसमें आती हैं। दूसरे नंबर पर हैं अजलाफ या बैकवर्ड जो मुस्लिम बने। तीसरे नंबर पर अरजाल आते हैं जिन्हें सबसे निम्न समझा जाता है। ये श्रेणियां उनकी सामाजिक और आर्थिक हैसियत बताती हैं। पसमांदा निम्न मुस्लिम श्रेणी से आते हैं।
पसमांदा समुदाय काफी समय से सरकारी नौकरियों में कोटा मांगता रहा है। कई राज्य सरकारों ने पसमांदा यानी गरीब मुसलमानों को कोटा भी दिया है। इसके बाद ये एकजुट होने लगे और अपनी डिमांड मजबूती से सामने रखने लगे। अय्यर का कहना है कि आलोचक आरोप लगाते हैं कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ मुसलमानों को बदनाम करते हैं लेकिन उन्होंने पसमांदा समुदाय से आने वाले दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाया है। पिछले दो दशकों में पार्टी ने चुनावों में 6-10 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल किए, जो ज्यादातर शिया मुस्लिम समुदाय से थे। जबकि सुन्नी बहुसंख्यक कांग्रेस को सपोर्ट करते रहे हैं। लेकिन अब भाजपा ने रणनीति बदलते हुए पसमांदा मुसलमानों को लुभाने की कोशिश की है।’ पसमांदा मुस्लिम दलित और बैकवर्ड मुस्लिम माने जाते हैं।एक समय कांग्रेस पार्टी ने पसमांदा को कोटा देने के लिए कैंपेन चलाया था, तब भाजपा आलोचना करती थी। लेकिन अब भाजपा को पसमांदा वोट बैंक दिख रहा है। यूपी निकाय चुनाव इस फॉर्म्यूले का टेस्ट था। एक अनुमान के मुताबिक भाजपा के 90 प्रतिशत मुस्लिम कैंडिडेट पसमांदा थे। यूपी में इस रणनीति के सफल रहने से साफ है कि 2024 के आम चुनाव में इस स्ट्रैटिजी को भाजपा शामिल कर सकती है।
कुल वोट में मुस्लिम 15 फीसदी है। अगर 10वां हिस्सा भी भाजपा को वोट देता है तो यह कुल वोट का 1.5 प्रतिशत होगा। कुछ चुनाव 1 प्रतिशत से भी कम मार्जिन से हारे जाते हैं, ऐसे में यह रणनीति भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। समझा जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा ज्यादा पसमांदा मुस्लिमों को टिकट दे सकती है।