यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी पीएम मोदी के दम पर जीत रही है या नहीं! 2014 से ही मोदी फैक्टर का बीजेपी की चुनावी जीत पर बहुत बड़ा असर पड़ा है। लेकिन क्या ‘मोदी लहर’ को नापा जा सकता है? पीएम नरेंद्र मोदी बीजेपी को कितने वोट और सीटें दिलाते हैं? अतुल ठाकुर ने मोदी के कारण बीजेपी को मिले मतों का अनुमान लगाने के तीन अलग-अलग तरीके अपनाए गए तो पता चला कि ये बहुत अलग नहीं हैं। बीजेपी की जड़ें भारतीय जनसंघ में हैं, जिसने पहले लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीती थीं। पहली बार सरकार में आने का मौका 1977 के चुनाव में मिला, जो आपातकाल के बाद हुए थे और जिसमें इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को पहली बार जनता पार्टी के गठबंधन ने सत्ता से बाहर कर दिया था। जनता पार्टी में विभाजन के बाद 1980 में बीजेपी का गठन हुआ। 1984 के चुनाव में उसने दो लोकसभा सीटें जीतीं, लेकिन 1996 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए से हारने से पहले उसने 1998 और 1999 में गठबंधन सरकारें बनाईं। 2014 में वह स्पष्ट बहुमत के साथ वापस आई, जो 1984 के बाद से नहीं देखा गया था। तो सवाल है कि बदल क्या गया? बीजेपी ने 2014 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी को 2009 की तुलना में 9.4 करोड़ अधिक वोट मिले। 2019 में उसने इससे भी बेहतर प्रदर्शन किया। बीजेपी के कुल वोट 2014 के 17.2 करोड़ से बढ़कर 22.9 करोड़ हो गए। पिछले लोकसभा चुनाव में वोटों की संख्या 6.8 करोड़ वोटों से तीन गुना से भी ज्यादा थी, जो बीजेपी ने 1996 में जीते थे, जब उसकी सरकार सिर्फ 13 दिनों में गिर गई थी।
सीटों और वोटों के मामले में मोदी के प्रभाव को मापने के लिए दो व्यापक परिकल्पनाओं पर काम किया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सही हैं, हमने अपनी गणना की तुलना सीएसडीएस-लोकनीति की तरफ से 2019 के चुनाव के बाद किए गए सर्वेक्षण से की। 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव परिणामों की तुलना से एक पैटर्न सामने आता है जो ‘मोदी लहर’ पर प्रकाश डालता है। पता चलता है कि देशभर की 127 सीटें ऐसी हैं जहां 2009 की तुलना में 2014 में बीजेपी के वोट शेयर 20% से अधिक बढ़ गए। बीजेपी ने 2009 में इन 127 सीटों में से केवल पांच जीती थीं जबकि पांच साल बाद 2014 के चुनाव में पार्टी के झोले में 104 सीटें गिर गईं। कहा जा सकता है कि इन सीटों पर ‘मोदी लहर’ का सबसे ज्यादा असर हुआ।
बेशक, बीजेपी के सभी नए वोट ‘मोदी वोट’ नहीं थे। यूपीए-II सरकार के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी वोट था और कई राज्यों में स्थानीय गठबंधन और कारक थे जिन्होंने एनडीए की मदद की। लेकिन मोदी बीजेपी के सबसे बड़े पुल और पुश फैक्टर थे- पूरे भारत में नए वोट लाने और विपक्ष से मतदाताओं को दूर करने में मदद की। हमने बीजेपी के वोट शेयर पर मोदी के प्रभाव को मापने के लिए विधानसभा और संसदीय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन की भी तुलना की। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव को ही लें, जो लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद हुए थे। पार्टी ने 40 सीटें जीतीं और 36.5% वोट हासिल किए। लोकसभा चुनाव में, बीजेपी ने मोदी के नाम पर प्रचार किया था। नतीजा- 58.2% वोट शेयर और राज्य की 10 लोकसभा सीटों पर जीत। वोट शेयर में 21.7 प्रतिशत अंकों के अंतर को मोदी फैक्टर के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
केवल हरियाणा ही नहीं, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बीच बीजेपी के वोटों में 20% से अधिक की वृद्धि देखी गई। गोवा, छत्तीसगढ़, दिल्ली, झारखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उत्तराखंड में यह अंतर 15% से अधिक था। बिहार और महाराष्ट्र में वृद्धि इतनी तेज नहीं थी क्योंकि वहां बीजेपी का मजबूत स्थानीय दलों के साथ गठबंधन नहीं हो पाया था। कुल मिलाकर, विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बीच बीजेपी के वोटों में 4.5 करोड़ से अधिक की वृद्धि हुई। इन्हें ‘मोदी वोट’ कहा जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद किए गए सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण के नतीजे टाइम्स ऑफ इंडिया के दो अनुमानों के करीब हैं। सर्वे के सवालों का जवाब देने वाले 24.7% लोगों ने कहा कि अगर मोदी पीएम उम्मीदवार नहीं होते तो वे बीजेपी को वोट नहीं देते। अन्य 14% अनिश्चित थे कि वे पार्टी को वोट देंगे या नहीं। बीजेपी ने 2019 में लोकसभा चुनाव में 22.9 करोड़ वोट मिले, इनमें से 24.7% वोट 5.6 करोड़ वोट में बदल जाते हैं, जो राज्य विधानसभाओं और संसद में बीजेपी के वोटों के अंतर के लगभग बराबर है।