क्या लालू यादव पर भारी पड़ रही है सीएम नीतीश कुमार की राजनीति?

0
113

वर्तमान में सीएम नीतीश कुमार की राजनीति लालू यादव पर भारी पड़ रही है! बिहार के सीएम नीतीश कुमार की सियासी स्ट्रेटेजी को समझना आसान नहीं। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव राजनीति के धुरंधर माने जाते रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार ने अब उन्हें भी पीछे छोड़ दिया है। महागठबंधन के साथ आने पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से जिस तरह लोगों ने नाता तोड़ना शुरू किया, उससे तो यही लगा कि अब पार्टी का बचना मुश्किल है। एनडीए के नेता भी दावा करने लगे कि जेडीयू में भगदड़ रुकने वाली नहीं है। कई तो यह भी मानने लगे कि नीतीश अब अधिक दिनों तक सीएम की कुर्सी पर नहीं रह पाएंगे। ऐसा कहने-मानने वालों में न सिर्फ नीतीश के विरोधी दलों के लोग शामिल थे, बल्कि महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी की ओर से भी ऐसे बयान लगातार आ रहे थे। स्वभाव से कम बोलने वाले नीतीश चुपचाप सब सुनते रहे। अपनी रणनीति बनाते रहे और अब उसे धरातल पर उतारने का काम शुरू कर दिया है। महागठबंधन में आते ही नीतीश कुमार को जेडीयू के ही कुछ नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। जेडीयू में रहते संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने तो यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ डील की है। डील की सच्चाई या कोई प्रमाण तो अब तक सामने नहीं आया, लेकिन उपेंद्र कुशवाहा इसे मुद्दा बना कर खुद जेडीयू से अलग हो गए। डील की चर्चा आरजेडी के किसी नेता ने तो नहीं की, लेकिन यह मांग जरूर उठती रही कि जितनी जल्दी हो, नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ देनी चाहिए।

आरजेडी के कुछ नेताओं ने तो सीएम की कुर्सी छोड़ने के लिए अनाप-शनाप बयानों से नीतीश पर इतना दबाव बनाया कि एक बार सबको नीतीश की कुर्सी हिलती नजर आने लगी। आरजेडी के नेता तेजस्वी की ताजपोशी की तारीख तक बताने लगे थे। नीतीश ने इस पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बगैर नालंदा की एक सभा में तेजस्वी की मौजूदगी में घोषणा कर दी कि अगला 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। उसके बाद से तेजस्वी को तुरंत सीएम बनाने की मांग धीमी पड़ गई।

बिहार में जाति सर्वेक्षण की मांग सबसे पहले आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने उठाई थी। इसके लिए उन्होंने नीतीश कुमार से मुलाकात की। नीतीश ने भी उनकी मांग पर सहमति जता दी। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार से जाति सर्वेक्षण के लिए आग्रह करने के लिए नीतीश ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी के पास भेजा। केंद्र चूंकि सुप्रीम कोर्ट में तकनीकी वजहों से जाति जनगणना कराने से इनकार कर चुका था, इसलिए आश्वासन या स्वीकृति की तो संभावना ही खत्म हो गई थी। अलबत्ता केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील जरूर दी थी कि राज्य सरकारें चाहें तो अपने स्तर से जाति गणना करा सकती हैं।

एनडीए में रहते ही नीतीश सरकार ने जाति गणना की स्वीकृति दे दी। इसके लिए कैबिनेट से पास भी करा लिया। आखिरकार इस साल के आरंभ में जनगणना कार्य शुरू हो गया। पहले चरण का काम पूरा होते ही पटना हाई कोर्ट ने यह कह कर इस पर रोक लगा दी कि जनगणना केंद्र का विषय है। राज्य सरकार ने दलील दी कि यह जनगणना नहीं, बल्कि सर्वेक्षण है। इस पर कोर्ट ने सरकार को इजाजत दे दी। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट गया। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई की अगली तारीख के पहले ही नीतीश सरकार ने जाति सर्वेक्षण पूरा कर लिया और आंकड़े भी जारी कर दिए। इस तरह आरजेडी के मुद्दे को नीतीश ने अब पूरी तरह अपना बना कर भुना लिया है।

नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी में आत्मविश्वास जगाने और नेताओं को ऊर्जान्वित करने के लिए सबसे पहले सांसदों, पूर्व सांसदों, विधायकों, पूर्व विधायकों और वर्तमान व पूर्व विधान पिरषद सदस्यों से बारी-बारी मुलाकात की। उन्हें लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तैयारी के टिप्स दिए। फिर उन्होंने पार्टी के प्रभारियों से मुलाकात की। जेडीयू दफ्तर में आने-जाने का सिलसिला शुरू किया। हाल में नीतीश ने पार्टी के मुस्लिम नेताओं से मुलाकात की है। इस तरह हर तबके में अपनी गोटी फिट करने में नीतीश लगे हुए हैं। नीतीश को मूल चिंता अपने बुनियादी वोट बैंक को लेकर हैं। आरजेडी के दुर्दिन में मुसलमानों ने उसका साथ छोड़ दिया था, वे जेडीयू के साथ आ गए थे।

जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट आने के बाद हर जाति की आबादी सार्वजनिक हो गई है। बिहार में दलितों-महादलितों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है। अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 फीसदी, पिछड़ा वर्ग की आबादी 27.12 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी 19.65 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी और सवर्ण जाति की आबादी 15.52 फीसदी है। जातीय गणना सर्वे में कुल 13,07,25,310 लोग शामिल हुए।

नीतीश कुमार को विपक्ष का पीएम फेस बताने की शुरुआत सबसे पहले आरजेडी ने की थी। आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने तो यह भी कह दिया था कि लालू यादव ने नीतीश को जीत का टीका लगा दिया है। जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के अलावा मंत्री श्रवण कुमार और दूसरे नेताओं ने भी नीतीश को पीएम पद के सर्वथा योग्य बताना शुरू किया।

हालांकि नीतीश को मालूम है कि उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कांग्रेस अटकाएगी। इसलिए नीतीश ने अपनी अघोषित रणनीति के तहत खुद को पीएम पद की रेस से बाहर कर लिया। विपक्षी एकता के शुरुआती प्रयासों के बाद उन्होंने अपने को समेटा और अब जेडीयू को मजबूत करने में लग गए हैं। नीतीश को शायद अब भी उम्मीद है कि बेमन से इनकार के बावजूद उनके कामों से शायद विपक्ष के पीएम उम्मीदवार के लिए उनके नाम पर सहमति बन जाए।