यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस की नियत विपक्षी एकता के लिए साफ नहीं है! जब बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों ने गठबंधन I.N.D.I.A. में हाथ मिलाया तब सीटों के बंटवारे को लेकर सवाल उठे थे। पांच राज्यों मे विधानसभा चुनाव में यह आशंका सही साबित हो रही है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी की दावेदारी को खारिज कर दिया। 230 सदस्यों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा की पहली लिस्ट में कांग्रेस ने उन पांच सीटों पर भी कैंडिडेट उतार दिया, जहां समाजवादी पार्टी दावा कर रही थी। कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी की ओर से 2018 में जीती गई सीट बिजावर से भी चरण सिंह यादव को टिकट थमा दिया। 2018 में समाजवादी पार्टी के राजेश कुमार 67 हजार के अधिक वोटों से बिजावर सीट पर जीत दर्ज की थी। अब सपा मध्यप्रदेश में 9 सीटों पर कैंडिडेट उतारेगी और बीजेपी के साथ कांग्रेस से भी मुकाबला करेगी। खुद अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव ने मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ने को मंजूरी दी। चर्चा है कि कांग्रेस राजस्थान में भी एकतरफा लिस्ट जारी कर सकती है । दूसरी ओर, नेशनल पार्टी बनने की चाह रखने वाली समाजवादी पार्टी भी राजस्थान में जोर आजमाइश करेगी। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सहयोगी दलों की अनदेखी का फैसला कांग्रेस के लिए अच्छा नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. का बड़ा फेल्योर साबित हो सकता है। भले ही समाजवादी पार्टी फ्रेंडली फाइट करे, नुकसान कांग्रेस को ही होगा। ध्यान रखने की बात यह है कि एक ओर कांग्रेस अपने जनाधार वाले राज्यों में समाजवादी पार्टी के दावे को ठुकरा रही है, जबकि खुद उत्तरप्रदेश में 2009 में जीती गईं 21 सीटों पर चुनाव लड़ने की मंसूबे पाले बैठी है। बीजेपी को हराने के लिए त्याग सिर्फ I.N.D.I.A. के सहयोगी करेंगे या कांग्रेस भी करेगी? यह सवाल आने वाले लोकसभा चुनाव में पेचीदा हो जाएगा। कांग्रेस ने पांच राज्यों में राजनीतिक हैसियत के आधार पर कैंडिडेट का फैसला किया है। चर्चा है कि समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। अगर कांग्रेस अभी हैसियत वाले फार्मूले पर अड़ी रही तो यूपी में कांग्रेस से अधिक जनाधार रखने के कारण सपा तय करेगी कि वह I.N.D.I.A. के सहयोगियों को कितनी सीटें देगी?
कांग्रेस ने सीट बंटवारे की समस्या अभी नहीं सुलझाई तो लोकसभा चुनाव में I.N.D.I.A. गठबंधन में सीटों को लेकर मतभेद होना लाजिमी है। सबसे अधिक जनाधार होने का सिद्धांत उसे यूपी के अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और बिहार में झटका दे सकता है। इन राज्यों में 282 लोकसभा सीटें हैं, जहां I.N.D.I.A. के दूसरे दल कांग्रेस से ज्यादा मजबूत स्थिति में है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी के पास 22 और कांग्रेस के पास महज दो लोकसभा सीटें हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वजूद नहीं है। विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 48 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 12.25 प्रतिशत वोट मिले थे। यूपी में समाजवादी पार्टी के पांच लोकसभा सदस्य हैं जबकि विधानसभा में 111 सीटों पर कब्जा है। यूपी में कांग्रेस के खाते में एक लोकसभा और दो विधानसभा सीट ही है। उत्तर प्रदेश में सपा के पास 32 प्रतिशत वोट हैं, जबकि कांग्रेस को 2.3 फीसदी वोट मिले थे। मजबूत जनाधार के सिद्धांत से यूपी में I.N.D.I.A. गठबंधन के पार्टनर के तौर पर चुनिंदा सीट ही मिल सकती है।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं और कांग्रेस के खाते में एक भी सीट नहीं है। विधानसभा में 19 सीटें हैं, वह भी आरजेडी से गठबंधन के बाद ही मिली है। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में 9.7 फीसदी वोट ही मिले हैं। बिहार में I.N.D.I.A. गठबंधन के पार्टनर आरजेडी के पास 23.11 फीसदी और जेडी यू के पास 15.39 फीसदी वोट हैं। कांग्रेस ने पांच राज्यों में राजनीतिक हैसियत के आधार पर कैंडिडेट का फैसला किया है। चर्चा है कि समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। अगर कांग्रेस अभी हैसियत वाले फार्मूले पर अड़ी रही तो यूपी में कांग्रेस से अधिक जनाधार रखने के कारण सपा तय करेगी कि वह I.N.D.I.A. के सहयोगियों को कितनी सीटें देगी?अगर सहयोगियों ने जनाधार के सिद्धांत को लागू किया तो बिहार में भी पांच सीट से ज्यादा की दावेदारी नहीं कर पाएगी। बिहार में कांग्रेस लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी की पुरानी साथी रही है। तेजस्वी और राहुल की दोस्ती जगजाहिर है, मगर अन्य राज्यों में इंडिया को सहयोगियों की अनदेखी का असर बिहार में भी हो सकता है।