कोरोंना संक्रमण अब बच्चों की सेहत खराब कर रहा है! वयस्कों की तरह छोटे बच्चों के फेफड़ों पर भी कोरोना वायरस का गंभीर असर पड़ रहा है। देश में पहली बार दिल्ली के डॉक्टरों ने एक चिकित्सा अध्ययन में यह दावा किया है कि तीन में से एक कोरोना संक्रमित बच्चे के फेफड़े सामान्य नहीं मिल रहे हैं। कोविड से उभरने के बाद इन बच्चों के फेफड़ों की प्रक्रिया प्रभावित हुई है। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर यह अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण के बाद वयस्कों में पल्मोनरी सीक्वेल के मामले मिले हैं, लेकिन बच्चों में पल्मोनरी डिसफंक्शन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन बच्चों में दीर्घकालिक पल्मोनरी सीक्वेल का अध्ययन किया जो कोरोना वायरस की चपेट में आए।
जून 2020 से अक्तूबर 2021 के बीच अस्पताल में भर्ती सात से 18 वर्ष के कुल 40 कोरोना रोगियों को अध्ययन में शामिल किया गया। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर यह अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण के बाद वयस्कों में पल्मोनरी सीक्वेल के मामले मिले हैं, लेकिन बच्चों में पल्मोनरी डिसफंक्शन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन बच्चों में दीर्घकालिक पल्मोनरी सीक्वेल का अध्ययन किया जो कोरोना वायरस की चपेट में आए।इनमें 21 लड़के थे जिनकी औसतन आयु 13 वर्ष थी। अस्पताल से छुटटी मिलने के छह माह बाद तक इन मरीजों पर निगरानी रखी गई। शोधकर्ताओं ने छह महीने बाद इन बच्चों की श्वसन जांच की। इस दौरान 30% बच्चों के फेफड़ों में कई तरह की परेशानी देखने को मिली है।
कोरोना की वजह से गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम के मामले देखने को मिल रहे हैं। वयस्क आबादी में ऐसे मरीजों की संख्या काफी है जिनमें वायरस की वजह से फेफड़ों को नुकसान पहुंचा है। इनकी संख्या लगभग 10 फीसदी है।मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर यह अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण के बाद वयस्कों में पल्मोनरी सीक्वेल के मामले मिले हैं, लेकिन बच्चों में पल्मोनरी डिसफंक्शन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन बच्चों में दीर्घकालिक पल्मोनरी सीक्वेल का अध्ययन किया जो कोरोना वायरस की चपेट में आए।
जिन बच्चों का वजन सामान्य की तुलना में कम है या फिर वे प्री मैच्योर हैं तो उनमें वायरस का असर ज्यादा गंभीर देखने को मिल रहा है।बच्चों को लेकर पहले अध्ययन में सामने आया कि वायरस के कारण तीन में एक बच्चे में फुफ्फुसीय असामान्यताएं होती हैं और तीव्र संक्रमण की गंभीरता और इन खतरनाक असामान्यताओं के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं था।मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर यह अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण के बाद वयस्कों में पल्मोनरी सीक्वेल के मामले मिले हैं, लेकिन बच्चों में पल्मोनरी डिसफंक्शन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन बच्चों में दीर्घकालिक पल्मोनरी सीक्वेल का अध्ययन किया जो कोरोना वायरस की चपेट में आए। 14 में से एक बच्चे को कोरोना से ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक सांस की तकलीफ के लक्षण देखने को मिले हैं।इसलिए यह अध्ययन किया गया जिसके निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि वायरस के कारण बच्चों को फेफड़ों से जुड़ी परेशानी हो रही है।
बच्चों को लेकर पहले अध्ययन में सामने आया कि वायरस के कारण तीन में एक बच्चे में फुफ्फुसीय असामान्यताएं होती हैंमौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और दिल्ली के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल के डॉक्टरों ने मिलकर यह अध्ययन किया है जिसे मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण के बाद वयस्कों में पल्मोनरी सीक्वेल के मामले मिले हैं, लेकिन बच्चों में पल्मोनरी डिसफंक्शन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने उन बच्चों में दीर्घकालिक पल्मोनरी सीक्वेल का अध्ययन किया जो कोरोना वायरस की चपेट में आए। और तीव्र संक्रमण की गंभीरता और इन खतरनाक असामान्यताओं के बीच कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं था। 14 में से एक बच्चे को कोरोना से ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक सांस की तकलीफ के लक्षण देखने को मिले हैं।