वर्तमान में लोन देने वाले ऐप से क्राइम होता जा रहा है! सोशल मीडिया फिर से निशाने पर है, और यह सही भी है। भारत सरकार ने उन्हें धोखाधड़ी वाले डिजिटल लोन ऐप्स डीएलए के विज्ञापन दिखाने को लेकर चेतावनी दी है। लेकिन इन विज्ञापनों को दिखाने में भले ही सोशल मीडिया लापरवाह हो, असली अपराध तो ऑनलाइन लोन देने वालों की हैवानियत है। ये तेजी से बढ़ते प्लैटफॉर्म का फायदा उठाकर छोटे खुदरा कर्ज का जाल बिछा रहे हैं। इस साल संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में डिजिटल लोन 2012 से 2023 के बीच सालाना 39.5% बढ़कर 350 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इस वृद्धि का एक हिस्सा डिजिटल लोन ऐप्स डीएलए के कारण हुआ है। डीएलए के कारोबार का सही आकलन करना मुश्किल है क्योंकि इसका एक बड़ा हिस्सा अवैध है। आरबीआई ने जनवरी और फरवरी 2021 में दो महीने तक डिजिटल लोन ऐप्स का अध्ययन किया। उसने पाया कि 81 ऐप स्टोर पर 1,100 लोन ऐप उपलब्ध थे। इनमें से 600 अवैध थे। कंज्यूमर सर्वे और पुलिस जांच अवैध लोन ऐप की दुनिया की दो मेन फीचर्स की ओर इशारा करते हैं। अवैध लोन ऐप ग्राहकों को उसी कारण से आकर्षित करते हैं जिस कारण से इन्फॉर्मल फाइनैंसिंग हमेशा करता है- आसानी। जरूरतमंद लोगों को आसानी से लोन मिल जाता है। ब्याज दरें बैंकों की तुलना में कहीं अधिक होती हैं, लेकिन उसके बाद जो होता है वह डिजिटल वर्ल्ड के लिए बहुत खतरनाक है।
ऐप फोन पर डाउनलोड किए जाते हैं। धोखाधड़ी करने वाले लोन ऐप अवैध रूप से लोन लेने वालों के फोन डेटा को कॉपी करते हैं। फिर उस डेटा का इस्तेमाल कर्जदारों को परेशान करने के लिए किया जाता है जब वे रीपेमेंट में देरी करते हैं। पुलिस जांच दिखाती है कि यह धोखाधड़ी कैसे होती है। उत्पीड़न का तो एक तरीका है लोन लेने वाले का फोटो बिगाड़कर उसे उसके कॉन्टैक्ट लिस्ट के लोगों को भेजना। इससे कई बार आत्महत्या तक हो चुकी है। आरबीआई का दायरा बैंकों, एनबीएफसी जैसे वित्तीय मध्यस्थों तक सीमित है। ये सब भी हमेशा निर्दोष नहीं होते हैं। 2022-23 में इनके खिलाफ 1,062 शिकायतें दर्ज हुई थीं, लेकिन अवैध लोन ऐप का मामला तो अलग ही स्तर का है। कुछ मामलों में जांच से पता चला है कि ऐप का मालिकाना हक हॉन्गकॉन्ग से संचालित चीनी कंपनियों के पास है। लोन ऐप के अपराध में मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल भी है। इस कारण उनसे निपटने के लिए कई एजेंसियों को साथ काम करने की जरूरत पड़ती है।
अप्रैल 2021 से जुलाई 2022 के बीच 2,500 से अधिक ऐप्स को प्ले स्टोर से हटा दिया गया। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसे सार्वजनिक जागरूकता अभियानों, तेज पुलिसिया जांच और अपराधियों के खिलाफ त्वरित मुकदमे के जरिए साथ दिया जाना चाहिए। लेकिन भविष्य में ऐसी समस्या पैदा ही नहीं हो, इसके लिए जरूरी है कि वैध तरीकों से लोन लेने की प्रक्रिया आसान हो जाए। जब रेग्युलेटेड कंपनियां लोगों को लोन नहीं देती हैं तो अपराध को फलने-फूलने का मौका मिल जाता है। यहि नहीं आपको बता दें कि जासूस भी क्राइम सीन पर आकर फिंगरप्रिंट्स के निशान लेते हैं। ये एक अनोखा बायोलॉजिकल निशान होते हैं, जो अपराध को अपराधी से जोड़ता है। दिल्ली पुलिस इस अनोखी तकनीक पर पर आजकल जबरदस्त भरोसा कर रही है। इससे केवल अपराध का ही खुलासा नहीं होता है बल्कि अपराधियों को भी पकड़ा जा रहा है। पिछले साल कई सालों से अटके केसों का भी खुलासा हुआ। हाल में ही जारी 2022 पर ‘फिंगरप्रिंट्स इन इंडिया’ के डेटा में नेशनल फिंगरप्रिंट्स पहचान व्यवस्था की जानकारी मिलती है। दिल्ली में 3 लाख 74 हजार 061 लोगों का डेटाबेस है। पिछले साल तक फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो ने सजा पाए 1 लाख 19 हजार 611 लोगों के प्रिंट्स लिए थे। रिपोर्ट में ये बताया गया है कि इसके जरिए कई स्लिप ब्यूरों के पास मौजूद प्रिंट्स के जरिए संदिग्ध का आपराधिक इतिहास की जानकारी दिल्ली फिंगरप्रिंट्स ब्यूरों को मिले। डेटा से पता जलता है कि 2,269 फिंगरप्रिंट्स सजायाफ्ता लोगों के थे। इन लोगों में 1,095 लोगों के प्रिंट्स पिछले साल ही लिए गए थे। इसके अलावा हत्या का प्रयास मामले में भी बड़े पैमाने पर प्रिंट्स जुटाए गए हैं।
फिंगरप्रिंट्स विशेषज्ञ करीब 17,564 क्राइम सीन पर सबूत तलाशने में गए करीब और 2022 में करीब 1,530 केसों में 5,478 चांस प्रिंट्स लिए थे। चांस प्रिंट में पैर, हथेली, अंगुली, पैर का अंगूठा, जूते, घटनास्थल पर पड़े चप्पल या अन्य वस्तुओं पर पड़े निशान लिए जाते हैं। 2021 की तुलना में 2022 में प्रिंट्स लेने की संख्या 50 फीसदी ज्यादा रहे। इसके अलावा ब्यूरो ने 137 विदेशियों के फिंगरप्रिंट्स लिए। दिल्ली फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो ने 2022 में 45 केसों में 1,191 प्रिंट्स लिए। 14 मामलों में ब्यूरो एक्सपर्ट गवाह के तौर पर कोर्ट में उपस्थित हुआ था।
फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की स्थापना 1987 में हुई थी। ये क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त के नेतृत्व में काम करता है। एक एसीपी रैंक के अधिकारी इसके इंचार्ज होते हैं। इस वक्त दिल्ली ब्यूरों के पास 9 डिस्ट्रिक्ट मोबाइल टीम है जो क्राइम सीन पर जांच के लिए जाते हैं। विशेष पुलिस आयुक्त रवींद्र यादव ने बताया कि फिंगरप्रिंट्स विश्लेषण तकनीक से आरोपियों की पहचान की सिस्टम को और मजबूती मिली है। चांस प्रिंट्स के जरिए कई केसों का खुलासा हुआ और लंबे अरसे से अटके केस भी साल्व हुए हैं।