Friday, May 9, 2025
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क्या पेपर में लपेट के खाना सेहत के लिए सही है?

आपने अधिकतर लोगों को पेपर में लपेट के खाना खाते हुए जरूर देखा होगा! अरे भइया जरा पोहा बना दो, मुझे भी एक प्लेट, मुझे भी, मुझे भीअक्सर मध्य़प्रदेश की शहरों में ये नजारा आम होता है। हर बाजार में जगह-जगह पर पोहा स्टॉल्स होते हैं। स्टॉल्स तो होते हैं, एक प्लेट पोहा भी मांगा जाता है, लेकिन बस यहां से प्लेट्स गायब होती है। काउंटर पर भइया के ठीक सामने एक हैंगर पर चौकोंर टुकड़ों में काटे गए काफी सारे न्यूजपेपर होते हैं और भइया उन्हीं अखबारों के टुकड़ों में लपेटकर पोहा और जलेबी दे देते हैं। लोग भी जमकर अखबार में लपेटे इस पोहे और जलेबी का मजा उठाते हैं। ये बात ठीक है कि अखबार में खाने से पोहा और जलेबी के स्वाद में तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन शायद आप ये नहीं जानते कि ये पोहा जलेबी अखबार में लपेटे जाने की वजह से कितना खतरनाक हो जाता है। अखबार की स्याही आपके उसी पोहे में लग जाती है और फिर आपके अंदर पहुंचती है। उस वक्त बेशक कुछ भी पता नहीं चलता, लेकिन ये स्याही इतनी खतरनाक होती है कि कई बार जानलेवा भी साबित हो जाती है।

अखबार की छपाई कई तरह के खतरनाक केमिकल्स आइसो ब्यूटाइल फटालेट, डाओन आईसोब्यू टायलेट से तैयार होती है। इसके अलावा स्याही में रंगों के लिए भी कई केमिकल मिलाए जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अखबार की स्याही शरीर में लीवर कैंसर को सीधे तौर पर दावत देती है। ये एक स्लो पॉइजन है। कैंसर के अलावा इसका बच्चों के दिमाग पर भी सीधा असर पड़ता है।

न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि देश ज्यादातर हिस्सों में खाने का सामान अखबार में लपेटकर देने का चलन है। दुकानदारों की इससे कॉस्ट कटिंग होती है। वो प्लेट पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते। पोहा हो, परांठे हो या फिर जलेबी गर्म चीजों की बड़ी ही आसानी से न्यूजपेपर में लपेट दिया जाता है। मध्यप्रदेश में पुलिस और खाद्य विभाग कई बार इसके खिलाफ मुहिम भी चला चुके है। अखबारों में पोहा और जलेबी बेचना बैन भी किया जा चुका है।न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि देश ज्यादातर हिस्सों में खाने का सामान अखबार में लपेटकर देने का चलन है। दुकानदारों की इससे कॉस्ट कटिंग होती है। वो प्लेट पर पैसा खर्च नहीं करना चाहते। पोहा हो, परांठे हो या फिर जलेबी गर्म चीजों की बड़ी ही आसानी से न्यूजपेपर में लपेट दिया जाता है। मध्यप्रदेश में पुलिस और खाद्य विभाग कई बार इसके खिलाफ मुहिम भी चला चुके है। अखबारों में पोहा और जलेबी बेचना बैन भी किया जा चुका है। यहां तक कि स्ट्रीट वेंडर से अखबार में पोहा जलेबी न बेचने के शपथ पत्र भी लिए जा चुके हैं, लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं। स्ट्रीट वेंडर्स के पास इतनी ज्यादा डिमांड होती है न तो उन्हें और न ही इसे खाने वालों को कोई फर्क पड़ता है।यहां तक कि स्ट्रीट वेंडर से अखबार में पोहा जलेबी न बेचने के शपथ पत्र भी लिए जा चुके हैं, लेकिन हालात आज भी वैसे ही हैं। स्ट्रीट वेंडर्स के पास इतनी ज्यादा डिमांड होती है न तो उन्हें और न ही इसे खाने वालों को कोई फर्क पड़ता है।

लोग स्वाद के चक्कर में अपनी ही जान से खिलवाड़ करने लगते हैं और इसका फायदा ऐसे वेंडर्स उठाते हैं।इसके अलावा स्याही में रंगों के लिए भी कई केमिकल मिलाए जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अखबार की स्याही शरीर में लीवर कैंसर को सीधे तौर पर दावत देती है। ये एक स्लो पॉइजन है। कैंसर के अलावा इसका बच्चों के दिमाग पर भी सीधा असर पड़ता है।लोग स्वाद के चक्कर में अपनी ही जान से खिलवाड़ करने लगते हैं और इसका फायदा ऐसे वेंडर्स उठाते हैं।इसके अलावा स्याही में रंगों के लिए भी कई केमिकल मिलाए जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अखबार की स्याही शरीर में लीवर कैंसर को सीधे तौर पर दावत देती है। ये एक स्लो पॉइजन है। कैंसर के अलावा इसका बच्चों के दिमाग पर भी सीधा असर पड़ता है। पुलिस की मुहिम जब चलती है उस दौरान कुछ दिन पेपर प्लेट्स में ये पोहा दे दिया जाता है, लेकिन उसके बाद फिर वही अखबार के टुकड़े में इसे लोगों को परोसा जाता है और लोग भी जमकर इसका लुत्फ उठाते हैं।पुलिस की मुहिम जब चलती है उस दौरान कुछ दिन पेपर प्लेट्स में ये पोहा दे दिया जाता है, लेकिन उसके बाद फिर वही अखबार के टुकड़े में इसे लोगों को परोसा जाता है और लोग भी जमकर इसका लुत्फ उठाते हैं।

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