भारत वर्तमान में आपदा से निपटने के लिए दुनिया की मदद कर रहा है! 110 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा। गुजरात के तट पर तूफान बिपरजॉय की दस्तक। लेकिन इस भीषण चक्रवाती तूफान से मौत का आंकड़ा सिंगल डिजिट में रहा। कुछ ही दशक पहले इस तरह का तूफान भीषण तबाही मचाता था। सैंकड़ों मौतें होती थीं। 1980 से 1999 के बीच चक्रवाती तूफानों में औसतन 354 लोगों की मौत होती थी। 2000 से 2019 के बीच ये घटकर 38 हो गया यानी 89 प्रतिशत की कमी। ये किसी चमत्कार से कम नहीं है। तो आखिर ऐसा क्या बदल गया जो भारत को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में दुनिया का सिरमौर बना रहा है? ‘बिपरजॉय’ का शाब्दिक अर्थ है ‘आपदा’। इस तूफान के बाद ऐसी आपदाओं से निपटने की भारत की काबिलियत पर एक बार फिर मुहर लगी है। अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की तैनाती और डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए ग्राउंड पर तैनात हजारों प्रशिक्षित लोगों की टीम से जिंदगियों को होने वाले नुकसान को काफी कम करने में मदद मिली है।
मई 2021 में तूफान ‘यास’ के दौरान लाखों लोगों को समय रहते शेल्टर होम में पहुंचाया गया। अकेले पश्चिम बंगाल में कम से कम 15 लाख लोगों को शिफ्ट किया गया तो ओडिशा में 7 लाख लोगों को शिफ्ट किया गया। इससे बेशकीमती जिंदगियां बच गईं। हाल के वर्षों में सिर्फ एक अपवाद है जब भारत में तूफान ने काफी जिंदगियों को लील लिया। मई 2021 में तौकते तूफान की वजह से कुल 193 लोगों की मौत हुई थी। गुजरात में 67 मौतें हुईं। ज्यादातर मौतें दीवार और इमारत गिरने की वजह से हुईं। महाराष्ट्र में 70 लोगों की जान गई क्योंकि मुंबई तट के पास खड़ा ओएनजीसी का एक जहाज समंदर में बह गया।
भारत यूं ही प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में दुनिया को राह नहीं दिखा रहा। उसने आधुनिक तकनीक के साथ-साथ बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित टीम को तैयार किया है। केंद्र सरकार के तहत आने वाली नैशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स में आज 18000 से ज्यादा उच्च प्रशिक्षित कर्मचारी तैयार हैं। इनमें मुख्य तौर पर अर्धसैनिक बलों से डेप्युटेशन पर आए कर्मचारी हैं। इसी तरह राज्यों ने भी स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स की इतनी ही बड़ी फौज तैयार की है। इनमें होम गार्ड और सिविल डिफेंस फोर्सेज वगैरह के लोग हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें अत्याधुनिक उपकरणों और आपदा के वक्त किसी भी तरह के विषम हालात से निपटने की ट्रेनिंग से लैस हैं।
तूफान, बाढ़, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में भारत दुनिया का नेतृत्व करता दिख रहा है। इनमें मुख्य तौर पर अर्धसैनिक बलों से डेप्युटेशन पर आए कर्मचारी हैं। इसी तरह राज्यों ने भी स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स की इतनी ही बड़ी फौज तैयार की है। इनमें होम गार्ड और सिविल डिफेंस फोर्सेज वगैरह के लोग हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें अत्याधुनिक उपकरणों और आपदा के वक्त किसी भी तरह के विषम हालात से निपटने की ट्रेनिंग से लैस हैं।खासकर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन यानी आपदा के जोखिम को कम करने के मामले में उसका कोई सानी नहीं है। एनडीआरएफ की टीमों को आपदा के वक्त दुनियाभर में राहत और बचाव अभियान के लिए नियमित तौर पर भेजा जाता है। नेपाल में 2015 में आए भूकंप, तुर्किये और सीरिया में हाल में आए भूकंप में भी ये दिखा।
भारत अगले 5 सालों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की तैयारियों पर 2 लाख करोड़ रुपये खर्च करने जा रहा है। इनमें मुख्य तौर पर अर्धसैनिक बलों से डेप्युटेशन पर आए कर्मचारी हैं। इसी तरह राज्यों ने भी स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स की इतनी ही बड़ी फौज तैयार की है। इनमें होम गार्ड और सिविल डिफेंस फोर्सेज वगैरह के लोग हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें अत्याधुनिक उपकरणों और आपदा के वक्त किसी भी तरह के विषम हालात से निपटने की ट्रेनिंग से लैस हैं। 50 हजार करोड़ आपदा के जोखिम को कम करने के लिए और 1.5 लाख करोड़ रुपये राहत और पुनर्वास के लिए होगा। दुनिया में बहुत कम देशों ने DRR को इतना तरजीह दिया है जितना भारत ने दिया है।
इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं है कि भारत को आपदाओं से निपटने की विशेषज्ञता के लिए दुनियाभर से तारीफ और दाद मिल रही है। हाल ही में DRR को लेकर बनी संयुक्त राष्ट्र की संस्था की चीफ मैमी मुजुतोरी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में भारत की जमकर तारीफ की। उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के योगदान का खास तौर पर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ओडिशा ने प्राकृतिक आपदाओं में होने वाली मौत को बहुत कम किया है। 1999 के सुपर साइक्लोन में सूबे में 10 हजार से ज्यादा मौतें हुई थीं। वहीं 2013 के फैलिन तूफान के वक्त सिर्फ 20 लोगों की जान गई थी।