Monday, December 23, 2024
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क्या फायदेमंद साबित हो रही है देसी एंटीबायोटिक?

हाल ही में देसी एंटीबायोटिक ने चमत्कार दिखा दिया है! कुछ महीने पहले, नेपाल की एक 50 वर्षीय महिला इलाज कराने लखनऊ आई। टमी टक के दो दिन बाद उसे भयंकर बुखार चढ़ गया। फेफड़े में इन्‍फेक्‍शन के साथ हालत और खराब हो गई। कुछ दिन में लिवर और किडनी भी प्रभावित हो गए। सेप्सिस काफी तेजी से डिवेलप हुआ और महिला को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखना पड़ा। डॉक्‍टर्स ने पाया कि सारी कारस्‍तानी Pseudomonas aeruginosa नाम के ग्रैम-निगेटिव बैक्‍टीरिया की है। ये ऐसे बैक्‍टीरिया होते हैं जिनपर दवाएं असर नहीं करती। इस महिला के केस में Pseudomonas A बैक्‍टीरिया सभी एंटीबायोटिक्‍स से लड़ रहा था, बस Colistin को छोड़कर। तीन हफ्ते बाद, Colistin भी बेअसर हो गया। मतलब अब मरीज का इलाज करने को कोई दवा नहीं बची थी। महिला मौत के मुंह के पास पहुंच चुकी थी। उसे एक स्‍थानीय अस्‍पताल से मेदांता में शिफ्ट किया गया। वहां, एक अंडरट्रायल एंटीबायोटिक के इस्‍तेमाल से उसकी जिंदगी बच गई। यह एंटीबायोटिक दवा विदेश में नहीं, औरंगाबाद की एक लैबोरेट्री में बनी है। इसे एक भारतीय फार्मा कंपनी Wockhardt रिसर्च सेंटर ने तैयार किया है।

मेदांता लखनऊ में क्रिटिकल केयर स्‍पेशलिस्‍ट, डॉ दिलीप दुबे ने WCK5222 के बारे में पढ़ा था। उन्‍होंने Wockhardt को फोन लगाया। वहां से पता चला कि केवल परिवार ही ‘अनुकंपा’ के आधार पर दवा मंगा सकते हैं। साथ ही ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से परमिशन की भी जरूरत पड़ती है। परिवार ने फौरन DCGI को लिखा और 48 घंटों के भीतर अप्रूवल मिल गया। मरीज को 10 दिन तक WCK5222 दवा दी गई। डॉ दुबे के अनुसार, ‘हमने 10 दिन दवा दी, लेकिन वे (मरीज) 5वें दिन ही बैक्‍टीरिया से मुक्‍त हो चुकी थीं।’ नेपाली महिला को ठीक होने के बाद 12 सितंबर को डिस्‍चार्ज किया गया। उसके बाद से वह पांच बार फॉलोअप के लिए आ चुकी है। करीब दो हफ्ते पहले, डॉक्‍टर्स ने उसे नेपाल लौटने की इजाजत दे दी।

WCK5222 पर रिसर्च 2012 में 130 वैज्ञानिकों के साथ शुरू हुई। अमेरिका में 200 मरजीों पर फेज 1 ट्रायल हुआ। पता चला कि दवा इंसानों पर इस्‍तेमाल की जा सकती है। Wockhardt रिसर्च सेंटर के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर महेश पटेल ने कहा, ‘हमारा ड्रग WCK5222 अभी कुछ यूरोपियन देशों में क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रहा है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन ने इसका जिक्र उभरते एंटीबायोटिक की तरह किया है।’ कंपनी का अगला कदम WCK5222 का भारत में ट्रायल शुरू करना है। रिसर्चर्स ने कहा कि WCK522 के लिए उनके पास खास USFDA अप्रूवल्‍स हैं और भारत में जल्‍द स्‍टडी शुरू होगी।

एंटीमाइक्रोबियल्‍स के दायरे में एंटीबायोटिक्‍स, एंटीवायरल्‍स, एंटीफंगल्‍स और एंटीपैरासिटिक्‍स आ सकते हैं। एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्‍टेंस या AMR तब होता है जब बैक्‍टीरिया, वायरस, फंजाई या पैरासाइट्स इवॉल्‍व होते हैं। धीरे-धीरे इनपर रेगुलर दवाएं बेअसर होने लगते हैं। मुख्‍य कारण एंटीमाइक्रोबियल्‍स का मिसयूज और ओवरयूज है।रिसर्च 2012 में 130 वैज्ञानिकों के साथ शुरू हुई। अमेरिका में 200 मरजीों पर फेज 1 ट्रायल हुआ। पता चला कि दवा इंसानों पर इस्‍तेमाल की जा सकती है। Wockhardt रिसर्च सेंटर के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर महेश पटेल ने कहा, ‘हमारा ड्रग WCK5222 अभी कुछ यूरोपियन देशों में क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रहा है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन ने इसका जिक्र उभरते एंटीबायोटिक की तरह किया है।’ कंपनी का अगला कदम WCK5222 का भारत में ट्रायल शुरू करना है। रिसर्चर्स ने कहा कि WCK522 के लिए उनके पास खास USFDA अप्रूवल्‍स हैं और भारत में जल्‍द स्‍टडी शुरू होगी। अगर ड्रग-रेजिस्‍टेंट इन्‍फेक्‍शन हो तो उसका इलाज खासा मुश्किल होता है। WHO के अनुसार, AMR पब्लिक हेल्‍थ के टॉप 10 खतरों में से एक है।

भारत जैसे देश में लोग खुद से एंटीबायोटिक्‍स खरीदकर खा लेते हैं। डॉक्‍टर्स के बेवजह एंटीबायोटिक्‍स प्रिस्‍क्राइब करने पर भी बहस होती है।रिसर्च 2012 में 130 वैज्ञानिकों के साथ शुरू हुई। अमेरिका में 200 मरजी पर फेज 1 ट्रायल हुआ। पता चला कि दवा इंसानों पर इस्‍तेमाल की जा सकती है। Wockhardt रिसर्च सेंटर के चीफ साइंटिफिक ऑफिसर महेश पटेल ने कहा, ‘हमारा ड्रग WCK5222 अभी कुछ यूरोपियन देशों में क्लिनिकल ट्रायल से गुजर रहा है। वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन ने इसका जिक्र उभरते एंटीबायोटिक की तरह किया है।’ कंपनी का अगला कदम WCK5222 का भारत में ट्रायल शुरू करना है। रिसर्चर्स ने कहा कि WCK522 के लिए उनके पास खास USFDA अप्रूवल्‍स हैं और भारत में जल्‍द स्‍टडी शुरू होगी। नतीजा यह हुआ है कि एंटीबायोटिक या एंटीमाइक्रोबियिल रेजिस्‍टेंस (AMR) बेहद चिंताजनक स्‍तर तक पहुंच गई है। इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) की AMR ट्रेंड्स पर रिपोर्ट बताती है कि ICU में भर्ती मरीजों को अब Carbapenem से कोई फायदा नहीं होता। इससे निमोनिया और सेप्टिकेमिया का इलाज होता आया है। रिसर्च के अनुसार, हर साल रेजिस्‍टेंस लेवल में 5% से 10% का उछाल देखने को मिल रहा है। इसकी मुख्‍य वजह एंटीबायोटिक्‍स का बेजा इस्‍तेमाल है।

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