वर्तमान में कांग्रेस के लिए गठबंधन करना मुश्किल होता जा रहा है! नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ ही इंडिया गठबंधन को अलविदा कह चुके हैं। विपक्षी गुट अब भी यह दावा कर रहा है कि नीतीश कुमार के बाहर निकलने से कोई नुकसान नहीं हुआ। विपक्षी गठबंधन को भरोसा था कि वह बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में बेहतर प्रदर्शन के जरिये 2019 में भाजपा वाली बढ़त को कम कर सकता था। हालांकि, नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद बीजेपी को इसका अधिक फायदा मिलने की उम्मीद है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी में भी इंडिया गुट को झटका दे दिया है। ममता बनर्जी ने घोषणा की है कि तृणमूल अकेले चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस ने महाराष्ट्र में उद्धव की शिवसेना के साथ बने रहने की उम्मीद जताई है। इसमें बहुजन विकास अघाड़ी में शामिल होने की संभावना है। नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ गठबंधन विपक्षी गठबंधन अयोध्या की पृष्ठभूमि में होने वाले कठिन लोकसभा चुनावों के लिए सड़क पर उतरने की उम्मीद कर रहा था। इस बीच विपक्षी गठबंधन के लिए नए सिरे से संकट पैदा हो गया है। इस बीच विपक्षी धड़े वाले इंडिया गठबंधन के भीतर अन्य सहयोगियों के बीच तालमेल नहीं बनने पर अभी स्थिति और गंभीर हो सकती है।
कांग्रेस ने नीतीश कुमार के लिए ‘गिरगिट’ और ‘गद्दार’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया। वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने ‘अविश्वसनीय’ कुमार के भाजपा के पाले में जाने बारे में जानकारी दी थी। विपक्ष ने बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल को ऐसे राज्यों के रूप में देखा है जहां महागठबंधन 2019 में बीजेपी की सीटों को काफी हद तक कम कर सकता है। नीतीश के जाने से बीजेपी को फायदा मिलना तय माना जा रहा है। पर्यवेक्षकों ने एक पैटर्न का अनुमान लगाया है कि बीजेपी ने अपने पुराने सहयोगियों को वापस लाना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ सूत्रों ने महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ बने रहने पर विश्वास व्यक्त करके चिंताओं को कम कर दिया है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि 48 में से 37 सीटों पर फैसला हो चुका है। मुंबई और मराठवाड़ा में कुछ सीटों पर फैसला होना बाकी है। शहर में सेना के पारंपरिक दावे और कांग्रेस के वहां जीतने के अपने इतिहास को देखते हुए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। गठबंधन में प्रकाश अंबेडकर की बहुजन विकास अघाड़ी को शामिल करने की उम्मीद के साथ समझौते को कागज पर अंतिम रूप देने के लिए 30 जनवरी को सहयोगियों की बैठक महत्वपूर्ण है।
हालांकि, मुख्य चिंता पश्चिम बंगाल बनी हुई है। यहां कांग्रेस अपने पुराने सहयोगी वाम गुट को छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के लिए तैयार है, लेकिन बाद में उसने अब अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है। कांग्रेस नेताओं ने भरोसा जताया कि ममता बनर्जी नरम पड़ जाएंगी। साथ ही स्थानीय इकाई की तरफ से पैदा की गई उलझनों के कारण ही सख्त रुख अपना रही हैं। भले ही बंगाल में कांग्रेस और वाम दलों के बीच समझौता है, लेकिन इच्छा के बावजूद सहयोगी दल बदलने में कांग्रेस की विफलता बिहार में पुनर्गठन की पृष्ठभूमि में एक गंभीर झटका के रूप में सामने आएगी। कांग्रेस इसके परिणामों को भलीभांति जानती है।
बिहार के झटके को कम करने के लिए, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शनिवार को पटना में हुए हंगामे के साथ ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए 11 सीटों की घोषणा की। इसका मकसद इंडिया गठबंधन की चिंताओं को दूर करने और इसकी एकजुटता का संदेश देने के लिए था। सपा ने पहले ही जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी से डील पक्की कर ली है। एसपी ने रविवार को कहा कि कांग्रेस के साथ दूसरे दौर की बातचीत चल रही है। इससे हिस्सेदारी में संभावित बढ़ोतरी का संकेत मिल रहा है। कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत के नेतृत्व में चर्चा सीटवार है। लेकिन चुनौतियां बरकरार हैं क्योंकि कहा जा रहा है कि आरएलडी ने ज्यादा सीटें मांगी हैं।
कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि झारखंड में 14 में से 13 सीटें फाइनल हो चुकी हैं। तमिलनाडु गठबंधन ऑटो पायलट पर है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली पर अभी तक कोई फाइनल नहीं हुआ है। एआईसीसी के एक प्रमुख पदाधिकारी ने कहा कि अगले सप्ताह से घोषणाएं आनी शुरू हो जाएंगी। इससे सभी संदेह दूर हो जाएंगे। हमें महाराष्ट्र को लेकर कोई चिंता नहीं है। हमें उम्मीद है कि टीएमसी भी हाथ मिला लेगी। इस बीच विपक्ष ‘मोदी सरकार की विफलता’, ‘जाति जनगणना’ और स्थानीय मुद्दों पर बिना समय बर्बाद किए एक ठोस रणनीति विकसित करना शुरू कर देगी।