Friday, May 2, 2025
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क्या नक्सलियों से लोहा लेना मुश्किल है?

नक्सलियों से लोहा लेना मुश्किल हो सकता है! जवानों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ की कई खबरें आपने सुनी होंगी। हाल ही में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में हुए नक्सली हमले में 10 जवान शहीद हो गए जबकि एक ड्राइवर की भी मौके पर मौत हो गई। कई बार नक्सल क्षेत्रों में जान जोखिम में रखकर काम करने वाले जवानों को सफलता मिलती है तो कई बार शहादत मिलती है। आज हम आपको बताएंगे नक्सली इलाकों में काम करने वाले उन जवानों के बारे में जो घने जंगलों, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों और बारूद के ढेर में राज्य की सुरक्षा के साथ स्थानीय लोगों की रक्षा के लिए काम करते हैं। हर साल छत्तीसगढ़ में छोटी बड़ी घटनाएं होती हैं जिसमें कई जवान नक्सलियों की गोलियों या फिर आईईडी के संपर्क में आने से जख्मी हो जाते हैं। छोटी-मोटी घटनाओं के बीच भी ये जवान राज्य और आम लोगों की रक्षा के लिए छत्तीसगढ़ के जंगलों में काम करते हैं। प्रदेश की पुलिस, DRG, CRPF में काम करने वाले जवान अपने परिवार से दूर रहकर लोगों की रक्षा कर रहे हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक जवान ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से बातचीत करते हुए नक्सली इलाकों में काम करने वाले जवानों के संघर्ष और दंतेवाड़ा में हुई 26 अप्रैल की घटना के बारे में जानकारी दी।

एयर कंडीशन कमरे के अंदर बैठकर लोग घटनाओं को लेकर कई तरह से बातें करते हैं। तपती धूप में पैदल चलकर बड़े-बड़े ऑपरेशन करना जहां गोलियां किस तरफ से चल रही है इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। दंतेवाड़ा में हुई 26 अप्रैल की घटना का जिक्र करते हुए जवान ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से अरनपुर क्षेत्र में नक्सलियों के बड़े समूह के होने की सूचना मिली थी। जिसके बाद 1 दिन पहले शाम 6 बजे से टीम जंगल के अंदर लगातार सर्च कर रही थी। इस बीच दोनों तरफ से गोलियां भी चली। वह सभी जवान लगभग 25 से 30 किलोमीटर कभी पैदल से चलते हुए तो कभी घसीटते हुए आगे बढ़ रहे थे। मौसम भी खराब था रुक-रुक कर बारिश हो रही थी। हवाएं भी तेज थी। शाम फिर रात और अब सुबह का वक्त हो चला था टीम अब जंगल से वापस निकलने की तैयारी में थी।

जवान ने बताया कि क्योंकि बड़ी संख्या में टीम जंगल के अंदर पहुंची हुई थी। ऐसे में नक्सलियों को भी इस बात की भनक लग चुकी थी जवानों की टीम का एक बड़ा हिस्सा जंगल के अंदर गया हुआ है जो वापस भी लौटकर आएगा। उसी दौरान लौटते वक्त करणपुर की सड़कों पर पहले से प्लान की हुए आईईडी से हमारे जवानों के वाहनों को निशाना बनाया गया। जिस वक्त डीआरजी जवानों से भरे वाहन को निशाना बनाया गया उसके थोड़ा पीछे हमारे जवानों का एक और जत्था चल रहा था।

घटनास्थल से लगभग 50 मीटर पहले जवानों ने फौरन गाड़ी रोकी और अपनी अपनी पोजिशन ले ली। उस वक्त जंगल में कई राउंड फायरिंग भी की गई। जिससे कि नक्सली अगर बड़ी संख्या में हो तो वह डर कर भाग जाएं या फिर सामने से आकर वार करें। जिसका मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके। कई राउंड फायरिंग के बाद जंगल में किसी तरह की हलचल नहीं दिखाई दी। जिसके बाद फौरन जवानों ने उस पूरे एरिया को अपने अंडर में कर लिया और घायल जवानों का हाल जानते होने बचाने का प्रयास किया गया। धमाका इतना जोरदार था की वाहन में सवार 10 डीआरजी के जवान और एक सिविलियन ड्राइवर शहीद हो गए।

नक्सली इलाकों में काम करने वाले जवानों की दिनचर्या भी बिल्कुल अलग है। साल के 365 दिन जवान जंगलों और पथरीले पहाड़ों पर हजारों किलोमीटर पैदल चलते हैं। कभी-कभी दिन ऐसा होता है कि 24 घंटे बीत जाने के बाद भी हम केवल पानी पीकर रह जाते हैं। इतना ही नहीं जिन इलाकों में नक्सली ज्यादा होते हैं वहां हम बारूद के ठेर पर सर्च ऑपरेशन चलाते हैं। हमारी टीम जंगल में हर एक कदम पर बम को ढूंढती हुई आगे बढ़ती रहती है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि जिस रास्ते को बनाकर हम जाते रहते हैं उसके 5 मीटर दाएं और बाएं जमीन के अंदर आईईडी प्लांट रहता है।

जवान ने कहा कि फोर्स पर सवाल खड़े करने वाले लोग को मैसेज दिया। जवान ने कहा कि अगर एक दिन भी ऐसे लोग हमारे साथ काम करके देख ले तो उनको पता लग जाएगा कि फोर्स किन हालातों पर जंगल में काम करती है। हर इंसान से गलतियां होती हैं कभी-कभी गलतियां हमसे भी हो जाती हैं जिसका खामियाजा हमें जान देकर भुगतना पड़ता है। किसी को भी बलि का बकरा बनाना बहुत आसान है। कमियां सभी जगह होती हैं। हम भी उन कमियों पर बिना फोकस किए अपना काम करते हैं। इंटेलिजेंस फैलियर्स ऐसी बातों को करना बेहद गलत है। क्योंकि एक आदमी बैठ कर बड़े-बड़े आईईडी को ब्लास्ट कर सकता है। ऐसे में इंटेलिजेंस फैलियर कहकर फोर्स पर सवाल नहीं खड़े करना चाहिए। बस्तर में हर जगह नक्सली हैं यहां की सड़कों पर कहां क्या लगा है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।

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