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क्या भारत में बुलडोजर से इंसाफ लेना सही है?
Friday, April 18, 2025
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क्या भारत में बुलडोजर से इंसाफ लेना सही है?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि भारत में बुलडोजर से इंसाफ लेना सही है या नहीं! किसी व्यक्ति के घर को गिराना क्या जायज है? इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हैं जब शहरों को नष्ट कर दिया गया। 480 ईसा पूर्व में जेरक्सेस प्रथम द्वारा एथेंस को जलाना, वियतनाम में अमेरिकी सेना, गृहयुद्ध के दौरान सीरियाई सेना, यहां तक कि अफगानिस्तान में सोवियत सेना। लोगों के घरों को नष्ट करके सदियों से या तो सामूहिक दंड के रूप में या दुश्मन बलों को आश्रय और अन्य संसाधनों तक पहुंच से वंचित करने के लिए किया जाता रहा है। लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों के लिए कोई बाहरी खतरा न होने पर भी अपने ही नागरिकों के घरों पर बुलडोजर चलाना कितना जरूरी है। मई 2005 में जिम्बाब्वे सरकार ने 10 प्रांतों से स्लम एरिया से बस्तियों को हटाने के लिए एक अभियान शुरू किया। उस समय उसका बहाना यह था कि वह अवैध निर्माण हटाकर नगर निगम के कानून लागू किया जा रहा है। हालांकि मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया कि इन लोगों ने चुनाव में विपक्ष का साथ दिया जिसकी वजह से उन्हें दंडित किया जा रहा है। भारत के भीतर भी हाल ही में बुलडोजर एक्शन हुए हैं। 2019 की शुरुआत में, इथियोपियाई सरकार ने जाहिर तौर पर विकास परियोजनाओं के लिए जगह बनाने के लिए अदीस अबाबा के बाहरी इलाके में हजारों घरों पर बुलडोजर चला दिया। संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने इस पर चिंता जताई थी। इन दोनों देशों के अलावा भारत के कुछ राज्यों ने बुलडोजर के साथ क्या किया, इसका अंतरराष्ट्रीय उदाहरण मिलना मुश्किल है। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जीडीपी के हिसाब से और 2027 तक नंबर 3 बनने की ओर अग्रसर है। इथियोपिया 59वें और जिम्बाब्वे 110वें स्थान पर है।

कई लोग तर्क दे सकते हैं कि हरियाणा के दंगा प्रभावित नूंह और यूपी के मथुरा में हालिया बुलडोजर कार्रवाई में ध्वस्त किए गए घर सरकारी/रेलवे भूमि पर अतिक्रमण थे। लेकिन जब हरियाणा के गृह मंत्री स्वयं नूंह में तोड़फोड़ को हिंसा का ‘इलाज’ कहते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य ने अतिरिक्त न्यायिक तरीकों से अतिक्रमण के अलावा किसी अन्य अपराध के लिए चुनिंदा लोगों को दंडित किया है। संदेश था – ‘जब तक आप हमारी अवहेलना नहीं करेंगे, हम आपको आपके अवैध घरों में रहने देंगे।’ यह केवल अदालती हस्तक्षेप था जिसने नूंह और मथुरा में बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दिया।

कुछ एक्सपर्ट इस ओर इशारा कर सकते हैं कि इजराइल को भी इस सूची का हिस्सा होना चाहिए। वहां की सरकार ने 1947 के बाद से इजरायल और कब्जे वाले क्षेत्र में 1.3 लाख से अधिक फिलिस्तीनी घरों को ध्वस्त कर दिया है। चूंकि सामूहिक दंड के रूप में घरों को ध्वस्त करना काफी हद तक युद्ध का कार्य माना गया है, इसलिए इसे जिनेवा कन्वेंशन के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है। अनुच्छेद 33 में लिखा है किसी भी व्यक्ति को उस अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है जो उसने व्यक्तिगत रूप से नहीं किया है। सामूहिक दंड और इसी तरह डराने-धमकाने या आतंक के सभी उपाय की मनाही है। लूटपाट निषिद्ध है। व्यक्ति की संपत्ति के खिलाफ प्रतिशोध ठीक नहीं।

हालांकि ऐसा कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं है जो देश के भीतर शांतिकाल में प्रतिशोध के रूप में घरों को ध्वस्त करने से रोकता है, शायद इसलिए कि यह अत्यंत दुर्लभ है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कई समाज में एक घर अपने साथ सामाजिक प्रतिष्ठा लेकर आता है। बता दें कि जब हरियाणा के गृह मंत्री स्वयं नूंह में तोड़फोड़ को हिंसा का ‘इलाज’ कहते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य ने अतिरिक्त न्यायिक तरीकों से अतिक्रमण के अलावा किसी अन्य अपराध के लिए चुनिंदा लोगों को दंडित किया है। संदेश था – ‘जब तक आप हमारी अवहेलना नहीं करेंगे, हम आपको आपके अवैध घरों में रहने देंगे।’ यह केवल अदालती हस्तक्षेप था जिसने नूंह और मथुरा में बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दिया। जब आप लोगों के सिर से छत छीनते हैं, तो आप उन्हें समाज में नीचे धकेल रहे हैं और उन्हें और अधिक असुरक्षित बना रहे हैं। सुरक्षा प्रदान करने वाला घर लेना एक बात है लेकिन किसी व्यक्ति का आत्म-सम्मान छीन लेना दूसरी बात है। और वह भी सिर्फ एक खास आस्था या समुदाय से होने, एक खास पड़ोस में रहने या किसी दंगे में शामिल होने के महज शक के आधार पर। यह मध्ययुगीन न्याय है जिसके लिए लोकतंत्र की जननी होने पर गर्व करने वाले देश में कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

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