जेडीयू के नेता हरिवंश नारायण सिंह बीजेपी का साथ दे रहे है! नई संसद में कार्यवाही तो शुरू नहीं हुई है लेकिन इतिहास बन गया है। सेंगोल ने जगह ले ली है। नए संसद भवन का उदघाटन भी किसी कार्यवाही वाले गरमा गरम दिन से कमतर न था। खूब राजनीति हुई। नया इतिहास बना तो दोहराया भी गया। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने इतिहास दोहराया। समझने के लिए हम आपको आज से 15 साल पीछे लिए चलते हैं। तब पुरानी संसद ही थी और जबर्दस्त बहस चल रही थी। मनमोहन सिंह सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर बहस। अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु समझौते के मुद्दे पर बहस। वामपंथ के सफाए के बावजूद भारत का लेफ्ट सिद्धांत की आग में राष्ट्रहित की बलि चाह रहा था। परमाणु ऊर्जा से ज्यादा अमेरिका उनके पूंजीवाद का प्रतीक और वामपंथ का जानी दुश्मन रहा है। लिहाजा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने परमाणु डील के विरोध में मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया। 22 जुलाई 2008 का दिन मनमोहन सिंह के करो या मरो वाला था। और लोकसभा के चेयरमैन थे सोमनाथ चटर्जी। सीपीएम के कद्दावर नेता। प्रकाश करात ने जो समर्थन वापस लेने की जो चिट्ठी राष्ट्रपति को सौंपी थी उसमें बतौर सांसद सोमनाथ चटर्जी का भी नाम था। लेकिन चटर्जी ने साफ कर दिया कि वो जिस पद पर बैठे हैं , पार्टी से ऊपर है। अगले ही दिन सीपीएम ने 10 बार सांसद रहे इस कद्दावर नेता को बेरहमी से बाहर कर दिया। अब हरिवंश जी को देखिए। उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार नई संसद से परेशान हैं। तर्क नहीं राजनीति के कारण। मोदी के खिलाफ गोलबंदी कर रहे हैं तो मोदी का विरोध जरूरी है। नीतीश दो कदम आगे चले गए और कह दिया कि नई संसद की जरूरत ही नहीं थी। उनके सिपहसालार ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि सरकार बदली तो नई संसद में कुछ और काम होगा। उधर नीतीश के प्रसाद से राज्यसभा के उप सभापति बने हरिवंश पीएम मोदी के साथ कदमताल करते हुए नए भवन की प्राण प्रतिष्ठा में जतन से लगे थे। उन्हीं के जरिए राष्ट्रपति का संदेश पढ़वा कर बीजेपी ने नीतीश कुमार को आईना भी दिखा दिया। बोल रहे थे हरिवंश लेकिन जेडीयू का तीर चुभ रहा था नीतीश के सीने में। राष्ट्रपति के बदले प्रधानमंत्री संसद का उदघाटन क्यों कर रहे हैं, ये सवाल नीतीश का था तो जवाब हरिवंश दे रहे थे। राष्ट्रपति का संदेश पढ़ते हुए उन्होंने कहा – संविधान बनाने वालों ने तय किया कि चुनी हुई सरकार देश चलाएगी। मुझे इस बात की बहुत संतुष्टि है कि संसद के प्रति विश्वास के प्रतीक प्रधानमंत्री मोदी इस संसद का उदघाटन कर रहे हैं।
खैर, अभी तक हरिवंश जी पार्टी में बचे हुए हैं। जनता दल यूनाइटेड ने हरिवंश पर कोई फैसला नहीं किया है लेकिन बेइज्जत करना जरूर शुरू कर दिया है। जब नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ तीसरा यू-टर्न लिया और लालू की गोद में बैठ गए तो हरिवंश जी बच गए। राष्ट्रपति के बदले प्रधानमंत्री संसद का उदघाटन क्यों कर रहे हैं, ये सवाल नीतीश का था तो जवाब हरिवंश दे रहे थे। राष्ट्रपति का संदेश पढ़ते हुए उन्होंने कहा – संविधान बनाने वालों ने तय किया कि चुनी हुई सरकार देश चलाएगी। मुझे इस बात की बहुत संतुष्टि है कि संसद के प्रति विश्वास के प्रतीक प्रधानमंत्री मोदी इस संसद का उदघाटन कर रहे हैं।दरअसल पार्टी अनैतिक गठबंधन करने के बाद लाज लज्जा बची है, इसका मौका ढूंढ रही थी। हरिवंश में ये मौका मिल गया। ललन सिंह ने डंके की चोट पर कहा कि हरिवंश जी उपसभापति बने रहेंगे। लेकिन उदघाटन में हुई फजीहत के बाद नीतीश की पार्टी तिलमिला गई है। उधर बिहार बीजेपी के नेता भी चुटकी लेने से बाज नहीं आ रहे। तो आज जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने ललन सिंह की नैतिकता पर धावा बोल दिया। ये कह कर कि हरिवंश ने अपनी लेखनी और जमीर दोनों बेच दी है और जल्दी ही उनके खिलाफ सख्त फैसला लिया जाएगा।
लेकिन नीतीश कुमार क्या ऐसा कर सकते हैं? पार्टी से निकालना तो उनके अख्तियार में है लेकिन इससे हरिवंश की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सोमनाथ चटर्जी की सेहत पर भी नहीं पड़ा था। 2008 में जब सीपीएम ने उन्हें पार्टी ने निकाल दिया तो मांग उठी कि वो लोकसभा के अध्यक्ष कैसे रह सकते हैं। संविधान की समीक्षा हुई तो दसवीं अनुसूची के तहत सोमनाथ की कुर्सी बची रही। 10 वीं अनुसूची को दल-बदल विरोधी कानून भी कहा जाता है।