उत्तराखंड का जोशीमठ अब भी दहक रहा है! जोशीमठ एक ऐसी आपदा है जिसने लोगों के आशियाने ध्वस्त कर दिए, उनके सपने तोड़ दिये। पाई-पाई जोड़कर घर बनाया लेकिन अपने घरों को इस तरह आपदा की भेंट चढ़ते देख लोगों का गुस्सा एक बार फिर सड़कों पर आंदोलन के रूप में नजर आने लगा है। जिस आपदा ने उनके घरों की नींव हिला दी, उसी आपदा के जख्म ने आपसी सामाजिक रिश्तों में भी दरार डाल दी है। जोशीमठ आपादा पीड़ितों के अधिकारों के लिए पहले एक संगठन था। धीरे-धीरे बाद में कई और संगठन बने। इन अलग से बने संगठन के मुखिया भले ही यह दुहाई दे रहे हों कि अलग संगठन बनाने से किसी तरह का मतभेद नहीं होगा, लेकिन लोग इसे आपसी रिश्ते टूटने की शुरूआत मान रहे है। यहां आ कर बसे लोग इससे आहत हैं तो वहीं शुरू से आंदोलन कर रहे नेता इसे राजनीतिक षड़यंत्र बता रहे हैं। कहने को जोशीमठ के मूल निवासी और बाहर से आ कर बसे लोग कितना ही यह कहें कि उनके बीच कोई मतभेद या मनभेद नहीं है लेकिन जमीनी हालात इससे उलट कहानी बयान कर रहे हैं। आंदोलन के एक साल के भीतर आंदोलनकारियों के तीन से चार संगठन अपनी लड़ाई लड़ने के लिए खड़े हो गए। इससे यह साफ हो रहा है कि यहां के लोग अब अपने-अपने तरीके से अपने घर और जमीन की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। इस तरह से अलग-अलग मोर्चों का खड़ा होना यह साबित करता है कि अब तक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों को अपने नेताओं पर भरोसा नहीं रहा है। जोशीमठ में अब तक मिलजुलकर आपदा से लड़ते-लड़ते अब जोशीमठ के मूल, पुश्तैनी लोग अपनी लड़ाई को थोड़ा अलग तरीके से लेकर सड़कों पर उतरे हैं। अब ये अपना अलग ‘मूल निवासी स्वाभिमान संगठन बनाकर’ सरकार से अपने हक हकूकों की लड़ाई लड़ने को सड़कों पर उतर रहे हैं।
जोशीमठ में दरारें आने का सिलसिला भले ही पुराना हो लेकिन 14 महीने पहले अचानक जब दरारों ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया तो लोग एकजुट हो कर सरकार, एनटीपीसी और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। आंदोलनकारियों के तेवरों को देखते हुए सरकार हरकत में आई और तमाम आश्वासनों के बाद विस्थापन का दावा किया गया। लेकिन अब इस वायदे पर देरी होते देख लोगों के सब्र का बांध टूट रहा है। यहीं से आंदोलन में बिखराव दिखने लगा। लोग अपनी जमीन और घर की लड़ाई खुद लड़ने के लिए अलग संगठन बना कर आगे आ रहे हैं। अब मूल निवासिसयों का अलग संगठन बन गया है। इसका असर आंदोलन करने वालों और नेताओं के बीच भी नजर आया। यह संगठन बनने के बाद अब यहां पर बाहर से आ कर बसे लोग खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं।
दरअसल जोशीमठ में डेढ़ वर्ष पहले दिसंबर 2022 में इन दरारों ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया था। घरों में दरारें पहले से ही आ रही थीं लेकिन साल 2022 से ज्यादा दिखाई देने लगीं थीं। जनवरी 2023 की शुरुआत में ये दरारें और अधिक चौड़ी हुईं और भूधंसाव बढ़ने लगा था। नगर के सुनील और मनोहर बाग वार्ड में कई आवासीय भवन और होटल इन दरारों की चपेट में आए। नगर के विभिन्न वार्डों में स्थित लगभग 600 भवनों में में दरारें पड़ी।
जोशीमठ में बढ़ते भूधंसाव और दरारों को देखते हुए जोशीमठ के आपदा प्रभावित लोग 5 जनवरी 2023 को भारी संख्या में सड़कों पर उतर आए। उन्होंने नारेबाजी-प्रदर्शन कर सड़कें जाम की। पूरा दिन कड़कडाती सर्दी के बीच चौराहों पर अलाव जलाकर लोगों ने धरना दिया। तब अपर जिलाधिकारी से जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के नेतृत्व में बातचीत हुई। जोशीमठ के आपदा प्रभावितों की सुध लेने, उनकी उचित व्यवस्था करने, विस्तृत विस्थापन नीति लाने के साथ तमाम बिंदुओं पर बातचीत के बाद चक्का जाम खोला गया और यह धरना स्थगित हुआ। जोशीमठ में पड़ी दरारों के कारण लोगों में बढ़ते गुस्से को देखते हुए शासन स्तर से कार्रवाई शुरू हुई और जोशीमठ के भवनों को अलग-अलग श्रेणियो में बांटा गया। कुछ को सुरक्षित, असुरक्षित और कुछ को ठीक-ठाक की श्रेणी में रखा गया।कुछ भवनों को सुरक्षा की दृष्टि से ध्वस्त भी कर दिया गया था और लोगों को मकान खाली करने के निर्देश हुए। जब तक लोगों की उचित व्यवस्था नहीं हुई तब तक उन्हें राहत शिविरों में रखा गया और किराए पर जाने के लिए किराया भी मुहैया करवाया गया।
वैज्ञानिकी सर्वे में जोशीमठ के अलग-अलग 9 वार्डों में स्थित लगभग 1200 मकान खतरे में बताए गए और इन मकानों को खाली करने के निर्देश हुए। लोगों को सुझाव पत्र बांटे गए। इन पत्रों में आपदा प्रभावित लोगों को कई प्रकार के विकल्प दिए गए थे जैसे कि लोग अपने मकान का भुगतान किस प्रकार चाहते हैं। जमीन के बदले जमीन या भवन के बदले भवन भी ले सकते हैं। नगर में यह विकल्प पत्र बांटने के बाद और आपदा के इस दौर में जोशीमठ के मूल और पुश्तैनी लोग अपनी लड़ाई अलग-अलग अंदाज में लड़ रहे हैं। दरअसल मूल और पुश्तैनी लोगों को यह चिंता है कि यदि जोशीमठ से पलायन करना पड़ा तो वह कहां जाएंगे। साथ ही यहां उनके हक हकूक मरघट, पनघट, गोचर भूमि आदि का क्या होगा। मूल निवासियों ने यह संगठन बनाने के बाद बांटे गए विकल्प पत्र वापस लौटा दिए और जोशीमठ छोड़ने से इनकार किया। इन लोगों ने सरकार से यहीं पर व्यवस्था करने की मांग की है।बीते रविवार को जोशीमठ में मूल निवासी स्वाभिमान संगठन के बैनर तले एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस विशाल जुलूस का हिस्सा जोशीमठ के सभी मूल और पुश्तैनी निवासी थे। संगठन के अध्यक्ष के मुताबिक इस संगठन के बैनर तले जोशीमठ के मूल निवासियों के हक हकूकों की लड़ाई लड़ी जा रही है।
1976 में सरकार द्वारा नियुक्त एमसी मिश्रा समिति ने पहले ही चेतावनी दी थी कि निर्माण कार्य से बचा जाना चाहिए, विशेष रूप से इसकी संवेदनशीलता के कारण पहाड़ी के ढलाव पर निर्माण नहीं होना चाहिए। भूवैज्ञानिकों के अनुसार आरनोल्ड हेम और ऑगस्ट गैनसर ने 1939 में अपनी किताब सेंट्रल हिमालय में कहा था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा है। यह भूस्खलन कब हुआ, इस बारे में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल की किताब में कहा गया है कि कत्यूर राजवंश की जोशीमठ में राजधानी हुआ करती थी, लेकिन लगभग 1,000 साल पहले हुए एक भूस्खलन की वजह से कत्यूर राजाओं ने यहां से अपनी राजधानी हटा दी थी।
दिसंबर 2022 के अंतिम सप्ताह में जोशीमठ में दरारों में तेजी आने की लोगों की बात की तस्दीक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने की थी। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा 13 जनवरी 2023 को सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर जानकारी दी गई कि 27 दिसंबर 2022 से 8 जनवरी 2023 (केवल 12 दिन) के बीच जोशीमठ 5.4 सेंटीमीटर नीचे धंस गया, जबकि अप्रैल-नवंबर 2022 के बीच सात महीने में 9 सेमी भूधंसाव हुआ था। हालांकि शाम होते-होते राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के हस्तक्षेप के बाद इसरो ने यह रिपोर्ट अपनी वेबसाइट से हटा दी।