Wednesday, February 12, 2025
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क्या मायावती को है अखिलेश यादव से खतरा?

मायावती को अब अखिलेश यादव से खतरा हो सकता है! उत्तर प्रदेश की राजनीति के दो प्रमुख दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच वर्षों बाद एक बार फिर रिश्ते तल्खी की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। एक तरफ अखिलेश यादव हैं जो इंडिया गठबंधन को साफ कर चुके हैं कि बसपा से गठबंधन होने की सूरत में वह साथ नहीं रहेंगे। वहीं दूसरी तरफ मायावती भी अब अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी को लेकर अपना आक्रामक होती दिख रही हैं। पिछले दो दिनों से मायावती लगातार समाजवादी पार्टी पर हमलावर हैं। वह अचानक से स्टेट गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाने लगी हैं और बसपा कार्यालय की सुरक्षा को लेकर अनहोनी की आशंका जता रही हैं। सवाल ये है कि जिस गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर उन्होंने अखिलेश-डिंपल को मंच पर आशीर्वाद दिया था, मुलायम सिंह यादव के साथ मंच साझा किया था, वह फिर कैसे याद आ गया? क्या वाकई मायावती को खतरा लग रहा है? पूरा मामला समझने के लिए आपको थाेड़ा पीछे से शुरुआत करनी होगी। 2017 में भाजपा की सत्ता पर जोरदार वापसी से पहले उत्तर प्रदेश में राजनीतिक माहौल सपा और बसपा के इर्द-गिर्द ही सिमटा होता था। 90 के दशक से लेकर 2012 तक के विधानसभा चुनाव गवाह हैं कि दोनों पार्टियों को इसका लाभ भी खूब मिला। दोनों ही दलों ने इसी आपसी विराेध के चलते कई बार गठबंधन सरकार और एक-एक बार बहुमत की सरकार भी बनाई। सवाल ये है कि क्या पुरानी प्रतिद्वंद्विता फिर से जिंदा होने का लाभ इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा?

हाल के कुछ घटनाक्रम पर नजर डालें तो कहानी वोट बैंक के इर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश की पहल पर मायावती ने गठबंधन की हामी भरी। दोनों पार्टियों ने चुनाव लड़ा और 15 सीटें लोकसभा की जीतीं। इनमें 10 सीटें बसपा के खाते में गईं, वहीं अखिलेश सिर्फ 5 सीटें ही सपा को जितवा सके। चुनाव के बाद मायावती ने ये कहकर गठबंधन से किनारा कर लिया कि बसपा के वोट तो सपा को ट्रांसफर हुए लेकिन सपा के वोट बसपा प्रत्याशियों को नहीं मिला। हालांकि हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही थी।

बहरहाल, मायावती के गठबंधन तोड़ने के बाद अखिलेश यादव ने दलित वोटरों को जोड़ने के बड़े प्लान पर काम करना शुरू किया। उन्होंने बसपा के ही कई दिग्गज नेताओं को अपने पाले में किया। आज अखिलेश यादव पीडीए प्लान यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को एक साथ लाने की मुहिम में जुटे हैं। इसी बीच 2022 के विधानसभा चुनावों में एक और बात हुई। इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी सिर्फ 1 सीट जीत सकी। समाजवादी पार्टी ने 111 सीटें जीतीं और चुनाव परिणाम में मुस्लिम वोटरों का एकतरफा झुकाव सपा की तरफ नजर आया। ये बड़ा बदलाव था क्योंकि यूपी में बसपा और सपा दोनों की ही ताकत मुस्लिम मतदाता रहे हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बसपा को तगड़ा झटका लगा।

ताजा घटनाक्रम की बात करें तो दिसंबर में इंडिया गठबंधन की बैठक हुई। यहां अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि अगर बहुजन समाज पार्टी को गठबंधन में शामिल करने की कवायद हाेती है तो समाजवादी पार्टी भी निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है। अखिलेश ने साफ कर दिया कि दोनों पार्टियां एक साथ गठबंधन में शामिल नहीं हाे सकतीं। मीडिया में ये बात सामने आई तो मायावती के उत्तराधिकारी और बसपा के राष्ट्रीय महासचिव आकाश आनंद ने तंज किया, “इंडिया अलायंस की बैठक में कुछ लोग भाजपा से कम और बीएसपी से ज्यादा डरे हुए हैं।” लेकिन बात यहीं तक रुकी नहीं अखिलेश अब सार्वजनिक तौर पर अपने तंज भरे अंदाज में बसपा से किनारा करते नजर आने लगे हैं। पिछले दिनों बलिया में जब बसपा के इंडिया गठबंधन में शामिल होने पर सवाल पूछा गया तो अखिलेश ने कहा कि उनकी मायावती की जिम्मेदारी कौन लेगा?

अखिलेश का बयान आया तो जवाब में मायावती बिफर उठीं। उन्होंने न सिर्फ अखिलेश को गिरेबान में झांकने की नसीहत दे डाली बल्कि मुलायम सिंह यादव को भी लपेटे में ले लिया। मायावती ने एक्स पर लिखा, “अपनी व अपनी सरकार की खासकर दलित-विरोधी रही आदतों, नीतियों एवं कार्यशैली आदि से मजबूर सपा प्रमुख द्वारा बीएसपी पर अनर्गल तंज कसने से पहले उन्हें अपने गिरेबान में भी झांंककर जरूर देख लेना चाहिए कि उनका दामन भाजपा को बढ़ाने व उनसे मेलजोल के मामले में कितना दागदार है। तत्कालीन सपा प्रमुख द्वारा भाजपा को संसदीय चुनाव जीतने से पहले व उपरान्त आर्शीवाद दिए जाने को कौन भुला सकता है। फिर भाजपा सरकार बनने पर उनके नेतृत्व से सपा नेतृत्व का मिलना-जुलना जनता कैसे भूला सकती है? ऐसे में सपा साम्प्रदायिक ताकतों से लडे़ तो यह उचित होगा।”

मायावती यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने चाैबीस घंटे के बाद एक्स के माध्यम से सपा पर फिर हमला किया। इस बार उन्होंने सपा से 2019 गठबंधन करने पर सफाई दी और स्टेट गेस्ट हाउस कांड की यादें ताजा करते हुए बसपा कार्यालय की सुरक्षा की गुहार तक लगा दी। मायावती ने लिखा, “सपा अति-पिछड़ों के साथ-साथ जबरदस्त दलित-विरोधी पार्टी भी है, हालांकि बीएसपी ने पिछले लोकसभा आमचुनाव में सपा से गठबन्धन करके इनके दलित-विरोधी चाल, चरित्र व चेहरे को थोड़ा बदलने का प्रयास किया। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद ही सपा पुनः अपने दलित-विरोधी जातिवादी एजेंडे पर आ गई। अब सपा मुखिया जिससे भी गठबन्धन की बात करते हैं उनकी पहली शर्त बसपा से दूरी बनाए रखने की होती है, जिसे मीडिया भी खूब प्रचारित करता है।”

उन्होंने लिखा कि इस असुरक्षा को देखते हुए सुरक्षा सुझाव पर पार्टी प्रमुख को अब पार्टी की अधिकतर बैठकें अपने निवास पर करने को मजबूर होना पड़ रहा है, जबकि पार्टी दफ्तर में होने वाली बड़ी बैठकों में पार्टी प्रमुख के पहुंचने पर वहां पुल पर सुरक्षाकर्मियों की अतिरिक्त तैनाती करनी पड़ती है। ऐसे हालात में बीएसपी यूपी सरकार से वर्तमान पार्टी प्रदेश कार्यालय के स्थान पर अन्यत्र सुरक्षित स्थान पर व्यवस्था करने का भी विशेष अनुरोध करती है, वरना फिर यहां कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है। साथ ही, दलित-विरोधी तत्वों से भी सरकार सख़्ती से निपटे, पार्टी की यह भी मांग है।

पूरे घटनाक्रम पर गौर करें तो अखिलेश की रणनीति साफ दिख रही है, वह पीडीए के अपने फॉर्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं। 2019 में वह बसपा से गठबंधन का खामियाजा उठा चुके हैं। अब वह दोबारा बसपा से करीबी के मूड में नहीं हैं। वह दोबारा किसी गठबंधन से बच रहे हैं, जिसमें बसपा और सपा साथ हों। वहीं दूसरी तरफ मायावती के लिए चिंता की बात ये है कि बसपा इस समय राजनीतिक रूप से हाशिए है। पार्टी के कई दिग्गज नेता उनसे दूर हो चुके हैं। 2019 में जीते सांसद भी दूसरी पार्टियों के संपर्क में हैं। बसपा की ताकत माने जाने वाले दलित वोट बैंक पर 2017 के बाद से भाजपा बड़ी सेंध लगा चुकी है। वहीं मुस्लिम मतदाता भी पार्टी से मुंह मोड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसी परस्थिति में मायावती का ये स्टेट गेस्ट हाउस की यादें ताजा कराने की दावं कितना चलेगा ये समय ही बताएगा।

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