वर्तमान में देश भर में मंकीपॉक्स फैलता ही जा रहा है! दो साल से अधिक समय से दुनिया कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रही है, अभी इससे पूरी तरह से उबर भी नहीं पाए थे कि एक नया वायरस मंकीपॉक्स दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत सहित अब तक 75 देशों में वायरस की पुष्टि हो चुकी है। 16 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और 5 लोगों की जान जा चुकी है। अकेले भारत में 4 मामलों की पुष्टि हो चुकी है, जिसमें 3 केरल में और एक मरीज दिल्ली में है। WHO ने मौजूदा हालात को देखते हुए ग्लोबल इमरजेंसी घोषित कर दी है। ऐसे में मंकीपॉक्स क्या है और यह कितना खतरनाक है, आने वाले समय में स्वास्थ्य पर इसका कितना असर पड़ने की आशंका है, इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। यह एक रेयर जूनोटिक बीमारी है, जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण से होती है। यह पॉक्सिविरेडे परिवार से संबंध रखता है, इसमें चेचक की बीमारी पैदा करने वाले वायरस भी होते हैं। वायरस का एक परिवार होता है, उसमें अलग-अलग वायरस और उसके स्ट्रेन होते हैं, जैसे कोरोना वायरस एक परिवार है, इसमें कोरोना के अलग-अलग वायरस यानी स्ट्रेन अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, ओमिक्रॉन थे।
एलएनजेपी के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुरेश कुमार का कहना है कि कोरोना आरएनए वायरस है तो यह डीएनए वायरस है। यह वायरस हवा में नहीं फैलता है, लेकिन मरीज के संपर्क में आने से, उसके ड्रॉपलेट्स से और शारीरिक संबंध की वजह से एक से दूसरे में जा सकता है। इस वजह से यह 98 परसेंट समलैंगिक में पाया जा रहा है। इस वायरस से बचाव के लिए जरूरी है कि जो संक्रमित हैं उन्हें आइसोलेट कर दिया जाए और बाकी लोगों को उससे दूर रखा जाए।
किसी भी वायरस से संक्रमित होने के बाद उत्पन्न लक्षण को समझना जरूरी है। इस वायरस से संक्रमित इंसान में फीवर, गले में खराश, सांस में दिक्कत होती है। इसके अलावा चिकनपॉक्स की तरह शरीर में रैशेज और दाने बन जाते हैं, जो पूरे शरीर पर दिखने लगते हैं। दाने का आकार बड़ा होता है और इसमें पस भर जाती है। इसका इनक्यूबेशन पीरियड 5 से 21 दिन का है, यह अपने आप ठीक हो जाता है। डॉ. जुगल किशोर ने मंकीपॉक्स नाम के बारे में बताया कि यह वायरल इंफेक्शन है। इसका मंकी से कोई डायरेक्ट संबंध नहीं है, चूंकि एक बार लैब के अंदर बंदरों के बीच यह संक्रमण फैला था, इस वजह से इसका नाम मंकीपॉक्स रखा गया। इसका ट्रांसमिशन वाइल्ड एनिमल के जरिए इंसान में हो सकता है और इसके बाद इंसान से इंसान में संक्रमण जा सकता है।
इस वायरस का पता लगाना आसान नहीं है, इसकी जांच प्रक्रिया भी अगल है। डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि इसके लिए आरटी पीसीआर टेस्ट करना होता है, लेकिन सैंपल लेने का तरीका अलग है। कोविड में वायरस की पहचान के लिए नाक या गले का स्वैब लेते हैं, लेकिन इसमें मरीज के शरीर में बने रैश के अंदर का पानी निकालते हैं और उसकी पीसीआर जांच की जाती है। इस बीमारी की पहचान के लिए क्लीनिकल और डायग्नोस्टिक दोनों जरूरी है। क्लीनिकल में यह देखा जाता है कि मरीज को फीवर के अलावा रैशज या अन्य क्या-क्या दिक्कत हैं। इसके अलावा लैब में इसकी पीसीआर जांच में डीएनए का मिलान किया जाता है, अगर मिल जाता है तो मंकीपॉक्स है। फिलहाल देश में एनआईवी पुणे में ही इसकी जांच हो रही है, लेकिन इसके अलावा 15 अन्य लैब को इसके लिए तैयार किया जा रहा है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार कुछ मामले में यह सीवियर हो सकता है। दो स्ट्रेन हैं। पहला कांगो और दूसरा पश्चिमी अफ्रीकी स्ट्रेन। दोनों स्ट्रेन में 5 साल से छोटे बच्चों को अधिक खतरा है। कांगो स्ट्रेन से संक्रमण में डेथ रेट 10 परसेंट तक हो सकता है, जबकि पश्चिमी अफ्रीकी स्ट्रेन में यह 1 से 3 परसेंट तक हो सकता है। यह जानवरों में होने वाला वायरस है। किसी संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से यह इंसान तक पहुंचता है और फिर इंसान से यह दूसरे इंसान और फिर कम्यूनिटी स्तर पर फैल सकता है। वायरस मरीज के जख्म से निकल कर आंख, नाक और मुंह के जरिए दूसरे इंसान तक पहुंच सकता है। यह कुत्ते, बिल्ली, बंदर जैसे जानवरों के संपर्क में आए बेडस, कपड़े से भी फैल सकता है। एक संक्रमित इंसान के बहुत करीब जाने, हाथ मिलाने से यह फैल सकता है। सेक्स करने और किस करने पर भी यह वायरस फैल सकता है।
पैनिक होने वाली बात नहीं है। यह वायरस हवा में नहीं फैलता है। इसके महामारी के रूप में फैलने की आशंका बहुत कम है। यह कोविड से अलग है। यह संक्रमित मरीज के बहुत करीब जाने से ही होता है और मरीज के कपड़े, जख्म से निकलने वाले पस के संपर्क में आने से फैलता है। इसलिए, यह उस स्तर पर खतरनाक नहीं है। डरे नहीं, पैनिक न हों। बस जरूरत है कि आप सतर्क रहें। डॉक्टरों की बात मानें, एक्सपर्ट की मानें और गुमराह न हों। दूसरों की बातों पर अफवाह न फैलाएं।
चिंता की बात यह है कि पहली बार मंकीपॉक्स ऐसे लोगों में फैलता दिख रहा है जो अफ्रीका नहीं गए थे। ज्यादातर मामले ऐसे पुरुषों के हैं जिन्होंने अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाए थे। ब्रिटेन, इटली, पुर्तगाल, स्पेन और स्वीडन जैसे यूरोपीय देशों में मंकीपॉक्स के मामले बढ़ रहे हैं। यहां के अधिकतर मरीज सेक्सुअल हेल्थ क्लिनिक में प्राइवेट पार्ट में घावों की शिकायत लेकर पहुंचे थे। सेक्स से मंकीपॉक्स फैल रहा है या नहीं, यह अभी साफ नहीं है। पहले इसके सेक्स के जरिए फैलने के मामले नहीं आए हैं, लेकिन बहुत करीब जाने, नजदीकी संपर्क, शरीर से निकले वाले लिक्विड पदार्थ के जरिए यह फैल रहा है। कुछ दिन पहले मंकीपॉक्स पर लैंसेट की आई रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस की तरह ही मंकीपॉक्स भी अपने लक्षण बदल रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ब्रिटेन में मंकीपॉक्स के मरीजों के प्राइवेट पार्ट में जख्म मिले हैं। ये दुनियाभर में पहले से मिले मंकीपॉक्स के लक्षणों की तुलना में अलग हैं।