क्या नीतीश कुमार सच में अनजाने में कर रहे हैं चूक?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या नीतीश कुमार सच में अनजाने में चूक कर रहे हैं! नीतीश कुमार अब पहले जैसे नहीं रहे। उनके हाव-भाव बदल गए हैं। बोलचाल का अंदाज तो आश्चर्यजनक ढंग से बदला है। पहले वे कम बोलते थे। गंभीरता बनी रहती थी। अब अधिक बोलने भी लगे हैं। जब तक कम बोलते रहे, उनकी गरिमा बढ़ती रही। शायद बात-बेबात बोलते रहने की उनकी नई आदत का ही कमाल है कि मंत्री उऩकी बात नहीं सुनते हैं। सरकार में सहयोगी पार्टी आरजेडी के नेता आंख दिखाते रहते हैं। उम्र और औकात देख नीतीश को विपक्ष के अलावा सहयोगी जल्दी टोकते नहीं। इससे वे अपनी बतकही पर विराम नहीं लगा पाते। नीतीश कुमार ने विधानमंडल में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में जो बयान दिया, उसे सुन कर दो ही बातें समझ में आती हैं। पहला यह कि उनकी अतृप्त इच्छा अब उनके शब्दों में मुखरित हो रही है। दूसरा कारण यह हो सकता है कि वे संवाद के लिए इस तरह की शैली अपनाने की नई कला सीख रहे हों। दूसरी बात ज्यादा पुख्ता लगती है। जनवरी से मार्च के बीच नीतीश कुमार जब बिहार का दौरा कर रहे थे तो उन्होंने जीविका दीदियों की बैठक में भी यही बातें दोहराई थीं, जिसका मुखर रूप सदन में दिए उनके बयान में दिखा। पहली बार टोकाटोकी नहीं हुई। विपक्ष भी मौन रहा। इससे नीतीश का हौसला बढ़ा और मंगलवार को सदन में उन्होंने इस तरह का आपत्तिजनक बयान दे दिया। विपक्ष ने जब इस पर हंगामा मचाया तो नीतीश को अपनी चूक का एहसास हुआ और उन्होंने न सिर्फ सार्वजनिक रूप से माफी मांगी, बल्कि खुद ही खुद की निंदा का नायाब उदाहरण भी पेश किया।

नीतीश कुमार ने गलती का एहसास होते ही माफी मांग ली, लेकिन महागठबंधन का बचाव ब्रिगेड अब भी थोथी दलीलें गढ़ने में व्यस्त है। कांग्रेस के एमएलसी प्रेमचंद मिश्रा इसे स्लिप आफ टंग (जुबान फिसलना) बताते हैं तो बिहार के डेप्युटी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को इसमें सेक्स एजुकेशन का अक्श दिखता है। राबड़ी देवी भी उनका बचाव करती हैं तो जेडीयू के अशोक चौधरी और विजय चौधरी भी नीतीश के बयान को गलत नहीं मानते। वे अब भी थोथी दलीलें दे रहे हैं। नीतीश के कभी सहयोगी रहे और अब जनसुराज यात्रा पर बिहार भ्रमण कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर कहते हैं कि तेजस्वी यादव ने जब नौवीं तक की ही पढ़ाई की तो उन्हें नीतीश का बयान सेक्स एजुकेशन का हिस्सा लगने लगा। पता नहीं, उन्होंने कब और कहां सेक्स एजुकेशन की पढ़ाई की है। कहां से उन्हें ज्ञान हो गया कि विधानमंडल के सदन में सीएम की ऐसी बातें सेक्स एजुकेशन का हिस्सा हैं।

वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही तो लालू प्रसाद यादव ने उसे लपक लिया था। उन्होंने भागवत के बयान को इस रूप में प्रचारित किया कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है। नतीजा सबने देखा। हालांकि सभी जानते हैं कि भागवत के कहने का आशय क्या था। उनका यही कहना था कि कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें अब आरक्षण की दरकार नहीं और बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें आरक्षण की जरूरत है। समीक्षा में तो यही बातें होती हैं। यह भी सबको पता है कि नीतीश कुमार ने महिलाओं के उत्थान के लिए जितना काम किया है, शायद ही किसी सीएम ने उतना किया हो। स्कूली बच्चियों की पढ़ाई से लेकर महिलाओं को आरक्षण तक नीतीश ने ही दिया है। इसलिए उनकी नीयत में खोट नहीं हो सकती है, लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने सदन में अपनी बातें रखीं, उस अंदाज में उनकी उम्र का कोई व्यक्ति शायद ही सार्वजनिक मंच पर ऐसी बात कहे।

दरअसल विपक्ष को नीतीश कुमार ने अपने दो कामों से मुद्दा विहीन कर दिया था। पहला तो नीतीश ने तमाम बाधाओं के बावजूद जाति सर्वेक्षण का काम पूरा करा लिया। दूसरे उन्होंने आरक्षण सीमा 75 प्रतिशत करने का प्रस्ताव पास कर जातीय गोलबंदी का दायरा बढ़ा दिया। इससे विपक्ष मुद्दाविहीन हो गया है। उसे नये मुद्दे की तलाश थी। नीतीश के महिलाओं पर आए बयान से विपक्ष को संजीवनी मिल गई है। इसलिए बिहार में इसे लेकर सियासी बवाल मचा हुआ है। कोई नीतीश की मानसिक स्थिति खराब बता रहा है तो कोई इसे उनकी उम्र का तकाजा मान रहा।

कुछ ही दिन हुए, जब नीतीश कुमार ने अपने मंत्री अशोक चौधरी की गर्दन में हाथ डाल कर एक मीडिया कर्मी से उनका माथ लड़ा दिया था। चौधरी के पिता की पुण्यतिथि रविवार को थी। सीएम भी वहां पहुंचे हुए थे। पुण्यात्मा को चढ़ाने के लिए जो फूल रखे थे, उनमें से मुट्ठी भर फूल उन्होंने जीवित मंत्री पर बिखेर दिए। एक दिन तो अशोक चौधरी के गले से ही वे लिपट गए थे। पहले नीतीश कुमार अपनी गंभीरता के लिए जाने जाते थे। हर बात पर वे रिएक्ट नहीं करते थे। अब उनमें बच्चों जैसी चपलता दिखती है। बोलते वक्त एक ही बात कई बार रिपीट करते हैं।

सच बात यह है कि नीतीश कुमार इन दिनों भारी जद्दोजहद से गुजर रहे हैं। विपक्षी गठबंधन में अपनी पूछ घटने और काम में प्रगति नहीं होने से वे कभी कांग्रेस को कोसते हैं तो कभी नरेंद्र मोदी की तारीफ भी कर जाते हैं। मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी के समारोह में नीतीश ने मोदी की तारीफ की कि उनकी पहल पर ही मोतीहारी में सेंट्रल यूनिवर्सिटी खुल सकी। पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती तो उन्होंने मनाई ही थी। आरजेडी के साथ सीटों के सवाल पर उनकी बात नहीं बन पा रही। सीएम की कुर्सी 2025 में सौंपने की उन्होंने बात कह दी है। भाजपा उन्हें पूछ नहीं रही और कांग्रेस ने भाव देना ही बंद कर दिया है। आरजेडी का हल्ला ब्रिगेड तो हमेशा उन्हें निशाने पर रखता है। संभव है कि ऐसी स्थिति में वे जद्दोजहद के दौर से गुजर रहे हों और सामान्य दिखने के लिए असामान्य हरकते कर बैठते हैं।