पाकिस्तान ने सभी के सामने मसूद अजहर पर कार्रवाई करने का वायदा किया है! पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर को लेकर खींचतान मची हुई है। पाकिस्तान दावा है कि मसूद अजहर अफगानिस्तान में छिपा हुआ है। वहीं, तालिबान ने पलटवार करते हुए कहा है कि मसूद अजहर अफगानिस्तान नहीं, बल्कि पाकिस्तान में है। ऐसे में मसूद अजहर की लोकेशन एक रहस्य बन गई है। दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा कर खुद को फाइनेंशिएल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से निकलवाना चाहता है। जबकि, मसूद अजहर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की कस्टडी में किसी सेफ लोकेशन पर है। ऐसे में वह तालिबान के सिर पर मसूद अजहर को शरण देने का माइंडगेम खेल रहा है। वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि मसूद अजहर देवबंदी धड़े का है जिसके तालिबान के साथ पुराने संबंध हैं। अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के दौरान मसूद अजहर ने ही तालिबान संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब को पाला-पोसा था। ऐसे में तालिबान भी उस पुराने कर्ज को उतारने के लिए शरण दे सकता है।
मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा करना पाकिस्तान के लिए मजबूरी बनी हुई है। 18 से 21 अक्टूबर के बीच एफएटीएफ के पूर्ण परिषद की बैछक होनी है। ऐसे में पाकिस्तान को इस बैठक से पहले मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई को दिखाना होगा। पश्चिमी देशों ने एफएटीएफ की पूर्ण बैठक से पहले मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। ऐसे में पाकिस्तान ने दो-दो बार तालिबान पर मसूद अजहर के हैंडओवर के लिए दबाव डाला, लेकिन तालिबान ने हर बार मसूद की मौजूदगी से इनकार किया है। पाकिस्तान का दावा है कि मसूद अजहर ने हाल के दिनों में काबुल की यात्रा की थी। उसे पूर्वी अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा से लगे कुनार और खोस्त प्रांतों में देखा गया था। इस क्षेत्र में मसूद अजहर का आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद पहले से ही एक्टिव है।
इस साल की शुरुआत में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि जैश-ए मोहम्मद के नंगरहार प्रांत में आठ प्रशिक्षण शिविर थे, जो कुनार और खोस्त के बीच स्थित है। ऐसे में आशंका है कि मसूद अजहर इस इलाके में कहीं छिपा हुआ हो सकता है। पाकिस्तान ने सितंबर की शुरुआत में तालिबान के पास दोबारा अनुरोध पत्र भेजा था। लेकिन, तालिबान ने मसूद अजहर के अफगानिस्तान में शरण लेने के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि वह किसी भी सशस्त्र समूहों को अफगान धरती से संचालित करने की अनुमति नहीं देगा। तालिबान के इस दावे के बावजूद, पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने पिछले हफ्ते उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान कहा ता कि अजहर अफगानिस्तान में छिपा हुआ है।
अजहर को हाल के वर्षों में सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है। ऐसे में अफगानिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर की मौजूदगी से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। एक सूत्र ने बताया है कि अलकायदा को छोड़कर कोई भी दूसरा आतंकवादी समूह तालिबान के उतना करीब नहीं है कि जितना जैश-ए-मोहम्मद है। यहां तक कि लश्कर एक तैयबा और ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के भी तालिबान से उतने नजदीकी संबंध नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली टीम ने भी इस साल मई में अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि जैश-ए-मोहम्मद एक देवबंदी समूह है जो वैचारिक रूप से तालिबान के करीब है!
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पिछले 20 साल में 1,500 से 2,000 जैश-ए-मोहम्मद के लड़ाके तालिबान के साथ मिलकर जंग लड़ चुके हैं।ऐसे में अफगानिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर की मौजूदगी से इनकार भी नहीं किया जा सकता है। एक सूत्र ने बताया है कि अलकायदा को छोड़कर कोई भी दूसरा आतंकवादी समूह तालिबान के उतना करीब नहीं है कि जितना जैश-ए-मोहम्मद है। यहां तक कि लश्कर एक तैयबा और ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के भी तालिबान से उतने नजदीकी संबंध नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की निगरानी करने वाली टीम ने भी इस साल मई में अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि जैश-ए-मोहम्मद एक देवबंदी समूह है जो वैचारिक रूप से तालिबान के करीब है! जैश-ए-मोहम्मद खुद का आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाता है और उस क्षेत्र को नियंत्रित करता है, जहां उसे तालिबान से किसी भई तरह की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में, जैश-ए-मोहम्मद के शीर्ष नेता के लिए अफगानिस्तान में शरण लेना आसान होगा। हालांकि, कई अंतरराष्ट्रीय आतंकरोधी एजेंसियों को पाकिस्तान के दावे पर संदेह भी है। उनका मानना है कि पाकिस्तान खुद के ऊपर से प्रेशर को हटाने के लिए अफगानिस्तान पर आरोप लगा रहा है।