क्या लोकसभा चुनावों से पहले पीएम मोदी को हो रही है बेचैनी?

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वर्तमान में लोकसभा चुनावों से पहले पीएम मोदी को बेचैनी हो रही है! लोकसभा चुनाव में अब सालभर से भी कम वक्त बचा है। बीजेपी जहां जीत की हैटट्रिक लगाकर सत्ता बरकरार रखने पर पूरा जोर लगा रही है, वहीं विपक्ष भी मोदी सरकार को हटाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा। इसी के तहत हर सीट पर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम चल रहा है। पटना के बाद अब बेंगलुरु में विपक्षी दलों का महाजुटान होने जा रहा है। इसकी काट के लिए एनडीए भी अपने कुनबे के विस्तार में जुटा है। पुराने सहयोगियों को फिर से एनडीए में लाने की कोशिशें तेज हुई हैं। इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितना गंभीर हैं, उसे इससे समझा जा सकता है कि वह अपने कैबिनेट में बड़े बदलाव के जरिए गठबंधन सहयोगियों को साधने की तैयारी कर रहे हैं। विपक्ष जिस तरह से एकजुट होकर नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने का दम भर रहा है, उससे बीजेपी भी सतर्क है। विपक्षी रणनीति की काट के लिए बीजेपी छोटे-छोटे दलों को अपने साथ करने की आजमाई हुई रणनीति पर आगे बढ़ रही है। बुधवार देर रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आवास पर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं के साथ 6 घंटे तक मैराथन बैठक की। उसके बाद से ही मोदी मंत्रिपरिषद में बड़े फेरबदल की चर्चाओं ने जोर पकड़ा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और इस साल के आखिर में होने वाले एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले टीम मोदी में ये आखिरी बदलाव हो सकता है। इसके जरिए बीजेपी इस साल चुनाव वाले राज्यों के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय, जातिगत और सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है। लेकिन केंद्रीय मंत्रिपरिषद में ये संभावित विस्तार एनडीए के विस्तार की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिहाज से भी काफी अहम है। 2014 और 2019 में तो बीजेपी को अकेले अपने दम पर बहुमत मिल गया था। अब कुनबे को सहेजने और पुराने सहयोगियों को वापस लाकर बीजेपी 2024 की तैयारी कर रही है ताकि अगर वह कुछ सीटों के अंतर से बहुमत से चूक भी गई तो सरकार बनाने में कोई दिक्कत न आए।

मोदी मंत्रिपरिषद में फेरबदल से पहले ही एनडीए का साथ छोड़ चुके कुछ दलों को फिर से उसके साथ जोड़ा जा सकता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना को मोदी कैबिनेट में एक सीट मिल सकती है। शिवसेना तो एनडीए का हिस्सा है ही, लेकिन अब फिर से उसे केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व मिलने जा रहा है। उसके अलावा शिरोमणि अकाली दल को भी मंत्रिपरिषद में एक सीट दिए जाने की अटकलें हैं। बीजेपी की सबसे पुराने सहयोगी रहे अकाली दल ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर एनडीए का साथ छोड़ दिया था लेकिन तीनों कानूनों की वापसी, पंजाब विधानसभा चुनाव में बुरी हार ने दोनों दलों के फिर साथ आने की पृष्ठभूमि तकरीबन तैयार कर दी है। राजनाथ सिंह समेत बीजेपी के कई शीर्ष नेता भी ऐसे संकेत दे चुके हैं।

रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति में विभाजन हुआ था। पासवान के भाई पशुपति नाथ पारस की तो मोदी मंत्रिपरिषद में एंट्री हो गई लेकिन चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए। चर्चा है कि रामविलास पासवान के बेटे चिराग को केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है।

अकाली दल और चिराग पासवान को तो मंत्रिपरिषद में फेरबदल के जरिए साधा जा सकता है। लेकिन कई ऐसे दल हैं जिन्हें आने वाले दिनों में एनडीए से जोड़ा जा सकता है। इसमें कई पार्टियां तो ऐसी हैं जो पहले एनडीए का हिस्सा रह चुकी हैं। सबसे प्रमुख नाम है चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम यानी टीडीपी का। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में टीडीपी भी एनडीए का हिस्सा थी। लेकिन 2019 चुनाव से पहले चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। तब वह विपक्षी एकजुटता की धुरी बनने की पुरजोर कोशिश किए थे लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद वह फिर से एनडीए में लौटने का मन बना रहे हैं। इसे लेकर बीजेपी के साथ उनकी चर्चा हो चुकी है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त और दक्षिण के इस इकलौते राज्य की सत्ता से बेदखल होने के बाद बीजेपी अभी झटके से उबरने की कोशिश कर रही है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जनता दल सेक्युलर का भी बुरा हाल है। ऐसे में अगर बीजेपी और जेडीएस भी साथ आ गए तो हैरानी की कोई बात नहीं होगी। लेकिन 2024 से पहले एनडीए के एक सहयोगी की उससे राह जुदा होने के आसार जरूर दिख रहे हैं। ये है दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी। हरियाणा में अभी बीजेपी-जेजेपी गठबंधन की सरकार है लेकिन लोकसभा चुनाव में शायद ही दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ पाएं। वजह ये है कि बीजेपी सूबे की सभी 10 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।