वर्तमान में राहुल गांधी की इंदिरा गांधी से तुलना हो रही है! कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अब सांसद नहीं हैं। सूरत की अदालत ने उन्हें मोदी उपनाम वाले बयान पर किए गए मानहानि के मुकदमे में 2 साल की सजा सुनाई है। हालांकि कोर्ट के फैसले को राहुल पहले सेशन कोर्ट फिर हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। राहुल पर हुई इस कार्रवाई के बाद से कांग्रेस में गुस्सा है। मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी से लेकर तमाम बड़े नेता मोदी सरकार के खिलाफ मुखर हो गए हैं। उन्हें 2024 के आम चुनाव के लिए भी संजीवनी मिल गई है। अब खबर है कि राहुल गांधी को अपना दिल्ली वाला आवास भी खाली करना होगा। उन्हें 12, तुगलक लेन में स्थित अपने बंगले को खाली करना होगा। कुल मिलाकर राहुल पर की गई इस कार्रवाई से देश की सियासत गर्म है। इस बीच राहुल की संसद की सदस्यता छिनने की तुलना लोग 1975 में अयोग्य ठहराई गईं उनकी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कर रहे हैं। हम आपको बताएंगे कि राहुल पर कार्रवाई की तुलना इंदिरा से करना क्या सही है या दोनों मामलों में फर्क है। राहुल गांधी वाले मामले की तुलना करने से पहले आइए समझते हैं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर साल 1975 में वह कौन सा केस था जिसके बाद उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया था। करीब 50 साल पहले राहुल गांधी की दादी और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को साल 1971 के चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोगऔर चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी पाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोग्य करार दे दिया था। इसके बाद उनकी सांसदी चली गई थी। हालांकि इस फैसले को इंदिरा ने बाद में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने इंदिरा गांधी के वकील की दलील मानते हुए पूर्व प्रधानमंत्री की लोकसभा सदस्यता को बरकरार रहने के निर्देश दे दिए थे। मतलब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को देश की सर्वोच्च अदालत ने पलट दिया था। इंदिरा गांधी पर आया यह फैसला बाद में 26 जून 1975 को लगाई गई इमरजेंसी का गवाह बना था।
साल 1971 में रायबरेली लोकसभा चुनाव की है। इंदिरा ने उस वक्त संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को भारी अंतर से मात दी थी। इंदिरा की जीत को राजनारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। इसके बाद इसपर 5 साल तक मुकदमा चला। 12 जून 1975 को इसपर इलाहाबाद हाई कोर्ट अपना फैसला सुनाने वाला था। हाई कोर्ट का कमरा नंबर 24 खचाखच भरा था। भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था जब कोई प्रधानमंत्री अदालत में खड़ा था। 5 घंटे तक सवाल-जवाब का दौर चला। आखिर में फैसला सुनाने वाले जस्टिस सिन्हा ने बिना किसी के दवाब में आते हुए इंदिरा गांधी को अयोग्य ठहरा दिया। इंदिरा गांधी के खिलाफ उस दिन 7 मुकदमों को लेकर सुनवाई थी जिसमें 5 में उन्हें राहत मिल गई वहीं बाकी 2 में उन्हें दोषी पाया गया था।
इंदिरा गांधी ने बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी लोकसभा सदस्यता बरकरार रखने का फैसला सुनाया। इसके 13 दिन बाद ही भारत में इमरजेंसी लगा दी गई थी। प्रेस की आजादी छीनने के साथ विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया था। जो कोई भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाता था उसे गिरफ्तार कर लिया जाता था।
राहुल गांधी वाले केस की बात करें तो पूर्व सांसद ने एक मंच से कहा था कि सारे मोदी चोर हैं। गुजरात के बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने सूरत की अदालत में मानहानि का मुकदमा कर दिया। 2019 के बाद साल 2023 में सूरत की अदालत ने राहुल गांधी को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुना दी। हालांकि राहुल की सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया है। इसके बाद राहुल के पास मौका है कि वह पहले सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में सजा के खिलाफ जा सकते हैं। उसके बाद का नियम भी जानना जरूरी है। नियम के अनुसार, अगर किसी भी सांसद को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा मिलती है तो उसकी सदन की सदस्यता तुरंत खत्म हो जाती है। राहुल गांधी के साथ भी यही हुआ है। हालांकि राहुल पर की गई कार्रवाई ने विपक्ष को एक आवाज दे दी है। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल राहुल पर की गई इस कार्रवाई के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार देश में तानाशाही शासन लाना चाहती है और लोकतंत्र की आवाज को दबाया जा रहा है। राहुल पर की गई कार्रवाई से प्रियंका गांधी भी बौखला गई हैं। उन्होंने सीधे-सीधे पीएम मोदी को कायर तक कह डाला।
यहां दोनों ही केस में कोर्ट के फैसले के बाद सदन की सदस्यता छीनी गई है। राहुल और इंदिरा गांधी के केस में यही हुआ है। फिर फर्क कहां है। फर्क यह है कि इंदिरा गांधी वाले मामले में जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था तब वह इसे चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक चली गई थीं। बाद में शीर्ष अदालत ने उनपर आए इलाहाबाद कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। यहां राहुल गांधी के केस में अभी गुजरात की सूरत की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बस अपना फैसला सुनाया है। अभी राहुल को सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाना है। वहां कोर्ट क्या फैसला सुनाता है यह देखना होगा। वहीं सूरत कोर्ट के फैसले के बाद लोकसभा अधिनियम 1951 के तहत राहुल की लोकसभा सदस्यता चली गई है। राहुल को आगे अदालतों से राहत नहीं मिलती है तो वह 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे जिसमें सबसे महत्वपूर्ण 2024 लोकसभा चुनाव भी है। वहीं इंदिरा गांधी वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलटते हुए उनकी लोकसभा सदस्यता बरकरार रखी थी। बाद में हुए उपचुनाव में दोबारा जीत के बाद सदन में एंट्री कर ली थी लेकिन राहुल ऐसा नहीं कर पाएंगे।