क्या रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर यूक्रेन से दूर हो रहा है अमेरिका?

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रूस यूक्रेन युद्ध को लेकर अमेरिका यूक्रेन से दूर हो रहा है! रूस का दृष्टिकोण साफ है कि आपसी सहयोग की बात बढ़े, ग्लोबल गवर्नेंस का लोकतंत्रीकरण हो, इस बात पर सहमति बने कि सभी देशों को वित्तीय, प्राकृतिक और प्रौद्योगिकी संसाधन समान रूप से मिलें, विभिन्न देशों के विकास में बढ़ता अंतर कम हो। ये सभी मुद्दे वसुधैव कुटुंबकम परिकल्पना के तहत जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए भारतीय प्राथमिकताओं में दिखते हैं। भारत को ग्लोबल लीडर की भूमिका निभाने का मौका मिला, हम इसके लिए अपना पूरा समर्थन देंगे। कोई खास अंतर नहीं देखते। दशकों से दोनों देशों के बीच गहरे संबंध रहे हैं, आपसी सम्मान, विश्वास और सहयोग रहा है। जहां तक हाल की बात है, पश्चिमी-अमेरिकी बंदिशों का सकारात्मक असर ही पड़ा। रूस और भारत के बीच व्यापार 44 अरब डॉलर तक बढ़ चुका है। इसी साल अप्रैल में रूस की नई विदेश नीति की अवधारणा में भारत को प्राथमिक देशों में रखा गया।

पश्चिमी प्रोपेगेंडा को अलग रखें। भारत और चीन दोनों रूस के पुराने सहयोगी रहे हैं। चीन से रूस की नजदीकी के मामले में पश्चिमी प्रतिरोध अधिक है क्योंकि रूस की तरह चीन को भी पश्चिमी देश दुश्मन समझते हैं। हम मिलकर इसका प्रतिरोध कर रहे हैं। अमेरिका, चीन से संबंध को बेहतर करने की दिशा में गंभीर नहीं दिखता है। दोनों अलग फोरम हैं, लेकिन इनमें कई तरह की समानता भी है। दोनों बहुआयामी हैं और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए बने हैं। इनमें किसी देश को निशाना बनाने का अजेंडा नहीं है। इन संगठनों का उद्देश्य अमेरिका की तरह किसी भी देश के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करना नहीं है।

यह हमारा सामूहिक अजेंडा है। हालांकि ब्रिक्स का गठन किसी का विकल्प बनने के लिए नहीं, बल्कि पूरक बनने के लिए किया गया। ब्रिक्स सभी देशों की करंसी को सम्मान देता है। इस पर बात हो रही है। कई पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। हमने देखा है कि अमेरिका डॉलर को किस तरह हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।

रूस ने रूसी भाषी लोगों के नरसंहार को समाप्त कर शांति स्थापित करने के लिए विशेष सैन्य अभियान शुरू किया। वहां जिस तरह रूसी भाषा बोलने वाले लोगों के साथ हैवानी व्यवहार हो रहा था, उन्हें न्याय दिलाने के लिए रूस ने तब कड़े कदम उठाए, जब हमें लगा कि लक्ष्मण रेखा को पार किया गया। तब से सबने देखा कि किस तरह हमें निशाना बनाया गया। कखोवका जलविद्युत प्लांट, क्राइमिया पुल और नॉर्ड स्ट्रीम गैस पाइपलाइनों पर हमले हुए। असैनिक लोगों पर हमले हुए। हम मार्च 2022 में यूक्रेन से बातचीत में स्थिति हल करने के करीब थे, लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों ने ऐसा नहीं होने दिया। अमेरिका और पश्चिमी देश किसी तरह बातचीत का माहौल नहीं बनने दे रहे हैं।

आम सहमति इस बात पर निर्भर करती है कि पश्चिम आर्थिक अजेंडे का राजनीतिकरण करने और यूक्रेन के विषय को हर जगह थोपने की कोशिश करना बंद करता है या नहीं। यह जानबूझकर थोपा गया अजेंडा है कि यूक्रेनी संकट वैश्विक आर्थिक व्यवधान पैदा कर रहा है। यह एकतरफा पश्चिमी प्रतिबंध है। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते और इसे जी-20 के नतीजों का हिस्सा नहीं बनने दे सकते।

आने वाले समय में चीजें तेजी से बदल रही हैं। मैं देख रहा हूं कि अमेरिका और पश्चिम राजनीतिक-आर्थिक रूप से पूरी तरह प्रासंगिकता खो चुके हैं। अब नई वैश्विक व्यवस्था बन रही है। भारत की भूमिका बढ़ रही है और रूस-भारत के संबंध उसी अनुरूप बढ़ रहे हैं।यूक्रेन किस तरह से एयर डिफेंस में संघर्ष कर रहा है। साथ ही रूस को आक्रामक तरीके से जवाब देने की उसकी योजना भी फेल हो गई है। अखबार के मुताबिक जो जानकारियां सामने आई हैं, उनसे यह पता लगता है कि युद्ध किस दिशा में जा रहा है। कैमरून के जर्नलिस्‍ट साइमन अतेबा जो टुडे न्‍यूज अफ्रीका के लिए व्‍हाइट हाउस के पत्रकार के तौर पर काम करते हैं, उन्‍होंने कई चौंकाने वाली जानकारियां दी हैं। साइमन के मुताबिक बहुत से अमेरिकी यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि यूक्रेन की जंग में बाइडेन प्रशासन की तरफ से जो रकम खर्च की जा रही है, वह क्‍या वाकई उनके हित में है? साइमन की मानें तो बाइडेन प्रशासन ने इस जंग में अमेरिका के ईमानदार करदाताओं की रकम खर्च कर डाली है।

अमेरिकी जनता को यह बताया गया है कि यूक्रेन में कोई भी अमेरिकी सैनिक नहीं है। जबकि इन लीक से यह पता लगता है कि यूक्रेन में अमेरिकी सेनाएं तैनात हैं। इस सच की पुष्टि पिछले दिनों जॉन कीर्बी ने भी फॉक्‍स न्‍यूज से कर दी है। इन डॉक्‍यूमेंट्स से यह बात भी सामने आई कि यूक्रेन की सेना बड़ी मुश्किल में हैं। डॉक्‍यूमेंट्स से पता लगा है कि जहां रूस के 16 से 17500 सैनिकों की मौत हुई है तो वहीं यूक्रेन की तरफ मौत का आंकड़ा 71,000 है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन का यह कहना कि यूक्रेन इस जंग को जीत रहा है, सच नहीं हैं। अब बाइडेन प्रशासन इस लीक को कवर करने में लग गया है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन की आड़ में दरअसल अब अमेरिका ही रूस से जंग लड़ने में लगा है।