Thursday, September 19, 2024
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क्या शरद पवार राहुल गांधी को कर रहे हैं एक्सपोज?

शरद पवार राहुल गांधी को एक्सपोज कर रहे हैं! जेपीसी अभी हॉट की वर्ड है। राहुल गांधी ने इसे मानो देश की सबसे ताकतवर जांच एजेंसी मान लिया हो। वही जेपीसी जो राहुल की पार्टी की सरकार में बार-बार बनी और कई बार तब विपक्ष में रही बेजीपे ने इसे आंख में धूल झोंकने जैसा बताया। कांग्रेसी सरकारों ने जेपीसी को प्रेशर कुकर बनाकर रख दिया। जब भी भ्रष्टाचार या बड़े मुद्दे पर फंसो उसका दबाव जेपीसी की सीटी बजाकर खत्म कर दो। उसी जेपीसी पर राहुल की पार्टी अड़ गई है। इसी जेपीसी पर शरद पवार अभी चर्चा में हैं। उन्होंने राहुल गांधी के मोदी-अडानी अभियान को पंक्चर कर दिया है। पवार ने टाटा-बिरला का नाम लिया। देश के लिए उनके योगदान को याद किया। ये नादानी भी बताई कि कैसे पहले सरकार का विरोध करने के लिए टाटा-बिरला का इस्तेमाल होता था। राहुल की अगुआई में कांग्रेस सड़क के बदले संसद में आंदोलनरत नजर आई। बजट सत्र का दूसरा हिस्सा चलने ही नहीं दिया। काले लिबास में कांग्रेसी अपने नेता राहुल की डिमांड दोहराते नजर आए। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी पर जेपीसी की जांच हो। जेपीसी मतलब जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी। मल्लिकार्जुन खरगे और पी चिदंबरम जैसे नेता जेपीसी मुहिम में राहुल के साथ दिखे। ये वैसे नेता हैं जो राजीव गांधी के समय से जेपीसी रिपोर्ट का हाल देखते आए हैं। लेकिन अब राहुल को आईना कौन दिखाए। तो ये काम महाराष्ट्र में उनके सहयोगी शरद गोविंदराव पवार ने कर दिया है। पवार से जब ये पूछा गया कि हिंडनबर्ग क्या है, तो उनका जवाब था – पता नहीं क्या है। पवार की इस गुगली पर 2024 में मोदी के खिलाफ गोलबंदी का ख्वाब देख रहे सारे विरोधी दलों के नेता बोल्ड हो गए। पवार ऐसे धाकड़ नेता हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना गुरु मान चुके हैं। लिहाजा कुछ तो वजन होगा। चौबीस घंटे बाद पवार ने अपनी बात को तर्क का जामा पहना ही दिया। उन्होंने बताया कि वो भी एक जेपीसी के चेयरमैन रह चुके हैं। क्या होता है जेपीसी में। अगर 21 मेंबर होंगे तो 15 एनडीए के होंगे। फिर जेपीसी की रिपोर्ट बहुमत से बनती है। तो ऐसी जांच का क्या फायदा? प्रैक्टिल पॉलिटिक्स करने वाले पवार ने इसी बहाने बतौर सांसद राहुल की नादानी को सामने लाकर रख दिया। जेपीसी में लोकसभा के सदस्यों की संख्या दोगुनी होती है और किस सदन से किस पार्टी से कितने सांसद होंगे ये उनकी सीटों की संख्या के हिसाब से तय होता है।

अब ऐसा तो है नहीं कि अभी तक कांग्रेस में बचे हुए धाकड़ नेताओं को इसका इल्म नहीं होगा। जेपीसी तो सबसे ज्यादा कांग्रेस ने ही बनवाए हैं। पहली अहम जेपीसी बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए बनी थी। 12 अगस्त, 1987 को राज्यसभा ने लोकसभा के फैसले को सहमति दी और 30 सदस्यों वाली जेपीसी बन गई। 20 सदस्य लोकसभा के थे और 10 राज्यसभा के। अगुआई कर रहे थे बी शंकरानंद। 22 अप्रैल, 1988 को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। इसमें कहा गया कि स्वीडन से 155 एमएम के 400 बोफोर्स गन की डील में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। किसी भारतीय शख्स को किकबैक नहीं मिला है। जेपीसी ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि बोफोर्स एजी ने 64 करोड़ रुपए का घूस किसी भारतीय को दिया है। लेकिन जेपीसी में शामिल अन्नाद्रमुक (जानकी गुट) के एमपी अलादि अरुणा ने बहुमत से अलग डिसेंट नोट लिखा। कई ऐसे फैक्ट ही थे जो जेपीसी रिपोर्ट को गलत ठहरा रहे थे। जैसे, आर्मी ने कहा था कि उसे 28 से 30 किलोमीटर रेंज वाला तोप चाहिए लेकिन बोफोर्स का रेंज सिर्फ 21 किलोमीटर था। अलादि अरुणा ने अपने नोट में लिखा कि बोफोर्स कंपनी का सरकार के भीतर असर था और कुछ लोगों ने पैसे लिए थे। खैर, इस घोटाले की आंच में राजीव गांधी की सरकार हवा हो गई और वीपी सिंह सत्ता में आ गए।

1992 में जब हर्षद मेहता का काला कारोबार सामने आया तो दलाल स्ट्रीट पर रक्तपात हो गया। देखते ही देखते साधारण निवेशकों के एक करोड़ डॉलर हवा हो गए। सरकार कांग्रेस की ही थी। पीवी नरसिंहराव पीएम थे। तो रामनिवास मिर्धा की अगुआई में जांच के लिए जेपीसी बनी। हुआ क्या? जेपीसी की सिफारिशों को न पूरी तरह स्वीकार किया गया और न ही इस पर अमल हुआ।

हर्षद मेहता की तरह 2001 में केतन पारेख ने शेयर मार्केट की कमजोरियों का फायदा उठाकर स्कैम कर डाला। प्रमोद महाजन ने लोकसभा में जेपीसी की पेशकश की। भाजपा सांसद लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी इसके हेड बने। अगले साल रिपोर्ट भी आ गई। उन्होंने सेबी और एक्सचेंज में आमूल चूल सुधार के लिए कई सिफारिशें की लेकिन कुछ खास नहीं हो सका।

2003 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट ने तहलका मचा दिया। इसने बताया कि नामी गिरामी ब्रांड्स के कोल्ड ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड यानी कीटनाशक मिले हुए हैं। संसद में हंगामा मचा तो जेपीसी बनी और इसके चेयरमैन बने शरद पवार। 2004 में पवार कमेटी ने सदन को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी। इसमें माना गया कि कई ब्रांड्स के कोल्ड ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड की मात्रा स्वीकृत सीमा से कहीं ज्यादा है। कमेटी ने फूड स्टैंडर्ड नियमों को सख्त बनाने की सिफारिश की। जेपीसी की कुछ मांगें मान ली गईं लेकिन अधिकतर पर अमल नहीं हो सका।

2013 में मनमोहन सरकार एक और भ्रष्ट सौदे के आरोपों से घिर गई। एक रिपोर्ट से ये बात सामने आई कि इतालवी कंपनी से वीवीआईपी के लिए हेलीकॉप्टर खरीद में वायुसेना के शीर्ष अधिकारियों समेत कई लोगों ने घूस लिए। रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 30 सदस्यीय भारी भरकम जेपीसी बनाई तो बीजेपी के अरुण जेटली ने कहा कि ये आंख में धूल झोंकने वाला है। 2014 में मोदी सरकार आई और सीबीआई ने कार्रवाई तेज कर दी।

2015 में संसद में आए इस विधेयक पर मोदी सरकार पहली बार घिर गई। 31 सदस्यों से लैस जेपीसी बनाई गई और एक्सटेंशन के बाद एक्सटेंशन मिलता गया। कई बार तो मीटिंग करने लायक कोरम पूरा नहीं हो पाया। और ये एक तरह से अपनी मौत मर चुकी है।

यही है जेपीसी की कहानी जिसके लिए संसद के 200 घंटे बर्बाद हुए हैं। बर्बादी के लिए बीजेपी भी जिम्मेदार है जो राहुल से लंदन वाले बयान पर माफी की मांग करती रही। एक घंटे की बर्बादी होने पर 1.5 करोड़ रुपए की बर्बादी होती है। इस हिसाब से 300 करोड़ रुपए स्वाहा हो गए।

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