क्या साउथ फिल्म इंडस्ट्री पड़ रही है बॉलीवुड पर भारी?

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आपने पिछले कुछ सालों में साउथ फिल्म इंडस्ट्री को लगातार आगे बढ़ते हुए जरूर देखा होगा! तस्‍वीर बदल गई है। साउथ की फिल्‍म इंडस्‍ट्री बॉलीवुड पर भारी पड़ गई है। भाषी बाधाएं लांघ दक्षिण की फिल्‍में हिंदी हार्टलैंड में छा गई हैं। बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन के आंकड़े इसकी बानगी देते हैं। दो सालों में पैसा बटोरू टॉप 10 फिल्‍मों में सिर्फ 3 बॉलीवुड फिल्‍में जगह बना पाई हैं। बाकी दक्षिण भारत की फिल्‍में हैं। इसने खलबली मचा दी है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री के बिजनेस मॉडल पर सवाल खड़े होने लगे हैं। इसमें बड़े बदलाव की वकालत होने लगी है। हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री की पतली हुई हालत की एक वजह नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं। कंटेंट, डिस्‍ट्रीब्‍यूशन, कोरोना और अपनी दूसरी दिक्‍कतों के चलते बॉलीवुड फिल्‍म इंडस्‍ट्री उलझन में पड़ी है। इसी के चलते बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन में हिंदी सिनेमा का शेयर पिछले दो सालों में तेजी से गिर गया है। पूरा का पूरा आकर्षण दक्षिण भारत की फिल्‍मों ने चुरा लिया है। आइए, यहां बॉलीवुड के बिगड़ते खेल के बारे में समझने की कोशिश करते हैं।

बिगड़ा है डिस्‍ट्रीब्‍यूशन का खेल

कोरोना के बाद हिंदी फिल्‍म इंडस्‍ट्री को बड़ी चोट लगी है। सिंगल स्‍क्रीन थियेटरों से होने वाली कमाई को भारी नुकसान हुआ है। हिंदी बेल्‍ट में ये स्‍क्रीनें ही फिल्‍मों की कमाई का बड़ा स्रोत होती हैं। महामारी के दौरान ये बंद रहे। इसका असर इंडस्‍ट्री पर पड़ा। इन थियेटरों में फिल्‍म देखने के लिए दर्शक 50-70 रुपये देते हैं। मल्‍टीप्‍लेक्‍स में यही कीमत तीन से चार गुना ज्‍यादा होती है। हिट बॉलीवुड फिल्‍मों के बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन का करीब 40-50 फीसदी नॉन-मल्‍टीप्‍लेक्‍स जोनों से आता है। मल्‍टीप्‍लेक्‍स में टिकट की ज्‍यादा कीमतों के कारण बॉलीवुड फिल्‍मों को मोटा मुनाफा मिलता है। उनकी निर्भरता सिंगल स्‍क्रीन पर कुछ हद तक कम हुई थी। लेकिन, तेजी से बंद होते सिंगल-स्‍क्रीन थियेटर ने अचानक माथे पर बल डाल दिए हैं। दूसरी तरफ दक्षिण भारत की डब होकर आती फिल्‍मों ने चुनौती और बढ़ा दी है। इसने प्रोड्यूसरों को कंटेंट और डिस्‍ट्रशन स्‍ट्रैटेजी पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया है।

बॉलीवुड बिजनेस मॉडल पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसे कुछ बॉलीवुड सितारों की फीस से समझते हैं। पहला उदाहरण अक्षय कुमार का लेते हैं। इंडस्‍ट्री के अनुमानों के अनुसार, अक्षय कुमार एक फिल्‍म का करीब 117 करोड़ रुपये चार्ज करते हैं। एक्‍टर की पिछली कई फिल्‍में लगातार फ्लॉप पर फ्लॉप साबित हुई हैं। इनमें ‘बेल बॉटम’, ‘बच्‍चन पांडे’ और ‘सम्राट पृथ्‍वीराज’ शामिल हैं। इतनी फ्लॉप फिल्‍मों के बाद भी बताया जाता है कि अक्षय कुमार के पास इस साल के अंत तक कोई डेट नहीं है।शाहरुख खान और सलमान खान भी करीब-करीब एक फिल्‍म का 100 करोड़ रुपये लेते हैं। कुछ रकम वे पहले लेते हैं। बाकी का प्रॉफिट से लेते हैं। सिर्फ आमिर खान इकलौते बड़े स्‍टार हैं जो अडवांस में चार्ज नहीं करते हैं। लेकिन, प्रॉफिट से 80 फीसदी शेयर लेते हैं। रणबीर कपूर और रणवीर सिंह भी 50-60 करोड़ रुपये लेते हैं। कार्तिक आर्यन ने भी अपनी फीस 40 करोड़ रुपये तक बढ़ा दी है। शाहिद कपूर 35 तो वरुण धवन 30 करोड़ रुपये तक एक फिल्‍म के लिए मांगते हैं। इंडस्‍ट्री एक्‍सपर्ट्स मानते हैं कि ताजा हालात में इस फीस में कमी की जरूरत है। बड़े फिल्‍म प्रोड्यूसरों पर अब तक इसलिए असर नहीं पड़ा है क्‍योंकि वे अपनी फिल्‍मों को ओटीटी पर बेच सकते हैं। हालांकि, कई ऐसे प्रोड्यूसर हैं जिनके पास अच्‍छी फिल्‍मों में भी पैसा लगाने के लिए नहीं बचेगा।

फिल्‍मों के रिलीज की टाइमिंग बहुत फर्क डालती है। पिछले कुछ समय में कई बड़ी बॉलीवुड फिल्‍में साउथ की फिल्‍मों के साथ रिलीज हुईं। बॉक्‍स ऑफिस पर बॉलीवुड फिल्‍मों ने दम तोड़ दिया। उदाहरण के लिए ‘अटैक’ की टक्कर ‘RRR’ से हो गई। वहीं, ‘जर्सी’ का पाला ‘केजीएफ2’ से पड़ गया। ‘आरआरआर’ और ‘केजीएफ2’ के हिंदी वर्जन ने दशर्कों में ऐसी गरदा उड़ाई कि सारी बॉलीवुड फिल्‍में धूल फांकती रह गईं। पहले बॉलीवुड फिल्‍म प्रोड्यूसर साउथ की फिल्‍मों की ज्‍यादा परवाह नहीं करते थे। लेकिन, जिस तरह से साउथ की डब फिल्‍मों ने हिंदी के दर्शकों को लुभाना शुरू किया है, उससे प्रोड्यूसरों का कलेजा मुंह में आ गया है। बेशक, ‘भूल भुलैया 2’ और ‘द कश्‍मीर फाइल्‍स’ जैसी फिल्‍में बॉक्‍स ऑफिस पर बेहद सफल रहीं। लेकिन, तमाम एक्‍सपर्ट्स मानते हैं कि बॉलीवुड इंडस्‍ट्री ने चमक खोनी शुरू कर दी है। इसका सबूत आंकड़े देते हैं। पिछले कुछ सालों में टॉप बॉलीवुड फिल्‍मों का बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन तेजी से नीचे आया है। 2017 में यह 339 करोड़ रुपये से घटकर 2022 में 253 करोड़ रुपये रह गया है। बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन में हिंदी सिनेमा का शेयर 2018-19 में 44 फीसदी से घटकर 2020-21 में 17 फीसदी रह गया है।