वर्तमान के चुनावी हालात मोदी का रुख बता रहे हैं! राम लहर के बीच विशेषकर उत्तर भारत में भाजपा नीत सरकार चाहे जो धमाल मचा ले, मगर बिहार में मोदी है तो मुमकिन है का तिलिस्म टूटेगा। इसकी एक वजह ये भी है कि बिहार में थके हुए नेताओं के साथ-साथ एक युवा वर्ग का नेतृत्व जो उभरा है, वो कारगर साबित होते दिख रहा है। इस युवा नेतृत्व में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान दो नाम बड़ी तेजी से उभरे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव में तमाम राजनीतिक पुरोधाओं के बीच इन दो युवा नेताओं का रंग भी दिखने वाला है। बिहार की बात करें तो निश्चित रूप से तेजस्वी यादव को दो बड़े चेहरों के बीच अपनी राजनीति की रोटी सेंकनी है। ये दो बड़े चेहरे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। नरेंद्र मोदी का चेहरा कड़क हिंदुत्व का है और इस चेहरे का प्रभाव विगत दिनों पांच राज्यों के चुनाव में दिखा भी। बिहार में भी नमो के चेहरे का प्रभाव एक हद तक दिखेगा भी। मगर, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में महागठबंधन को लाभ मिल सकता है। जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है तो तेजस्वी यादव का सामना 2005 से 2010 वाले नीतीश कुमार से नहीं होने वाला है। तेजस्वी का सामना अब उस नीतीश कुमार से है, जिनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है। सुशासन बाबू और विकास कुमार के नाम से जाने वाले नीतीश कुमार का नया नामकरण पलटू राम और गिरगिट हो चुका है।
तेजस्वी यादव का सामना उस नीतीश कुमार से भी नहीं होना है जो जेंटलमैन पॉलिटिशियन के नाम से जाने जाते थे। सदन के भीतर तेजस्वी यादव, जीतनराम मांझी या फिर वर्तमान बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार का जो रौद्र रूप दिखा, उस नीतीश कुमार से होना है। तेजस्वी यादव का सामना उस नीतीश कुमार से होना है, जो जनगणना के सवाल पर काफी ओछी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे। नीतीश कुमार के इस बदले स्वरूप से सबसे ज्यादा प्रभाव नीतीश कुमार पर ही पड़ा है। विगत दिनों हुए तीन विधानसभा उपचुनावों में ये अंतर दिखा भी। इन उपचुनावों में नीतीश कुमार का आधार वोट छिटकते नजर आया।
अगर कुछ प्रतिशत मिसलेनियस वोट को छोड़ दें तो बिहार में चुनाव अभी जातीय जकड़न में लिपटा हुआ है। जातीय जकड़न और सेक्युलरिज्म दो ऐसे पहलू हैं जो बिहार लोकसभा चुनाव को प्रभावित करने वाले हैं। ऐसे में एमवाई समीकरण तेजस्वी के साथ खड़ा रहेगा। इस मतलब ये हुआ कि धरातल पर महागठबंधन के साथ एमवाई समीकरण यानी 30 प्रतिशत आधार वोट है। अब इनके साथ वाम दल और कांग्रेस भी शामिल हैं। 2020 विधानसभा चुनाव की बात करें तो राजद को 23.11 प्रतिशत, कांग्रेस को 9.53 प्रतिशत और वाम दल का 1.75 प्रतिशत मत मिला था। एनडीए के पक्ष में राम लहर की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। निश्चित रूप से जदयू के साथ आने से एनडीए का आधार वोट बढ़ा है। पिछले विधानसभा में भाजपा को 19.46, जदयू को15.42, लोजपा को 5.69, रालोसपा को 1.77 प्रतिशत वोट मिले थे। आमतौर पर भाजपा के साथ जब जदयू होती है तो अतिपिछड़ा का लगभग 80 प्रतिशत वोट एनडीए के पक्ष में जाता है। इसके साथ नीतीश कुमार के व्यक्तिगत प्रभाव से हर जाति का मिसलेनियस वोट भी जुड़ जाता है, जो नीतीश कुमार के द्वारा बदले गए बिहार की तस्वीर के कायल हैं। वैसे, अभी तो एनडीए के धरातल पर जितने जुड़े हैं, क्या वे अंत-अंत तक जुड़े रहेंगे? ये एक यक्ष प्रश्न है। खास कर चिराग पासवान और नीतीश कुमार के संबंधों का क्या फलाफल निकलता है? ये देखना अभी शेष है। साथ ही पशुपति पारस और चिराग पासवान का मसला सुलझा लिया जाता है या फिर चिराग का रास्ता अलग होता है? ये आगामी लोकसभा चुनाव में बदलाव लेकर आएगा।
इतना तो तय हो गया है कि तेजस्वी यादव भविष्य के नेता हो गए। पहले चरण में जो तेजस्वी थे, वे दूसरी बार सरकार में आने के बाद काफी मेच्योर नजर आए। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार नीतीश कुमार का एनडीए से जुड़ना भाजपा के लिए लाभदायक नहीं है। नीतीश कुमार की बदली छवि से भाजपा का नुकसान होने जा रहा है। इतना तो तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए न तो 39 सीटों पर विजय पाने जा रही है और न ही कांग्रेस एक सीट और राजद जीरो पर आउट होने वाली है। अगर कांग्रेस और राजद के लोकसभा सीटों में बढ़ोत्तरी होगी तो नुकसान हर हाल में बीजेपी-जेडीयू को होना है।