विशेषज्ञों ने फिलहाल भारत की आर्थिक स्थिति को सही बताया है! देश की रियल जीडीपी 2022-23 में सात फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। 2023-24 तक लगातार तीन साल भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। अप्रैल 2023 में महंगाई के पांच फीसदी से कम आने की उम्मीद है, रबी फसलों का रकबा चार फीसदी बढ़ने का अनुमान है और सरकार के पास मौजूदा वित्त वर्ष में 85,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च करने की गुंजाइश होगी। फिर भी आचोलकों को क्यों लगता है कि भारत के-शेप्ड रिकवरी से गुजर रहा है? बार-बार यह दलील दी जाती है कि महामारी के बाद भारत की औसत जीडीपी महामारी से पहले की तुलना में काफी कम है। लेकिन यह कंप्लीट एनालिसिस नहीं है। आइए आंकड़ों के आधार पर इसे देखने की कोशिश करते हैं। देश की रियल पर कैपिटा जीडीपी के महामारी के बाद के दौर में (2020-21 से 2022-23) 6.7 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। महामारी से पहले के दौर (2014-15 से 2019-20) में इसका औसत 5.4 फीसदी था। दुनिया के 19 बड़े देशों में भारत महामारी के पहले और बाद के दौर में एवरेज जीडीपी के बीच अंतर के मामले में छठे स्थान पर है।
दोपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट को ग्रामीण क्षेत्रों में दबाव के प्रॉक्सी के रूप में दिखाया जा रहा है। अब इस तर्क में कोई दम नहीं रह गया है। अब आंकड़ों की बात करते हैं। मौजूदा वित्त वर्ष में मौजूदा रेट के हिसाब से दोपहिया वाहनों की बिक्री 1.6 करोड़ तक पहुंच सकती है। यह 2020-21 की तुलना में 10 फीसदी अधिक है और कोरोना से पहले 2019-20 के लगभग बराबर है। संभव है कि कुछ ईवी के आग पकड़ने की घटनाओं के कारण खरीदार वेट एंड वॉच की मुद्रा में होंगे। साथ ही कर्ज वाले परिवारों की संख्या भी जीडीपी के परसेंटेज के हिसाब से घटी है। बीआईएस के ताजा डेटा के मुताबिक मार्च में यह संख्या 40.7 फीसदी थी जो जून 2022 में घटकर 35.5 फीसदी रह गई है।
यह तर्क भी दिया जा रहा है कि गोल्ड लोन लेने का चलन बढ़ रहा है जो इस बात का संकेत है कि लोग घर चलाने के लिए बैंकों से कर्ज ले रहे हैं। अब इस आंकड़े को भी करीब से देखते हैं। यह सच है कि 2020-21 में गोल्ड लोन 411 अरब रुपये तक पहुंच गया था। मौजूदा वित्त वर्ष में नवंबर 2022 तक इसमें 98 अरब रुपये की तेजी आई है। गोल्ड लोन के बारे में कई गलतफहमियां हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि 30 फीसदी या उससे अधिक एग्रीकल्चर लोन गोल्ड को गिरवी रखकर लिया गया है। 80 फीसदी से अधिक गोल्ड लोन साउथ इंडिया में है। इन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय उत्तरी और पूर्वी राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है। साउथ इंडिया के लोग अपनी खपत जरूरतों को पूरा करने के लिए आमतौर पर सोने का इस्तेमाल इनवेस्टमेंट एसेट के रूप में करते हैं। इसलिए संपन्न राज्यों में गोल्ड लोन का ज्यादा इस्तेमाल होता है। एग्रीकल्चरल क्रॉप प्रॉडक्शन के लिए किसानों को कम रेट पर गोल्ड लोन दिया जाता है। पिछले कुछ साल में इस तरह के लोन में काफी बढ़ोतरी हुई है। इकॉनमी के तेजी से संगठित होने से लोग अब साहूकारों के पास जाने के बजाय इस रूट का इस्तेमाल कर रहे हैं। साहूकार 24 से 36 फीसदी रेट पर लोन देते हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 1992-93 से ग्रामीण और शहरी परिवारों के पास लैंड होल्डिंग में गिरावट आ रही है। यह ट्रेंड कोई हाल-फिलहाल में शुरू नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए 1992-93 में 64 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास कृषि भूमि थी जिसमें नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक लगातार गिरावट आ रही है। 2019-21 में यह 52.2 फीसदी रह गई। सच्चाई यह है कि 2015-16 की तुलना में 2019-21 में ग्रामीण आबादी की लैंड होल्डिंग्स में इजाफा हुआ है। 2015-16 की तुलना में 2020-21 में सभी इनकम ग्रुप की लैंड होल्डिंग में गिरावट आई। इनमें से सबसे अधिक गिरावट सबसे ज्यादा इनकम ग्रुप में आई। उनकी लैंड होल्डिंग्स 10 फीसदी गिर गई। यह बढ़ते हुए शहरीकरण का संकेत है। इससे सभी परिवारों के पास लैंड होल्डिंग्स में गिरावट आई है और डिस्ट्रेस सेल नहीं है।
इस वित्त वर्ष में एमएसएमई सेक्टर के लिए ओवरऑल क्रेडिट ग्रोथ मजबूत है और नवंबर 2022 तक के आंकड़ों के मुताबिक इंडस्ट्री को दिए गए कुल क्रेडिट का 60 फीसदी है। करीब 1.31 करोड़ छोटी कंपनियां उद्यम पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं और यह संख्या हर दिन बढ़ रही है। आरबीआई की हाल में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक एमएसएमई को बैंक क्रेडिट में 2021-22 में 13 फीसदी की तेजी आई लेकिन अंकाउंट्स की संख्या में कमी आई। क्या यह एमएसएमई सेक्टर के बढ़ने का संकेत नहीं है? देश की रिकवरी वी शेप्ड है और सभी ग्रुप बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। यह के-शेप्ड रिकवरी नहीं है।