क्या कैश फॉर क्‍वेरी का खेल पुराना है?

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हाल ही में महुआ मोइत्रा के साथ हुआ कैश फॉर क्वेरी का खेल राजनीति में बहुत पुराना है! महुआ मोइत्रा को हाल में ‘कैश फॉर क्‍वेरी’ मामले में अपनी सांसदी गंवानी पड़ी। संसद सदस्‍यता की बहाली के लिए अब वह जूझ रही हैं। संसद में उनकी दोबारा वापसी पर बहुत से ‘इफ एंड बट’ लगे हैं। महुआ का निष्‍कासन लगातार सुर्खियों में बना रहा। पैसे लेकर सवाल पूछना यानी कैश फॉर क्‍वेरी का खेल पुराना है। इसका सबसे पुराना मामला एचजी मुदगल का है। यह बात 1951 की है। महुआ को मिलाकर तब से 13 सांसद इस चक्‍कर में संसद सदस्‍यता गंवा चुके हैं। 2005 में 11 सांसदों को कैश फॉर क्‍वेरी में अपनी सदस्‍यता से हाथ धोना पड़ा था। संसद में महुआ के निष्‍कासन पर चर्चा के दौरान भी मुदगल का जिक्र आया। जब कभी संसद में एथिक्‍स की बात आती है तो उनका नाम अपने आप आता है। क्‍या था एचजी मुदगल का वो ऐतिहासिक केस? कैसे बना यह बाद के लिए नजीर? उसमें नेहरू की क्‍या भूमिका थी? आइए, यहां उन सभी सवालों के जवाब जानते हैं। 1951 की बात है। भारत की अनंतिम संसद में कैश-फॉर-क्‍वेरी का पहला मामला सामने आया। तब एचजी मुदगल ने बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन को अपनी संसदीय सेवाओं की पेशकश की थी। बुलियन एसोसिएशन के एक बोर्ड सदस्य ने तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इस बारे में जानकारी दी थी। उस सदस्‍य ने बताया था कि एक सांसद एसोसिएशन के लिए संसद में समर्थन करने को तैयार है। इसके बदले में उन्‍होंने 20,000 रुपये के पेमेंट की मांग की है। इसी के बाद यह पूरा स्‍कैम सामने आया था। मुदगल ने बुलियन एसोसिएशन के स्‍टाफ को लिखे हर पत्र पर अपना पक्ष सदन में मजबूती के साथ रखा था। तब उन्‍होंने नेहरू और कृष्‍णमचारी पर जोरदार हमला किया था। क्षेत्रीय कार्ड खेलने से भी नहीं चूके थे। इसके पहले कि सदन उनका निष्‍कासन करता, मुदगल ने खुद अपना इस्‍तीफा दे दिया था।अपने पक्ष में संसद में माहौल बनाने के लिए बोर्ड ने 5,000 रुपये देने पर हामी भरी थी। एसोसिएशन ने 1,000 रुपये का भुगतान भी मुदगल को कर दिया था।

हालांकि, तब तक नेहरू सतर्क हो गए थे। उन्‍हें इसकी सूचना मिल चुकी थी। इसके बाद नेहरू ने सांसद को बुलाया। मुदगल ने आरोपों से इनकार कर दिया। यह और बात है कि नेहरू मुदगल की सफाई से संतुष्‍ट नहीं हुए। तत्‍कालीन पीएम ने मुदगल के आचरण की जांच के लिए संसदीय समिति को प्रस्ताव भेजा। इसके पहले नेहरू स्‍पीकर जीवी मावलंकर के समक्ष यह मामला लेकर आए थे। नेहरू ने सदन को भी बताया था कि कैसे मुदगल ने बुलियन एसोसिएशन से जुड़े सवालों को संसद में उठाया। इस समिति की अध्‍यक्षता टीटी कृष्‍णमचारी ने की थी। समिति में चार दूसरे सदस्‍य भी थे। समिति ने अगस्‍त, 1951 में अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की थी। इसमें मुदगल को एसोसिएशन के साथ मिलीभगत का दोषी माना गया था। इसके एक महीने बाद 24 सितंबर 1951 को नेहरू ने सदन में मुदगल के निष्‍कासन का प्रस्‍ताव पारित किया था। मुदगल ने बुलियन एसोसिएशन के स्‍टाफ को लिखे हर पत्र पर अपना पक्ष सदन में मजबूती के साथ रखा था। तब उन्‍होंने नेहरू और कृष्‍णमचारी पर जोरदार हमला किया था। क्षेत्रीय कार्ड खेलने से भी नहीं चूके थे। इसके पहले कि सदन उनका निष्‍कासन करता, मुदगल ने खुद अपना इस्‍तीफा दे दिया था।

संसद पहुंचने से पहले मुदगल का बेहद दिलचस्‍प करियर रहा। उनका पूरा नाम हचेश्‍वर गुरुसिधा मुदगल था। कर्नाटक के हुबली में 1899 में मुदगल का जन्‍म हुआ था। 1920 के आसपास वह अमेरिका चले गए थे। उनका ग्रेजुएशन न्‍यूयॉर्क कॉलेज से हुआ। सांसदों को कैश फॉर क्‍वेरी में अपनी सदस्‍यता से हाथ धोना पड़ा था। संसद में महुआ के निष्‍कासन पर चर्चा के दौरान भी मुदगल का जिक्र आया। जब कभी संसद में एथिक्‍स की बात आती है तो उनका नाम अपने आप आता है। क्‍या था एचजी मुदगल का वो ऐतिहासिक केस? कैसे बना यह बाद के लिए नजीर? उसमें नेहरू की क्‍या भूमिका थी? आइए, यहां उन सभी सवालों के जवाब जानते हैं। 1951 की बात है।इसके बाद उन्‍होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए किया। अमेरिका में रहते हुए वह साप्‍ताहिक समाचार पत्र नीगरो वर्ल्‍ड के संपादक बन गए। अमेरिका में 17 साल रहने के बाद मुदगल वापस भारत लौट आए। अमेरिका के अनुभव का इस्‍तेमाल करते हुए उन्‍होंने कई पब्लिकेशन शुरू किए। वह वीकली जर्नल ‘इंडियन मार्केट’ के भी पब्लिशर थे। 1950 में वह डॉ बीआर आंबेडकर, जीवी मावलंकर और सरदार वल्‍लभभाई पटेल के साथ प्रोविजनल पार्लियामेंट का हिस्‍सा बने।