बिहार में आज भी महागठबंधन पर विचार किया जा रहा है! तुलसीकृत रामायण में तुलसीदास लिखते हैं कि ‘सठ सुधरहिं सतसंगति पाई, पारस परस कुधात सुहाई। चौपाई का अर्थ है सत्संगति में दुष्ट भी सुधर जाते हैं। पारस के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। बिहार की सियासत में रामचरितमानस को लेकर बवाल काटने वाले आरजेडी कोटे के मंत्री चंद्रशेखर को किसी संत की जरूरत है। जानकार मानते हैं कि उन्हें किसी ऐसे सियासी संत की जरूरत है, जिसकी सतसंगति में वे सुधर जाए। ऐसा नहीं हुआ तो महागठबंध के लिए ये ठीक नहीं होगा। मंत्री ने एक बार फिर रामचरितमानस के प्रसंग को उठाकर विवाद शुरू कर दिया है। इस बार वे किसी समारोह में नहीं बल्कि विधानमंडल के चलते सत्र में रामचरितमानस की चौपाई के बहाने उस मुद्दे को फिर से उछाल डाला। जिस मुद्दे ने कभी राज्य के आस्थावान भक्तों को आक्रोशित कर दिया था। इस बार मंत्री साथ में ग्रंथों का पुलिंदा साथ ले कर आए थे। वह भी यह साबित करने के लिए कि शुद्र का मतलब शुद्र यानी पिछड़ी जाति के लोग से होता है। उन्हीं की प्रताड़ना की बात रामायण में कही गई है। लेकिन एक बार फिर उन्हे महागठबंधन के नेताओं का ही विरोध झेलना पड़ा। यहां तक कि विधान परिषद सभापति देवेश चंद्र ठाकुर ने भी इसे नकारत्मक रूप में लिया। शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने एक बार फिर रामचरितमानस को लेकर परिषद में विवादित बयान का बखान किया। लेकिन इस क्रम में अपने ही गठबंधन के नेताओं से घिरे। यहां तक कि उनके आचरण से परेशान सभापति ने उनके विभाग का बजट पास कराए बिना ही सदन को स्थगित कर दिया। इसके एक दिन पूर्व यानी गत सोमवार को विधानसभा में शिक्षा बजट पर चर्चा के दौरान रामचरितमानस पर कुछ बोल गये थे। मंगलवार को विधान परिषद में दांव उल्टा पड़ गया। भोजनावकाश के बाद सदन में शिक्षा मंत्री जदयू और अपनी पार्टी राजद से ही घिर गए। मंत्री ने शिक्षा बजट पर चर्चा के दौरान शिक्षा पर बात रखने की बजाय फिर से रामचरितमानस को लेकर विवादित पक्ष सदन में रखना शुरू किया। तभी सत्ता पक्ष के सचेतक नीरज कुमार ने पहले शिक्षा मंत्री की जमकर आलोचन की। उन्होंने सभापति देवेश चंद्र ठाकुर से शिक्षा मंत्री के इस विवादित वक्तव्य को सदन की कार्यवाही का हिस्सा बनाने से रोकने का आग्रह किया।
शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर विधानसभा की तरह ही विधान परिषद में श्रीरामचरितमानस के अलावा और कई पुस्तक लेकर पहुंचे थे। वे अपने विवादित बयान को सही करार देने में जुटे रहे। साथ ही कहा कि इन पुस्तकों पर उनके विचार को कार्यवाही का हिस्सा बना लिया जाय। लेकिन तभी नीरज कुमार ने आपत्ति दर्ज की। जदयू एमएलसी ने सदन में खड़े होकर कहा कि इसको कार्यवाही का हिस्सा मत बनाइए। अगर कार्यवाही का हिस्सा बनाइएगा तो हम कई कालखंडों को लेकर चर्चा करने लगेंगे। हम लोग संविधान की चर्चा करें या रामायण-महाभारत या कुरान पर फंसे रहें। साथ ही नीरज ने अंत में शिक्षा मंत्री को रामायण, श्रीमदभगवदगीता, कुरान शरीफ और बाइबिल के विभिन्न प्रसंगों का जिक्र करते नसीहत भी दी।
पूर्व सूचना मंत्री नीरज कुमार की नसीहत का समर्थन करते निर्दलीय सदस्य महेश्वर सिंह ने भी शिक्षा मंत्री के वक्तव्य की आलोचना की। इसके बाद निर्दलीय महेश्वर सिंह ने कहा कि विधानसभा की बात इस सदन में आप ले आए हैं। शिक्षा में कोई जातिवाद नहीं है। अनुसूचित जाति के शिक्षक को भी हम लोग पैर छूकर प्रणाम करते हैं। पूरी रामायण में अच्छाइयां हैं, उसको आप अपना नहीं रहे। सिंह को सत्तापक्ष के उप मुख्य सचेतक सुनील कुमार सिंह का साथ मिल गया। एमएलसी सुनील सिंह ने खरी-खरी सुनाते कहा कि हम लोग इस चर्चा को सुनने के लिए यहां बैठे हैं ? शिक्षा मंत्री कैसे शिक्षा को आगे ले जाना चाहते हैं। यह बताएं। इसके बाद सभापति ने कहा कि आपकी भावना का हम सम्मान करते हैं। लेकिन आज इस पर चर्चा नहीं। विपक्ष ने इन विषयों पर चर्चा नहीं की है। आप जो चर्चा कर रहे हैं उस पर चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है। शिक्षा पर बजट है, उस पर चर्चा होनी चाहिए। अंततः शिक्षा मंत्री के आचरण से परेशान सभापति ने सदन स्थगित कर दिया।
राजनीतिक गलियारों में सभापति के सामने बार-बार शिक्षा के बजट पर बोलने के बजाय रामचरितमानस पर चर्चा को एक राजनीति प्रयास माना जा रहा है। जहां पिछड़े और मुस्लिम मत की गोलबंदी का इरादा छुपा है। यही वजह है कि सत्ता पक्ष के सदस्यों के शोर के बीच भी शिक्षा मंत्री बजट के बजाय रामचरितमानस पर बोलते रहे। वह भी तब जब सभापति देवेश चंद्र ठाकुर ने उन्हें याद भी दिलाया कि शिक्षा के मुद्दे पर चर्चा चल रही थी। उस पर तो आपने कुछ कहा ही नहीं। बिहार की मौजूदा शिक्षा क्या परिस्थिति है? बजट में क्या प्रविधान किया गया है? उसका तो आपने जिक्र किया ही नहीं। हम बार-बार बजट पर चर्चा का आग्रह कर रहे हैं। हम लोग जिस मकसद से उपस्थित हैं, उस पर कोई चर्चा ही नहीं हो रही है।
मामले को लेकर सियासी जानकारों की राय कुछ अलग है। राजनीतिक जानकार अरुण पांडे का मानना है कि पूरा बिहार चुनाव के मूड में आ गया है। जिसको देखिए अपने जिताऊ समीकरण को मजबूत करते दिख रहा है। प्रो चंद्रशेखर शिक्षा मंत्री हैं वह एक पहलू है। पर वे राजनीतिज्ञ भी हैं और मधेपुरा ,सहरसा की राजनीति को सलीके से समझते भी हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में क्या पता कब चुनाव हो जाए? इसके लिए चंद्रशेखर पिछड़ा वोट और मुस्लिम वोट की एकजुटता को दिशा दे रहे हैं। इस रास्ते में साध्य रामचरिमानास बन गया। फर्क बस इतना है।