Friday, November 22, 2024
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क्या ED की जांच से कतरा रहे हैं विपक्ष?

ED की जांच से विपक्ष कतरा रहा है! देश में इन दिनों करप्शन की खूब चर्चा है। खासकर विपक्षी नेता करप्शन के खिलाफ सेंट्रल जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर खूब हंगामा मचा रहे हैं। बिहार में लालू यादव का परिवार पिछले ढाई दशक से इन एजेंसियों की जांच का सामना कर रहा है। सोनिया-राहुल गांधी से नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी ने पिछले ही साल कई दिनों तक पूछताछ की थी। बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी के दर्जन भर नेता अब तक इन जांच एजेंसियों के लपेटे में आ चुके हैं। तेलंगाना के सीएम की बेटी को जांच एजेंसियों की नोटिस मिल चुकी है। झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन से ईडी एक बार पूछताछ कर चुका है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार के दो मंत्री को सेंट्रल एजेंसियों की जांच ने जेल की सलाखों तक पहुंचा दिया है। इस तबाही के बावजूद विपक्ष सिर्फ सड़क से संसद और विधानमंडल के सदनों में हंगामा मचा रहा है। अदालत में इसके खिलाफ जाने की कोई जोखिम क्यों नहीं उठा रहा, यह सबसे बड़ा सवाल है। विपक्षी दलों के नेता केंद्र सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि गैर भाजपा शासित राज्यों में ही सेंट्रल जांच एजंसियों की सक्रियता सर्वाधिक है। इसके लिए विपक्ष के 9 नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा। पत्र में एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप है। पर, ये नेता ऐसा पत्र लिखते समय यह भूल गये कि विपक्ष शासित बिहार के सीएम नीतीश कुमार और ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक के खिलाफ जांच एजेंसियां कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रही हैं। अगर विपक्ष ही जांच एजेंसियों के निशाने पर है तो इन दो मुख्यमंत्रियों के खिलाफ भी तो कार्रवाई होनी चाहिए थी! सच तो यह है कि सबसे अधिक समय तक सीएम रहने का रिकार्ड बनाने की ओर बढ़ रहे इन दोनों नेताओं के खिलाफ अब तक ऐसा कोई मामला किसी के संज्ञान में आया ही नहीं है। इसलिए विपक्ष के इस आरोप में कोई दम नहीं दिखाई देता कि केंद्रीय जांच एजेंसियां जान-बूझकर विपक्ष के नेताओं को तबाह करने में लगी हैं।

ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक की सबसे बड़ी खासियत है कि वे विपक्ष के दूसरे नेताओं की तरह बकबक नहीं करते। वे चुपचाप अपना काम करते हैं। लंबे समय से वे ओड़िशा के सीएम हैं, पर आज तक उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगा है। ऐसा भी नहीं कि वे बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए फोल्डर में शामिल हैं। फिर भी उनके खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां इसलिए कार्रवाई की बात नहीं सोच पातीं कि इसके लिए उनके पास कोई तो आधार होना चाहिए। बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बात करें तो वे लंबे समय तक बीजेपी के सहयोग से सरकार चलाते रहे। अभी उस आरजेडी के साथ शासन चला रहे, जिसके सर्वोच्च नेता लालू प्रसाद यादव के परिवार में तीन को छोड़ सभी किसी न किसी मामले में आरोपी हैं। लालू यादव पर चारा घोटाले का आरोप सिद्ध हो चुका है। उन्हें सजा भी हो चुकी है। परिजनों पर भी नाजायज तरीके से आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप लगे हैं। जाहिर सी बात है कि जो जांच का सामना कर रहे, वे तो इस कार्रवाई की आलोचना करेंगे ही। नीतीश कुमार भी अब बीजेपी के मुखर आलोचक बन गये हैं, लेकिन उन पर कोई आरोप नहीं है। इसीलिए तो वे बचे हुए हैं।

अब सवाल उठता है कि अगर विपक्षी नेताओं को जांच एजेंसियों की कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित लगती है तो वे अदालतों की शरण में क्यों नहीं जाते। वे सड़क पर अपने समर्थकों को उकसा कर धरना-प्रदर्शन तो कराते हैं, लेकिन कोर्ट जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते। ऐसे नेताओं को अच्छी तरह पता होगा कि सुब्रमण्यम स्वामी देश के आम नागरिक की हैसियत से कई ऐसे मामले लेकर कोर्ट गये, जिनमें सजा तक हो गयी। तमिलनाडु की 6 बार सीएम रहीं जे. जयललिता के खिलाफ उन्होंने आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज कराया था। नेशनल हेराल्ड केस स्वामी ने ही फाइल किया था, जिसमें पिछले साल सोनिया-राहुल गांधी से पूछताछ हुई थी। देश का कानून इसकी इजाजत देता है कि कोई भी आदमी खुद के बचाव के लिए या जनहित में अदालत की शरण में जा सकता है। फिर भी विपक्षी नेता ऐसा क्यों नहीं कर रहे ?

पश्चिम बंगाल की बात करें तो ईडी ने शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के घर से छापेमारी में करोड़ों रुपये की नगदी और परसंपत्ति जब्त की थी। जांच आगे बढ़ी तो नौकरियों में रिश्वतखोरी के एक से बढ़ कर एक नायाब सुराग मिलते गये। हाईकोर्ट ने रिश्वत और पैरवी से दी गयीं दो हजार से अधिक नौकरियां रद्द कर दी हैं। झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा तो खनन-परिवहन घोटाले का मास्टर माइंड ही निकला। हजार करोड़ से अधिक के घोटाले का अनुमान है। झारखंड में पदस्थापित आईएएस पूजा सिंघल और चीफ इंजीनियर वीरेंद्र राम भी धन कुबेर निकले। उनके घरों से भी करोड़ों की नगदी और दूसरी संपत्ति बरामद हुई। अरविंद केजरीवाल के दो मंत्री भी कई तरह के घोटालों में लिप्त पाये गये हैं। कुछ और भी जांच की जद में आ सकते हैं। अब कोई कैसे कह सकता है कि जिनके घर करोड़ों की संपत्ति मिल रही है, वे बेदाग हैं। राजनीतिक रंजिश में ही सही, ऐसे लोगों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसिया कार्रवाई कर रही हैं तो गलत क्या है अब कोई कैसे कह सकता है कि जिनके घर करोड़ों की संपत्ति मिल रही है, वे बेदाग हैं। राजनीतिक रंजिश में ही उनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसिया कार्रवाई कर रही हैं।

करप्शन के खिलाफ कार्रवाई पर कई दल एक साथ हैं, पर सभी नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मुद्दे पर पत्र लिखने वाले विपक्षी नेताओं को जब एकजुट करने के लिए कांग्रेस ने सोमवार को बैठक बुलाई तो नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी और ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने खुद को अलग रखा। कांग्रेस इसे संसद में मुद्दा बनाना चाहती है। इसीलिए वह विपक्ष को एक साथ लाने का प्रयास कर रही है। फिर भी 16 विपक्षी दलों के नेता जुटे। विपक्ष के आरोप उल्टे उन पर ही भारी पड़ जाएंगे, जब ईडी-सीबीआई मामलों की त्वरित सुनवाई करे। सजा भी जल्द हो। अगर ऐसा नहीं हो पाया तो उस पर विपक्षी नेताओं के आरोप को ही लोग सही मान लेंगे। इसलिए आवश्यक है कि पोलिटिशियन से जुड़े इन मामलों में जल्द फैसला हो। लोगों में यह भरोसा कायम हो सके कि बीजेपी राजनीतिक रंजिश में ऐसे कदम उठाने के लिए सेंट्रल एजेंसियों को पीछे लगा रही है। बीजेपी को यह भी करना चाहिए कि उससे ताल्लुक रखने वाले लोग भी ईडी, सीबीआई और आईटी के एक्शन से न बचें।

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