Monday, December 23, 2024
HomeIndian Newsक्या दिल्ली में भरता पानी शर्म की बात है?

क्या दिल्ली में भरता पानी शर्म की बात है?

दिल्ली में भरता पानी शर्म की बात माना जा रहा है! एक तरफ चांद को छूने के फौलादी इरादे और दूसरी तरफ पानी-पानी देश की राजधानी। ये तस्वीरों का विरोधाभास है और विरोधाभास की तस्वीरें हैं। जिस समय बेंगलुरु में चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ, उस वक्त राजधानी दिल्ली के ज्यादातर इलाके पानी में डूबे थे। जेहन में वो तस्वीरें कौंध रही हैं जब अंतरिक्ष विज्ञान में भारत डगमगाते कदमों से चलना सीख रहा था। वैसे ही जैसे कोई बच्चा जब पहली बार बकैया चलता है, किसी चौपाये के अंदाज में। फिर एक दिन लड़खड़ाते कदमों से खड़ा भी होता है और गिरते-फिरते डेग भरना सीखता है। वो साइकिल से रॉकेट का लॉन्चिंग साइट तक जाना, वो बैलगाड़ी से सैटलाइट का ढोया जाना। आज हम चांद को मुट्ठी में करने जा रहे। लेकिन राजधानी डूब रही है। ड्रेनेज सिस्टम ध्वस्त है। यकीन कर पाना मुश्किल है कि ये सैकड़ों-हजारों साल पहले दुनिया को ड्रेनेज सिस्टम का मंत्र देने वाले भारत की राजधानी का मंजर है। 1962 में इंडियन नैशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च बनती है और एक साल के भीतर भारत केरल के एक छोटे से गांव थुंबा से पहले रॉकेट को लॉन्च कर दुनिया को हैरान कर देता है। लॉन्चिंग साइट तक वह रॉकेट साइकिल से ले जाया गया। 1969 में INCOSPAR इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन में तब्दील होती है। इसके 6 साल बाद भारत का पहला देसी सैटलाइट आर्यभट्ट लॉन्च होता है। 1979 में इसरो अपनी लॉन्चिंग साइट को श्रीहरिकोटा शिफ्ट करता है और सालभर के भीतर 1980 में भारत का पहला लॉन्च वीइकल SLV-3 सैटलाइट आरएस-1 को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करता है। तब डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने उसे ‘छोटा वीइकल लेकिन देश के लिए महा छलांग’ करार दिया था।

1981 में भारत ने पहला संचार उपग्रह ऐपल लॉन्च किया। वही उग्रह जिसे लॉन्चिंग साइट तक बैलगाड़ी से ले जाया गया था।1981 में भारत ने पहला संचार उपग्रह ऐपल लॉन्च किया। वही उग्रह जिसे लॉन्चिंग साइट तक बैलगाड़ी से ले जाया गया था। कभी साइकिल से रॉकेट और बैलगाड़ी से सैटलाइट ढोने वाला इसरो आज अंतरिक्ष विज्ञान में दुनिया की चुनिंदा महाशक्ति है। जितने बजट में हॉलिवुड की फिल्में बनती हैं, उससे भी कम बजट में मून मिशन लॉन्च करता है।कभी साइकिल से रॉकेट और बैलगाड़ी से सैटलाइट ढोने वाला इसरो आज अंतरिक्ष विज्ञान में दुनिया की चुनिंदा महाशक्ति है। जितने बजट में हॉलिवुड की फिल्में बनती हैं, उससे भी कम बजट में मून मिशन लॉन्च करता है।

एक तरफ तो हम आसमां की चौहद्दी नाप रहे हैं लेकिन हमारे महानगर जरा सी बारिश में ही दरिया बन जाते हैं। विडंबना देखिए, जिस भारत ने कभी हजारों साल पहले आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम को ईजाद किया था, आज जरा सी तेज बारिश में उसके महानगरों का हांफना जैसे नियति बन चुकी है। आईटी हब बेंगलुरु हो या आर्थिक राजधानी मुंबई या फिर देश की सत्ता का केंद्र दिल्ली, सबका वही हाल है। अभी दिल्ली में यमुना के किनारे के सारे इलाके डूबे हुए हैं। हालांकि, वजह बारिश नहीं है बल्कि हरियाणा के यमुनानगर स्थित हथिनीकुंड बैराज से लाखों क्यूसेक पानी का छोड़ा जाना है। पहाड़ी राज्यों में मूसलाधार बारिश का पानी हरियाणा आ रहा और वहां से दिल्ली। हथिनीकुंड से पानी का छोड़ा जाना बेशक राजधानी में बाढ़ की वजह है लेकिन वह इकलौता कारण नहीं है। यमुना के डूब क्षेत्र में अंधाधुंध अतिक्रमण, अवैध निर्माण, कूड़ों का ढेर, यमुना में प्रदूषण और दम तोड़ चुके ड्रेनेज सिस्टम जैसे तमाम कारण हैं। दिल्ली में पिछले 4-5 दिनों से बारिश नहीं हुई। पानी जिस तेजी से उतरना चाहिए था, उस तेजी से नहीं उतर रहा। वजह है ड्रेनेज सिस्टम की नाकामी। राजधानी के आस-पास के इलाकों में सैलाब नहीं है। अगर ड्रेनेज सिस्टम ठीक होता तो सड़कों से पानी तेजी से बाहर निकल जाता।

सिंधु घाटी सभ्यता के युग में आधुनिकतम ड्रेनेज सिस्टम थे। 2500-1700 ईसा पूर्व में सिंधु घाटी सभ्यता के दौर में बेमिसाल टाउन प्लानिंग थी, ड्रेनेज सिस्टम ऐसा था जिसके आगे आज के आधुनिकतम सिस्टम भी पानी मांगे। 1920 के दशक में हड़प्पा की खुदाई के दौरान वैज्ञानिक हैरान रह गए थे कि आज से हजारों साल पहले ड्रेन और सीवर का आधुनिक नेटवर्क भी वजूद में रहा होगा। टाउन प्लानिंग की अद्भुत मिसाल। शहर बसाते वक्त सबसे पहले नालियों और गलियों को बनाया गया था फिर घरों को। सड़कें और नालियां एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। हर घर में स्नानागार यानी बॉथरूम। घरों की नालियां गली की नालियों से जुड़ी थीं जो आगे बड़े नालों से जुड़ी हुई थीं। घर की नालियां सबसे पहले एक कुंड में गिरती थीं जहां अपशिष्ट फिल्टर होते थे। कुंड में ठोस अपशिष्ट जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में पहुंच जाता था। बड़े नाले सड़कों के समानांतर थे, ढके हुए। कुल मिलाकर ऐसा बेमिसाल ड्रेनेज सिस्टम कि मूसलाधार बारिश में भी गलियों या सड़कों पर पानी जमा नहीं हो। लेकिन आज की स्थिति क्या है? कम से कम हम हजारों साल पहले के उस मंत्र से ही सबक सीखते ताकि बरसात में हमारे महानगर दरिया बनने से बच जाते।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments