Thursday, February 13, 2025
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क्या पुरुषों के लिए भी है सुप्रीम कोर्ट में कानूनी प्रावधान?

सुप्रीम कोर्ट में पुरुषों के लिए भी कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं! रेप से जुड़े सख्त कानून हों या महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए बना कठोर कानून, मकसद यही है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगे। हालांकि, इन कानूनों का दुरुपयोग भी देखने को मिलता है। उन्हें बेगुनाहों को फंसाने के लिए हथियार के तौर पर इस्तेमाल की घटनाएं भी सामने आती रहती हैं। यहां तक कि कुछ मामलों में देखा गया है कि फर्जी मामलों के जरिए ब्लैकमेल कर उगाही की कोशिश भी की जाती है। ब्रेकअप हो गया तो पार्टनर ने रेप का केस कर दिया। लंबे समय तक लिव-इन में रहे लेकिन अनबन हो गई तो रेप का केस। उधार ली गई रकम वापस मांगी तो रेप का फर्जी केस। पति से अनबन हो गई, बात ज्यादा बिगड़ गई तो उसे घरेलू हिंसा के झूठे केस में फंसा दिया। आए दिन इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। ऐसे मामलों में पीड़ित पुरुष होते हैं। कई बार तो ऐसे पीड़ित खुदकुशी तक कर लेते हैं। फर्जी केस अदालतों में नहीं टिकेंगे लेकिन फैसले में वक्त तो लगेगा ही। लिहाजा अगर कभी ऐसी स्थिति में फंस जाएं तो धैर्य रखें, कानून और इंसाफ पर भरोसा रखें। सबसे पहले बात पुरुषों के अधिकारों की। संविधान और कानून में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। समानता का अधिकार है। चाहे पुरुष हो या महिला। लेकिन पुरुषों के अधिकारों के लिए काम करने वाले ऐक्टिविस्ट अक्सर आरोप लगाते हैं कि भारत में कानून पुरुषों के साथ भेदभाव करते हैं। घरेलू उत्पीड़न का शिकार सिर्फ महिलाएं नहीं होतीं, पुरुष भी होते हैं। इसलिए महिला आयोग की तर्ज पर पुरुष आयोग बनाए जाने की मांग भी होती है। पुरुष अधिकारों के लिए काम करने वाली ऐक्टिविस्ट दीपिका नारायण भारद्वाज कहती हैं, ‘ऐसे बहुत केस हैं जहां क्रूर पति नहीं पत्नी होती है। ऐसे कुछ केस में पति को तलाक़ तो मिला लेकिन पत्नी को कोई सजा नहीं मिली। भारत के कानून पत्नी को अभी भी सती सावित्री मानते हैं। लेकिन समाज की सच्चाई को देखें तो ये बिलकुल गलत धारणा है। हर रोज अखबार में खबरें आ रही हैं जहां पत्नी अपने आशिक के साथ पति को मौत के घाट उतार रही है। अनगिनत केस में शादी टूटने का कारण पत्नी का किसी और के साथ अफेयर होता है। लेकिन कानून के हिसाब से पति पत्नी पर 498A का केस नहीं कर सकता। पत्नी कितनी भी मानसिक प्रताड़ना दे पति को, उसको कोई सजा नहीं होती।’ भारद्वाज ने अपनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘मार्टर्स ऑफ मैरिज’ में ऐसे पुरुषों की कहानी बयां की है जिन्होंने झूठे केस में फंसाए जाने के बाद आत्महत्या कर ली। इस कड़वी हकीकत के बावजूद अदालतों ने समय-समय पर कुछ ऐसे बड़े फैसले दिए हैं जो पीड़ित पुरुषों के लिए बहुत राहत वाले रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में सुशील कुमार vs यूनियन ऑफ इंडिया केस में 498A के दुरुपयोग को ‘लीगल टेररिज्म’ करार दिया था। कोर्ट ने कहा कि निजी रंजिश और बदले के लिए आईपीसी की धारा 498 ए के तहत केस दर्ज कराए जा रहे हैं। इस तरह का दुरुपयोग के दुरुपयोग से एक नए तरह का लीगल टेररिज्म शुरू हो सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2022 में दहेज प्रताड़ना के मामले में बड़ा आदेश दिया। कोर्ट ने कहा 498ए (दहेज प्रताड़ना) के मामले में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ स्पष्ट आरोप के बिना केस चलाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट ने महिला के ससुरालियों के खिलाफ चल रहे दहेज प्रताड़ना के केस को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आजकल दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा-498ए के प्रावधान का पति के रिश्तेदारों के खिलाफ अपना स्कोर सेटल करने के लिए टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के क्रिमिनल केस जिसमें बरी होना संभावित भी क्यों न हो फिर भी आरोपी के लिए यह गंभीर दाग छोड़ जाता है। इस तरह के किसी प्रयोग को हतोत्साहित करने की जरूरत है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य के मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने 498ए के तहत केस दर्ज होते ही आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी को गलत ठहराया। अरनेश कुमार के खिलाफ उनकी पत्नी ने आईपीसी की धारा 498 ए और डावरी ऐक्ट की धारा 4 के तहत केस दर्ज कराया था। उन्होंने एंटिसिपेटरी बेल के लिए सेशंस कोर्ट का रुख किया लेकिन राहत नहीं मिली। पटना हाई कोर्ट ने भी एंटिसिपेटरी बेल की याचिका खारिज कर दी तब अरनेश कुमार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। शीर्ष अदालत ने न सिर्फ उन्हें और उनके परिवार वालों को गिरफ्तारी से राहत दी बल्कि पुलिस को ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस 498 ए के तहत केस दर्ज होते ही आरोपी की गिरफ्तारी नहीं करेगी। वह सीआरपीसी की धारा 41 का पालन करेगी और मैजिस्ट्रेट के सामने गिरफ्तारी की वजह भी बताएगी। अगर मैजिस्ट्रेट गिरफ्तारी के कारणों से संतुष्ट नहीं हैं तो वह आरोपी की हिरासत खत्म कर सकते हैं।

2013 के राज तलरेजा बनाम कविता तलरेजा में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा पति के ऊपर दहेज और घरेलू हिंसा का झूठा केस करना क्रूरता है और ये तलाक का आधार है। इस केस में महिला द्वारा खुद को चोट पहुंचाने के बाद पति को फंसाया गया था।2007 में समर घोष बनाम जया घोष केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ समाज में बिना किसी कारण दुष्प्रचार करना, उनके खिलाफ़ अखबार में झूठी रिपोर्ट लिखवाना मानसिक क्रूरता है। इस आधार पर पति को तलाक दिया गया।

2005 में सुप्रीम कोर्ट ने दिलीप कुमार बनाम बिहार राज्य केस में वादी को रेप केस में बरी किया था। वादी पर आरोप था कि उसने शादी का वादा करके अपनी महिला मित्र से रेप किया। इस मामले में निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराते हुए सजा दी थी। पटना हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो झूठे केस की पोल खुल गई। शीर्ष अदालत में साबित हुआ कि लड़की ने खुद कई मौकों पर आरोपी से शादी करने से इनकार किया था क्योंकि उनकी जाति अलग-अलग थी।

इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि रजामंदी से बने सेक्स संबंध में पार्टनर पर रेप का आरोप नहीं लगाया जा सकता। इस मामले में एक महिला के शादी के पहले एक शख्स से संबंध थे। प्रेमी की वजह से बाद में महिला ने अपने पति से तलाक ले लिया। तलाक के बाद महिला और प्रेमी के संबंध जारी रहे। लेकिन जब प्रेमी ने किसी अन्य महिला से शादी कर ली तो वह उस पर पत्नी से तलाक लेने का दबाव डालने लगी। जब प्रेमी इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो महिला ने उसके खिलाफ रेप का केस दर्ज करा दिया। आरोप लगाया कि उसने शादी का झांसा देकर उसके साथ रेप किया।

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