डेंगू बीमारी का अब तक कोई भी सटीक टीका नहीं मिल पाया है! भारत में एक भी व्यक्ति डेंगू सीरो निगेटिव नहीं बचा है। इसका मतलब ऐसे व्यक्तियों से है, जिन्हें जीवन में कभी डेंगू न हुआ हो। यानी देश की आबादी में ऐसा कोई नहीं है। इसका नुकसान यह है कि चंद महीने में कोरोना का टीका बनाने वाले भारतीय वैज्ञानिक डेंगू रोधी टीका बनाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी भी संक्रमण के खिलाफ टीके की खोज के लिए क्लीनिकल ट्रायल की आवश्यकता पड़ती है। इस ट्रायल में स्वस्थ और एंटीबॉडी ग्रस्त दोनों तरह के लोग होते हैं। ऐसा इसलिए, ताकि वैज्ञानिक दोनों समूह के बीच तुलना करके टीका का असर पता कर सकें। में कई जगह डेंगू के टीके की खोज चल रही है। भारत ने भी इस दिशा में काफी प्रगति की है। मौजूदा समय में दो बड़ी कंपनियां भारत में टीका पर परीक्षण कर रही हैं। हालांकि, टीके पर खोज से पहले हमारे लिए भारतीय आबादी में डेंगू सीरो पॉजिटिविटी यानी लोगों में डेंगू के खिलाफ विकसित एंटीबॉडी का स्तर पता करना जरूरी था। देश के 15 राज्य के 60 जिलों में 240 क्लस्टर में जाकर 12,300 लोगों की रक्त जांच की गई। यह दुनिया का सबसे बड़ा डेंगू सीरो सर्वे है। सर्वे में यह पता चला कि देश के 49 फीसदी आबादी में डेंगू के खिलाफ एंटीबॉडी है। इसका मतलब है कि देश का हर दूसरा व्यक्ति जीवन में एक बार डेंगू संक्रमित हुआ है। चूंकि यह सर्वे 2017-18 में हुआ था तब से लेकर अब स्थिति में और बदलाव आया है। यही वजह है कि भारत में डेंगू सीरो निगेटिव न मिलने की वजह से टीका ट्रायल के लिए फार्मा कंपनियों को विदेश में जाकर लोगों का चयन करना पड़ रहा है।
कोरोना की तरह डेंगू का टीका क्यों नहीं बनाने का सवाल पूछने पर डॉ. निवेदिता ने कहा, यही सवाल आईसीएमआर ने टीका निर्माता कंपनियों से पूछा था।भारत में डेंगू रोधी टीके की खोज के लिए दो बड़ी फार्मा कंपनियां खोज में जुटी हैं। इन्हीं में से एक पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कंपनी ने अपना ट्रायल विदेशी अस्पतालों में भी करने का निर्णय लिया है। सीरम कंपनी दो से 18 साल तक की आयु वालों के लिए टीका पर काम कर रही है। अब तक पहले और दूसरे चरण का ट्रायल पूरा हुआ है। इन दोनों ही परीक्षण में टीका प्रभावी पाया गया है। तीसरे चरण के ट्रायल के लिए उन्हें डेंगू सीरो निगेटिव लोगों की जरूरत पड़ रही है।कंपनियों ने कहा कि सरकार के आर्थिक सहयोग के बगैर परीक्षण शुरू नहीं कर सकते हैं। इन्होंने फिलीपींस की उस दुर्घटना का जिक्र किया, जिसमें डेंगवाक्सिया का टीकाकरण होने के बाद कुछ मौत दर्ज हुईं थीं।कोरोना की तरह डेंगू का टीका क्यों नहीं बनाने का सवाल पूछने पर डॉ. निवेदिता ने कहा, यही सवाल आईसीएमआर ने टीका निर्माता कंपनियों से पूछा था। कंपनियों ने कहा कि सरकार के आर्थिक सहयोग के बगैर परीक्षण शुरू नहीं कर सकते हैं। इन्होंने फिलीपींस की उस दुर्घटना का जिक्र किया, जिसमें डेंगवाक्सिया का टीकाकरण होने के बाद कुछ मौत दर्ज हुईं थीं। यह टीका दुनिया की सबसे महंगी खोज में से एक है। सरकार से आर्थिक सहयोग मिलने के बाद इन्होंने परीक्षण शुरू किए। पैनेसिया के ट्रायल में आईसीएमआर ने बजट आवंटित किया है।यह टीका दुनिया की सबसे महंगी खोज में से एक है। सरकार से आर्थिक सहयोग मिलने के बाद इन्होंने परीक्षण शुरू किए। पैनेसिया के ट्रायल में आईसीएमआर ने बजट आवंटित किया है।
भारत में डेंगू रोधी टीके की खोज के लिए दो बड़ी फार्मा कंपनियां खोज में जुटी हैं।सर्वे में यह पता चला कि देश के 49 फीसदी आबादी में डेंगू के खिलाफ एंटीबॉडी है। इसका मतलब है कि देश का हर दूसरा व्यक्ति जीवन में एक बार डेंगू संक्रमित हुआ है। चूंकि यह सर्वे 2017-18 में हुआ था तब से लेकर अब स्थिति में और बदलाव आया है। यही वजह है कि भारत में डेंगू सीरो निगेटिव न मिलने की वजह से टीका ट्रायल के लिए फार्मा कंपनियों को विदेश में जाकर लोगों का चयन करना पड़ रहा है। इन्हीं में से एक पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कंपनी ने अपना ट्रायल विदेशी अस्पतालों में भी करने का निर्णय लिया है। सीरम कंपनी दो से 18 साल तक की आयु वालों के लिए टीका पर काम कर रही है। अब तक पहले और दूसरे चरण का ट्रायल पूरा हुआ है। इन दोनों ही परीक्षण में टीका प्रभावी पाया गया है। तीसरे चरण के ट्रायल के लिए उन्हें डेंगू सीरो निगेटिव लोगों की जरूरत पड़ रही है।