Monday, December 23, 2024
HomeIndian Newsक्या अब भारत में नहीं है गरीबी? क्या कहते हैं आंकड़े?

क्या अब भारत में नहीं है गरीबी? क्या कहते हैं आंकड़े?

आज हम आपको बताएंगे कि भारत में गरीबी है या नहीं और आंकड़े क्या कहते हैं! कुछ गैर-भरोसेमंद आंकड़ों में भारत अमीर हो गया है। इसका अच्छा उदाहरण हाल में जारी हाउसहोल्‍ड कंजम्पशन एक्‍सपेंडिचर सर्वे 2022-23 है। बेशक, इसमें आंकड़ों का बारीकी से विश्लेषण किया गया है। फिर भी यह विश्लेषण डेटा की तरह ही त्रुटिपूर्ण है। अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने डेटा का इस्‍तेमाल यह कैलकुलेट करने के लिए किया है कि अत्यधिक गरीबी एक्‍सट्रीम पावर्टी 2011-12 में 12.2% से घटकर सिर्फ 2% रह गई है। उन्होंने यह भी कैलकुलेट किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में असमानता 28.7 से कम होकर 27 और शहरी क्षेत्रों में 36.7 से 31.9 पर आ गई है। इन आंकड़ों पर किसी को वाकई खुश होना चाहिए या हंसी उड़ानी चाहिए?समस्‍या यह है कि जिन्‍हें सर्वे में शामिल किया जाता है उनके पास सच बोलने के लिए कोई इंसेंटिव नहीं होता है। यही कारण है कि चुनावी ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल बुरी तरह से गलत साबित होते हैं। यह और बात है कि स्‍टैटिस्टिक्‍स की तकनीकों पर भारी-भरकम खर्च किया जाता है। सर्वे में वोटर सच बोलने के लिए बाध्‍य नहीं होते हैं। अपने बचाव के लिए वह झूठ भी बोल देते हैं। मेरे एक करीबी रूरल एनजीओ के साथ काम करते थे। मैंने उनसे पूछा कि क्‍या अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में गांव के लोग सच बताते हैं। उन्‍होंने जवाब दिया कि अगर कोई साथ का गांव वाला उनसे पूछता है तो वे अपनी समृद्ध‍ि को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वहीं, कोई बाहरी ऐसा करता है तो वे गहरे संकट में होने का दावा करते हैं। फ्रीबीज रेवड़‍ी का दायरा बढ़ने के साथ गलत बताने में फायदा है। हमारा पूरा स्‍टैटिस्टिकल सिस्‍टम सेल्‍फ रिपोर्टेड डेटा पर निर्भर है। अन्‍य प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍थाओं में इस गलत मैथडोलॉजी की ओवरहॉलिंग हो रही है। भारत को भी इसी तर्ज पर चलना चाहिए।

ताजा सर्वे के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अमीर 5 फीसदी लोग हर महीने सिर्फ 10,501 रुपये खर्च करते हैं। अमीर किसानों की जीवनशैली से परिचित कोई भी व्‍यक्ति इस पर हंसेगा। खासतौर से उनकी फैंसी कारों और आलीशान बंगलों को देखकर। इससे भी अजीब यह है कि शहरों में 5 फीसदी सबसे अमीर लोगों के लिए माना गया है कि वे हर महीने सिर्फ 20,821 रुपये खर्च करते हैं। इनमें अंबानी और अडानी जैसी शख्सियतें शामिल हैं। यह आंकड़ा अटपटा लगता है। शहरी अमीर लंदन में वीकेंड शॉपिंग और स्विट्जरलैंड में स्‍कींग के लिए जाते हैं। आर्ट ऑक्‍शन में वे लाखों करोड़ों खर्च करते हैं। ऐसे खर्च कैप्‍चर करने के लिए सर्वे के सवाल डिजाइन नहीं किए जाते हैं। ज्‍यादातर रईस इंटरव्‍यू देने से मना कर देते हैं। वहीं, दूसरे सच बोलने में बहुत ‘किफायती’ हो जाते हैं। सर्वे दावा करता है कि ग्रामीण खर्च में किराये की हिस्‍सेदारी सिर्फ 0.78 फीसदी है। शहरी खर्च में इसकी हिस्‍सेदारी 6.56 फीसदी है। यह आंकड़ा ऐसे हर किसी को चौंका देगा जो अपनी आधी इनकम किराये पर खर्च करता है। चूंकि अमीरों के खर्च के बारे में पुख्‍ता आंकड़े नहीं मिलते हैं। ऐसे में भारतीय सांख्यिकीविद इस बात को मान लेते हैं कि जो अमीर नहीं है वे सच बोलते हैं। हालांकि, ऐसा मान लेना सही नहीं है। यही कारण है कि तस्‍वीर बहुत साफ नहीं आती है।

2017 में हुए एक अध्‍ययन में फॉक्‍स, हेजेनेस, पकास और स्‍टीवेंस ने पाया था कि चार अमेरिकी राज्‍यों में कम से कम 40 फीसदी फूड स्‍टैंप के लाभार्थियों ने इस बात से इनकार किया कि उन्‍हें कोई लाभ मिलता है। मेयर, मॉक और सुलिवन ने अपनी स्‍टडी में इसे बड़ा खुलकर ‘हाउसहोल्‍ड सर्वे इन क्राइसिस’ शीर्षक दिया। उन्होंने पाया कि सर्वे में शामिल लाभार्थियों में से सिर्फ आधे लोगों ने माना कि फूड स्‍टैंप, कैश ट्रांसफर और वर्कर्स कंपन्‍सेशन से उन्‍हें मदद मिली। यह सब देखते हुए दोबारा उसी सवाल पर आने की जरूरत है। अपनी समृद्ध‍ि को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वहीं, कोई बाहरी ऐसा करता है तो वे गहरे संकट में होने का दावा करते हैं। फ्रीबीज रेवड़‍ी का दायरा बढ़ने के साथ गलत बताने में फायदा है। हमारा पूरा स्‍टैटिस्टिकल सिस्‍टम सेल्‍फ रिपोर्टेड डेटा पर निर्भर है। अन्‍य प्रमुख अर्थव्‍यवस्‍थाओं में इस गलत मैथडोलॉजी की ओवरहॉलिंग हो रही है। भारत को भी इसी तर्ज पर चलना चाहिए।क्‍या अत्‍यधिक गरीबी वाकई घटकर 2 फीसदी रह गई है? क्‍या असमानता में वास्‍तव में कम हुई है? क्‍या भल्‍ला के निष्‍कर्ष खुश या हंसी उड़ाने वाले हैं? जवाब यह है कि जब अमीरों और गरीबों के अनुमान में इतनी गड़बड़ी है तो भल्‍ला ने जो ट्रेंड जाहिर किए हैं उन पर न तो हंसा जा सकता है न मखौल उड़ाया जा सकता है।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments