समान नागरिक संहिता भारत की महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है! समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वालों से उन्होंने एक सवाल पूछा – अपने बच्चों को तुर्की, अमेरिका और यूरोप भेजने से पहले भारत के मुसलमान क्या वहां के कानून को देखते हैं? जावेद अख्तर ने ये भी शंका जताते हुए कहा – मुसलमानों को शायद ऐसा लग रहा है कि यूसीसी के आने के बाद वो एक से ज्यादा शादी नहीं कर पाएंगे। अख्तर साहब की बात एक हद तक नहीं बहुत हद तक जायज है। और तीन तलाक पर बैन के बाद इस तरह का डर घर कर गया है तो हंसी आती है। हमारा पौराणिक इतिहास हिंदू राजाओं और समाज में समृद्धों के बहुविवाह की परंपरा से पटा हुआ है। ये प्रथा आज भी कई जगहों में जारी है। हिंदू धर्म में तो वेद, पुराण और संहिताओं का अंबार है। अब अगर उसके आधार पर कानून बनने लगे तो घोर कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसी तरह अगर शरिया के मुताबिक मुसलमान जाती जिंदगी जीना चाहते हैं तब तो बेटियों की शिक्षा पर सवाल उठेंगे, बैंक से ब्याज को हराम माना जाएगा। इसलिए यूनिफॉर्म सिविल कोड को एक प्रगतिशील समाज की जरूरत के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे – ने नारा देने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी अकेले नहीं थे। और न ही ये हिंदुत्वादियों का एजेंडा है। ये शाहबानो जैसी महिलाओं की जरूरत है। तभी तो हमारे संविधान के पितामह डॉक्टर अंबेडकर ने यूसीसी के पक्ष में अपनी राय रखी थी। जब संविधानसभा में कई सदस्यों ने अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप पर ऐतराज जताया तो अंबेडकर ने कहा – अगर सामाजिक मामलों में राज्य यानी सरकार का कोई दखल नहीं होगा तो देश एक जगह ठहर जाएगा। विविधता से भरे देश में ऐसा नहीं है कि हिंदुओं के सारे मामले किसी एक हिंदू पर्सनल लॉ से तय होते हैं। एक हिंदू अगर पारंपरिक रस्मों से शादी करे तो कोई और कानून और स्पेशनल मैरिज एक्ट के तहत कोर्ट में शादी कर ले और बीवी किसी और धर्म की हो तो उसके लिए अलग एक्ट। गफलत है। बहुत गफलत है। अब मुसलमानों की चिंताओं पर आते हैं। आम तौर पर जेहन में सवाला आता होगा कि क्या किसी मुस्लिम देश में यूसीसी जैसा कानून है जो किसी धार्मिक ग्रंथ से गाइड न होता हो।
तुर्की यहां की 99 फीसदी आबादी मुस्लिम है। अतातुर्क मुस्तफा कमाम पाशा के इस देश में 1926 से ही धर्मनिरपेक्ष कानून लागू है। शादी, वारिस, बच्चों और संपत्ति पर अधिकार के कानून सबके लिए समान हैं। शरिया का इससे कोई लेना – देना नहीं है। हाल ही में इसे और प्रोग्रेसिव बनाया गया। सहमति से सेक्स के लिए मर्दों और औरतों की उम्र सीमा 18 की गई है। शादीशुदा जिंदगी में पति-पत्नी को फैसले लेने के समान अधिकार दिए गए हैं। संयुक्त संपत्ति में हक के फैसले को पति-पत्नी पर छोड़ दिया गया है। वो सहमति से जो तय कर लें।
नेशनल सिविल कोड 2017 ने तय कर दिया है कि देश का फैमिली लॉ एक होगा। बहुविवाह पर रोक है। शादी के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 20 है। मियां-बीवी को तलाक के समान अधिकार मिले हुए हैं। महिलाएं शादी के बाद भी सरनेम बदलने के लिए मजबूर नहीं हैं। कनाडा के सबसे प्रांत में एक ही सिविल कोड चलता है। संपत्ति पर हक, शादी और बच्चों के अधिकार सबके लिए एक है। आपको बता दें कि समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य कानूनों का एक समान सेट प्रदान करना है जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।
समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी। वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं। फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। UCC के समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव को कम करने और कानूनी प्रणाली को सरल बनाने में मदद करेगा। हालांकि, विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।