आपने कुख्यात डाकू सीमा परिहार के बारे में तो जरूर सुना होगा! आंखों में काजल की जगह, उसने भर लिया गुस्सा… होठों पर लाली की जगह ले ली गालियों ने… माथे पर बिंदी की जगह उसने बांध लिया लाल पट्टा… उसने हाथों में चूड़ियां नहीं बंदूक सजा ली। जिस उम्र में लड़कियां सजती-संवरती हैं, हज़ारों सपने देखती हैं, उस उम्र में उसने हथियारों को अपना गहना बना लिया। ये कहानी है चंबल के बीहड़ की उस लड़की की जिसने तेरह साल की उम्र में हथियारों से दोस्ती कर ली और बन गई चंबल की रानी।बात कर रहे हैं चंबल की कुख्यात डकैत सीमा परिहार की जिससे एक वक्त पर लोग थरथर कांपते थे। जिसकी बंदूक की गोली ने ना जाने कितनों को मार गिराया। जिससे आम लोग तो छोड़ों बड़े-बड़े डाकू भी खौफ खाते थे। लंबे समय तक चंबल के बीहड़ में सीमा परिहार का ही नाम गूंजा करता था, लेकिन क्या आप जानते हैं सीमा ने इतनी छोटी उम्र में क्यों चुनी बीहड़ की ज़िंदगी। कैसे 13 साल की लड़की बन गई देश की सबसे कुख्यात डाकू?
सीमा परिहार को बेशक हर कोई चंबल की रानी कहता हो लेकिन उसकी कहानी शुरू होती है उत्तर प्रदेश के औरेया जिले के एक छोटे से गांव बबाइन से। इस गांव के एक छोटे से घर में सीमा अपने परिवार के साथ रहती थी। माता-पिता और छह भाई बहन। परिवार बेशक बहुत गरीब था, लेकिन वो खुश थी अपने परिवार में। इस गांव में सेंगर ठाकुरों का दबदबा था, वो अक्सर सीमा के परिवार को परेशान करते। जवान होती लड़कियों पर गांव के दबंगों की बुरी नज़र थी। सीमा के पिता पर उनकी बेटियों को लेकर अक्सर शादी का दवाब बनाया जाता लेकिन जब वो ना माने तो गांव दबंगों ने ऐसा खेल खेला जिसने सीमा की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
वो रात बेहद काली थी। आधी रात का वक्त था, सीमा का परिवार अपने छोटे से घर में सोया हुआ था, तभी आठ-दस लोग जबरन सीमा के घर के अंदर घुस आए। घर में तोड़-फोड़ की और 13 साल की सीमा को जबरदस्ती घर से उठा कर ले गए। सीमा के पिता रोते रहे, सीमा को ना ले जाने की विनती करते रहे, लेकिन वो ना माने। ये चंबल के डाकू लालाराम का गैंग था जो गांव के सेंगर राजपूतों के कहने पर सीमा को चंबल उठा कर ले गया। माता-पिता रोते रहे, लेकिन इस काली रात में उनकी बेटी, उनकी आंखों के सामने ही अगवा हो गई।
कल तक जो सीमा अपने परिवार में अपने भाई-बहनों के साथ खेलती-कूदती थी वो अब डाकूओं से घिरी हुई थी। जंगल में सीमा के साथ कई अत्याचार हुए। 13 साल की उम्र में न जाने कितनी बार उसके साथ बलात्कार किया गया। वो सबकुछ सहती रही लेकिन उसे इंतजार था कि शायद उसके पिता उसे यहां से छुड़ा ले जाएंगे। शायद पुलिस उसे आकर बीहड़ के इन डाकुओं क जुल्मों से बचाएगी। दिन बीते, महीने बीते, साल बीते लेकिन कोई न आया। अब सीमा ने इसे अपनी नियति मान लिया। एक दिन सीमा को अपने गांव का शख्स मिला जिसने सीमा को पूरी कहानी बताई।
सीमा को पता चला कि जब डाकू उसे अगवा करके ले गए तो उसका परिवार मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचा, लेकिन पुलिस ने उनकी कोई मदद नहीं की। पुलिस ने सीमा के पिता को कहा कि उनकी बेटी को अगवा नहीं किया गया बल्कि वो खुद भाग गई होगी। इतना ही नहीं सीमा के पूरे परिवार को जेल में भी डाल दिया गया, उसके घर की नीलामी कर दी गई। मजबूर पिता अपनी बेटी को बचाने की गुहार लगाता रहा लेकिन किसी ने न सुनी। अपने परिवार की ऐसी दुर्दशा सुन सीमा के अंदर बदले की आग जलने लगी। कल तक जो डाकुओं के जुल्मों से परेशान होकर टूट रही थी उसने अब खुद को मजबूत किया और फिर बंदूक उठा ली। सीमा ने ठान लिया वो बदला लेगी अपना और परिवार का।
लालाराम ने ही सीमा को बंदूक चलाना सीखाया, अब वो लालाराम गैंग की एक कुख्यात डाकू बन चुकी थी। 16 साल की उम्र में उसने गांव में ही पहली हत्या को अंजाम दिया। ये तो बस शुरूआत थी। उसने ठान ली थी वो गांव के सेंगर परिवारों को नहीं छोड़ेगी। गांव में आए दिन डकैती, अपहरण और लूटपाट की वारदात होने लगी। जो पहले सीमा परिहार के परिवार को तंग करते थे वो अब सीमा के नाम से खौफ खाने लगे। सीमा ने यहां कई परिवारों के बच्चों का अपहरण किया, फिरौती मांगी और रकम न मिलने पर बच्चों की हत्याएं कर दी। सिर्फ बबाइन गांव ही नहीं चंबल के आसपास सभी गांवों में सीमा परिहार दहशत का दूसरा नाम बन गई।
18 साल बीहड़ के जंगलों में बिताकर अब वो सशर्त आत्मसमर्पण करने को तैयार थी। पुलिस ने वादा किया कि आत्मसमर्पण के बाद उसे नौकरी, घर और एक बंदूक का लाइसेंस दिया जाएगा, लेकिन सीमा के मुताबिक वो उसे कभी नहीं दिया गया। सरेंडर करने के बाद बीहड़ की रानी की ज़िंदगी जेल में कटी। करीब साढे तीन साल तक वो जेल में रही। जेल में ही सीमा को कई राजनैतिक दलों ने पार्टी ज्वाइन करने के ऑफर दिए। 2006 में सीमा ने इंडियन जस्टीस पार्टी ज्वॉइन की और लोकसभा का उप चुनाव भी लड़ा लेकिन वो हार गई। दो साल बाद सीमा समाजवादी पार्टी का हिस्सा बनी।