हाल ही के दिनों में अदालत के द्वारा हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया गया है! ज्ञानवापी मस्जिद केस में देवी श्रृंगार गौरी की दैनिक पूजा का अधिकार दिए जाने संबंधी याचिका को वाराणसी कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से केस की सुनवाई की पोषणीयता पर बहस के दौरान तीन एक्ट को आधार बनाया गया। इसके आधार पर हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज करने का अनुरोध किया गया है। इसमें प्लेसेजे ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991, वक्फ ऐक्ट 1985 और काशी विश्वनाथ ऐक्ट 1983 शामिल था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट और वक्फ ऐक्ट की चर्चा काफी हो चुकी है। राम मंदिर आंदोलन के बाद प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को संसद से पास कया गया। इसमें देश में मौजूद धार्मिक ढांचों को 15 अगस्त 1947 के बाद की स्थिति में बदलाव नहीं किए जाने की बात कही गई। हालांकि, बाबरी मस्जिद को इस मामले में अपवाद माना गया। वहीं, वक्फ ऐक्ट 1985 के तहत मुस्लिम धर्म की संपत्ति पर कोई भी दावा दूसरे धर्म के लोग नहीं कर सकते हैं। इन दोनों ऐक्ट के अलावा काशी विश्वनाथ ऐक्ट 1983 का भी सहारा मुस्लिम पक्षकारों ने लिया। इस ऐक्ट में साफ है कि काशी विश्वनाथ कमेटी में केवल हिंदू ही कार्यवाहक होंगे। ऐसे में मुस्लिम धर्मस्थल पर दावा किस आधार पर किया जा रहा है। हालांकि, कोर्ट ने मुस्लिम पक्षकारों की तीनों ऐक्ट की व्याख्या को सही नहीं माना और हिंदू पक्षकारों की ओर से माता श्रृंगार गौरी की दैनिक पूजा संबंधित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकृत कर लिया।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत 13 अक्टूबर 1983 को काशी विश्वनाथ टेंपल एक्ट को लागू किया गया। यूपी विधानमंडल की ओर से पास इस ऐक्ट को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ऐक्ट को प्रभावी किया गया। यह वर्ष 1983 के ऐक्ट संख्या 29 के रूप में भी जाना जाता है। इस ऐक्ट के जरिए काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके विन्यास के समुचित एवं बेहतर प्रशासन की व्यवस्था की गई है। साथ ही, मंदिर से संबद्ध या अनुषांगिक विषयों की व्यवस्था भी की गई है। इस अधिनियम में 13 जनवरी 1984, 5 दिसंबर 1986, 2 फरवरी 1987, 6 अक्टूबर 1989, 16 अगस्त 1997, 13 मार्च 2003 और 28 मार्च 2013 को संशोधन भी हुए हैं।
अधिनियम के प्रभाव की विस्तार से व्याख्या की गई है। ऐक्ट की धारा या उप धारा में निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही बदलाव या संशोधन किया जा सकता है। इस एक्ट का प्रभाव किसी अन्य नियम, प्रथा, रूढ़ि या विधि के प्रभावी होने के बाद भी बना रहेगा। किसी कोर्ट के निर्णय, डिग्री या आदेश या फिर किसी कोर्ट की ओर से निश्चित की गई किसी योजना में मंदिर से संबंधित कोई बात होने के बाद भी काशी विश्वनाथ टेंपल ऐक्ट प्रभावी रहेगा। डीड या डॉक्यूमेंट के सामने आने के बाद भी इस ऐक्ट को प्रभावित नहीं किए जाने की बात कही गई है।
हालांकि, मुस्लिम पक्ष की ओर से दी गई दलील में ऐक्ट की धारा 3 का जिक्र किया गया। इसमें साफ है कि ऐक्ट के अधीन कार्य करने वाले हिंदू होंगे। चूंकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि देवी श्रृंगार गौरी की प्रतिमा का दावा ज्ञानवापी परिसर में किया जा रहा है। ऐसे में इस पर हिंदू पक्ष किस प्रकार दावा कर सकता है। एक्ट की धारा 3 में साफ किया गया है कि न्यास परिषद, कार्यपालक समिति के सदस्य, मुख्य कार्यपालक अधिकारी और मंदिर के कर्मचारी का हिंदू होना जरूरी है। अगर कोई व्यक्ति हिंदू न रहे, यानी धर्म परिवर्तन कर ले तो उसे पद से हटा दिया जाएगा।
ऐक्ट की धारा 5 में मंदिर की संपत्ति का जिक्र किया गया है। इसमें मंदिर में पूजा-पाठ, सेवा, कर्मकांड, समारोह या धार्मिक अनुष्ठान के आयोजन को लेकर फीस या दान का जिक्र किया गया है। साथ ही, मंदिर में प्रतिष्ठित देवताओं की प्रतिमा, मंदिर परिसर, मंदिर सीमा के भीतर किसी भी व्यक्ति की ओर से किए जाने जाने वाले दान पर ऐक्ट के तहत मंदिर प्रबंधन का अधिकार होने की बात कही गई है। देवी श्रृंगार गौरी की पूजा के लिए वर्ष 1993 से साल में दो बार खोला जा रहा है।
ऐक्ट के तहत मंदिर की संपत्ति पर न्यास परिषद को संरक्षण की जिम्मेदारी दी गई है। ऐक्ट की धारा 13 की उपधारा 1 में साफ किया गया है कि मंदिर और उसके विन्यास, मंदिर के तहत आने वाली चल और अचल संपत्ति, द्रव्य (पैसे), मूल्यवान वस्तु, आभूषण, अभिलेख, दस्तावेज, भौतिक पदार्थ पर न्याय परिषद का अधिकार रहेगा। न्यास परिषद मंदिर के तहत आने वाली अन्य संपत्तियों को कब्जे में लेने और रखने की हकदार होगी।
धारा 13 की उप धारा 2 के तहत प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति मंदिर की संपत्ति को अपने अधीन नहीं रख सकता है। अगर किसी भी व्यक्ति के कब्जे में, अभिरक्षा में या नियंत्रण में मंदिर की कोई संपत्ति है तो उसे मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी के समक्ष पेश करना होगा। इसमें चल और अचल दोनों संपत्ति का जिक्र है।
ज्ञानवापी केस में जब मुस्लिम पक्षकारों की ओर से अपनी दलील में काशी विश्वनाथ मंदिर ऐक्ट का जिक्र किया गया तो हिंदू पक्ष की ओर से इस पर आवाज उठने लगी है। वाराणसी कोर्ट के वकीलों का कहना है कि ऐक्ट को ही आधार मानें और साक्ष्यों को देखें तो ज्ञानवापी परिसर काशी विश्वनाथ मंदिर के दायरे में आता है। वजुखाने में शिवलिंग और माता श्रृंगार गौरी इसका उदाहरण हैं। ऐक्ट की धारा 13 की उप धारा 2 के तहत इस संपत्ति को अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी को काशी विश्वनाथ मंदिर के सीईओ के समक्ष पेश कर देना चाहिए।
वक्फ बोर्ड ऐक्ट के आधार पर भी मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला जज से हिंदू महिलाओं महिलाओं की अपील खारिज करने की मांग की थी। इस कानून में कहा गया है कि मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। इस स्थिति में कोई भी लीगल प्रोसिडिंग सेंट्रल वक्फ ट्रिब्यूनल बोर्ड लखनऊ ही कर सकता है। मतलब मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद परिसर को अपनी संपत्ति बनाते हुए दलील दी। अंजुमन इंतेजामिया कमेटी का कहना था कि इस मामले की सुनवाई हो ही नहीं सकती है। उनका कहना था कि यह वक्फ बोर्ड का मामला है।
इस पर वाराणसी जिला जज ने कहा कि याचिका दायर करने वाली महिलाएं मुस्लिम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मां श्रृंगार गौरी स्थल में पूजा अर्चना करने का अधिकार वक्फ बोर्ड कानून में कवर नहीं होता। इस आधार पर कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया।