जानिए सुप्रीम कोर्ट के कुछ बड़े फैसलों के बारे में सब कुछ!

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आज हम आपको सुप्रीम कोर्ट के कुछ बड़े फैसलों के बारे में बताने जा रहे हैं! सुप्रीम कोर्ट ने हाल के दशकों में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं, जिनका असर कई साल तक रहेगा। सर्वोच्च कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद, आर्टिकल 370, ट्रिपल तलाक, अफजल गुरु को फांसी समेत कई अहम फैसले दिए। इसके साथ ही कोर्ट ने भारतीय मतदाताओं के लिए नोटा का विकल्प दिए जाने का भी अहम आदेश दिया था। इनके अलावा सेम सेक्स मैरिज समेत देश की सर्वोच्च अदालत के सुनाए गए कुछ ऐतिहासिक फैसलों की सारी डिटेल हम यहां दे रहे हैं। 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अंतिम फैसला हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन असल में रामलला की जन्मभूमि है। कोर्ट ने जमीन को उस ट्रस्ट को सौंपने का फैसला सुनाया था, जिसे भारत सरकार ने बाद में बनाया। कोर्ट ने सरकार को 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को देने का निर्देश भी दिया था। अयोध्या मामले में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। इनमें प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा, तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, पूर्व न्यायाधीश अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर शामिल थे। इन्होंने 9 नवंबर 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। फैसले के बाद अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हुआ और 22 जनवरी को इसकी प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही श्रद्धालुओं की वर्षों पुरानी मनोकामना पूरी हो गई।

11 दिसंबर 2023 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्तीकरण पर अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 हटाने को वैध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा, जम्मू-कश्मीर को स्पेशल दर्जा देने वाला अनुच्छेद-370 अस्थायी प्रावधान है। स्पेशल दर्जा निरस्त करने के राष्ट्रपति के फैसले को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की पुष्टि की गई। यह फैसला कोर्ट की ओर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और उसके बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला पर विचार करने के बाद आया। पांच जजों वाली संविधान पीठ ने सिर्फ संवैधानिक बदलावों को बरकरार रखा। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई में 5 जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि आर्टिकल 370 के प्रावधान अस्थायी थे और उन्हें निरस्त करने का फैसला संवैधानिक तौर पर सही है।

आतंकी अफजल गुरु को भारतीय संसद पर हमले में उसकी भूमिका के लिए दोषी ठहराया गया था। उसे मौत की सजा सुनाई गई। 4 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अफजल की मौत की पुष्टि की। शौकत की सजा को 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। 12 जनवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने अफजल की मौत की सजा की समीक्षा की मांग वाली याचिका खारिज कर दी और कहा कि इसमें ‘कोई योग्यता नहीं है।’ 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में उसे फांसी पर लटका दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने दो जनवरी 2023 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। संवैधानिक पीठ ने नोटबंदी के फैसले पर सरकार को बड़ी राहत देते हुए कहा था कि इसमें कोई त्रुटि नहीं थी। पीठ ने बहुमत से माना कि नोटबंदी का उद्देश्य ठीक था। 8 नवंबर 2016 को हुई नोटबंदी को लेकर निर्णय प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं मिली। कोर्ट ने 6 महीने तक चली लंबी सुनवाई के बाद माना कि नोटबंदी का फैसला सही था। गौर करने वाली बात यह है कि कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी का उद्देश्य ठीक था, भले ही वह उद्देश्य पूरा हुआ हो या न हुआ हो, निर्णय लेने की प्रक्रिया या उद्देश्य में कोई गलती नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान बेंच ने 17 अक्टूबर 2023 को फैसले में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया था। अदालत ने कहा था कि इसपर कानून बनाना संसद का काम है। समलैंगिकों की शादी को मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट ने एकमत से इनकार कर दिया। पांच जजों की बेंच में चार ने फैसला लिखा और तीन जजों का मत एक था। दो जजों के मत अलग थे। हालांकि, पांचों जज ने शादी की मान्यता देने से एकमत से इनकार कर दिया। गोद लेने के मामले को 3-2 के मत से खारिज कर दिया गया। सबसे पहले चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2017 में ‘निजता के अधिकार’ को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने आदेश दिया था। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकार प्राकृतिक रूप से निजता का अधिकार संरक्षित है। फैसले से पहले मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवाई की थी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है? बाद में कोर्ट ने इसे संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2023 को अहम फैसला दिया था। इसमें कोर्ट कहा था कि दिल्ली सरकार के कंट्रोल में प्रशासनिक सेवा होगी। इसमें पब्लिक ऑर्डर, पुलिस, जमीन को अलग रखा गया। कहा गया कि चुनी हुई सरकार के पास ब्यूरोक्रेट का कंट्रोल होना चाहिए।