जानिए ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में सब कुछ!

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ईस्ट इंडिया कंपनी के बारे में तो पूरा हिंदुस्तान जानता है! ईस्ट इंडिया कंपनी, जी हां वही ईस्ट इंडिया कंपनी जिसका जिसकी नींव आज से 400 साल पहले डल चुकी थी। जो भारत आई तो थी मसालों का व्यापार करने लेकिन एक बार पैर जमाने के बाद भारत पर 200 सालों तक राज किया। कंपनी जब आई थी तब भारत उसके लिए बिल्कुल नया था। मुगलिया शासन चल रहा था। कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत का ईस्ट इंडिया ने आगे चलकर इतिहास और भूगोल सब बदल दिया। इन 200 सालों में हमारे देश को गुलाम बनाने वाली ब्रिटिश हुकूमत से रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, उधम सिंह, महात्मा गांधी समेत न जाने कितने असंख्य वीर जवानों ने इस ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ बिना झुके लोहा लिया और अपने प्राणों की आहूति दी। स्वतंत्रता सैनानियों की बहादुरी की बदौलत ही हमें साल 1947 में आजादी मिली और हम ब्रिटिश हुकूमत को देश से खदेड़ने और उनके देश वापस भेजने में सफल रहे। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में मसालों का व्यापार करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी की बुनियाद पर कब हुई थी। क्या आपको पता है इसके नींव रखने की बात लंदन के होटल में की गई थी।

इतिहास में जाएं तो साल 1599 का वो दिन था जब पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव रखी गई थी। कंपनी पर चर्चा लंदन के एक होटल में हुई थी। यह होटल था लंदन का फाउंडर हॉल। बातचीत के लिए 21 कारोबारियों ने बैठक थी। इस बैठक में भारत के साथ कारोबार करने के लिए एक कंपनी के गठन पर विचार किया गया था। इस बैठक से यह तय हो गया कि भविष्य में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रवेश होने वाला है। इसे ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की दिशा में पहला कदम कहा जा सकता है। वैसे तो इस कंपनी के कई नाम हैं लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता है।

1599 में ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव के बाद साल 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस ने भारत के सूरत बंदरगाह पर अपने जहाज हेक्टर को लाने के साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के आने का एलान कर दिया था। हिंद महासागर में ब्रिटेन से पहले ही उसके व्यापारी प्रतिद्वंदी मौजूद थे। ब्रिटेन से पहले डच और पुर्तगाली पहले से ही व्यापार कर रहे थे। अभी थोड़ा पहले चलते हैं और साल 1600 के आस-पास की बात करते हैं। 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने तत्कालीन महारानी एलिजाबेथ प्रथम से चार्टर हासिल कर लिया था। चार्टर का मतलब था इजाजतनामा। इसका मतलब था कि इंग्लैंड की कोई और व्यापारिक कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी से होड़ नहीं कर सकती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी समुद्र पारकर नए इलाकों को खंगाल सकती थी, वहां सस्ती चीजें खरीदकर उसे यूरोप में ऊंची कीमत पर जाकर बेच सकती थी।

समस्या यह थी कि सारी कंपनियां एक जैसी चीजें ही खरीदना चाहती थीं। यूरोप के बाजारों में भारत के बने बारीक सूती कपड़े और रेशम की जबरदस्त मांग थी। इसके अलावा काली मिर्च, लौंग, इलायची और दालचीनी की भी काफी मांग थी। यूरोपीय कंपनियों के बीच इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा से भारतीय बाजारों में इन चीजों की कीमतें बढ़ने लगीं और उनसे मिलने वाला मुनाफा भी कम होने लगा। इस व्यापार में फायदे का सौदा देखते हुए अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों को खत्म करना शुरू कर दिया। 17वीं और 18वीं शताब्दी में मौका मिलने पर एक कंपनी दूसरी कंपनी के जहाज डुबो देती तो कहीं कोई रुकावट रास्ते में खड़ा कर देती थी।

ब्रिटेन की ओर से भेजे गए विलियम हॉकिंस के सामने चुनौती मुगलों को मनाने की। हॉकिंस को जल्द ही एहसास हो गया था कि मुगलों की इस विशाल सेना से पार पाना इतना आसान नहीं है। इसलिए उसे मुगल बादशाह से सहयोग की जरूरत थी। हॉकिंस ने आगरा पहुंचकर जहांगीर से व्यापार की अनुमति प्राप्त करनी चाही लेकिन जहांगीर से उसे यह अनुमति नहीं मिली। हॉकिंस के बाद ब्रिटेन से राजदूत सर थॉमस 1615 में आगरा पहुंचे। उन्होंने बादशाह को तोहफे के रूप में शिकारी कुत्ते और पसंदीदा शराब शामिल थी। जहांगीर का मन जीतना इतना भी आसान नहीं था। तीन साल लगातार चले बातचीत के दौर के बाद जहांगीर ने ईस्ट ईंडिया कंपनी के साथ व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। कंपनी के व्यापारी मुगलों की रजामंदी से भारत से सूत, नील , पोटेशियम नाइट्रेट और चाय खरीदकर उसे विदेश में महंगे दामों में बेचकर खूब मुनाफा कमाते थे।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने पहली इंग्लिश फैक्ट्री 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू की थी। कंपनी के व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे। व्यापारियों को उस जमाने में फैक्टर कहा जाता था। इस फैक्ट्री में वेयरहाउस भी था जहां निर्यात होने वाली चीजों को जमा किया जाता था। यहां पर उसके दफ्तर भी थे जिनमें कंपनी के अफसर बैठते थे। कंपनी ने इसके बाद सौदागरों और व्यापारियों को अपने आस-पास बसने के लिए प्रेरित किया। साल 1696 तक कंपनी ने इस आबादी के चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 2 साल बाद मुगल अफसरों को रिश्वत देकर 3 गांवों की जमींदारी भी खरीद ली। इनमें से एक गांव कालीकाता था जो बाद में कलकत्ता और उसके बाद अब कोलकाता कहा जाता है। कंपनी ने तब के मुगल शासक औरंगजेब को भी इस बात के लिए मना लिया कि वह कंपनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने का फरमान जारी कर दें।

ब्रिटेन ने भारत में एंट्री, शासन और वापस लौटने के बीच काफी लूट-पाट की। आंकड़े बताते हैं कि ब्रिटेन ने 1765 से 1938 के बीच 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति लूट ली। लेकिन गुलामी के जख्म को पीछे छोड़ते हुए आज की तारीख में भारत दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था बन गया है। तारीफ के काबिल बात यह है कि इसने ब्रिटेन को पीछे छोड़कर यह मुकाम हासिल किया है। इसका जिक्र हाल के दिनों में पीएम नरेंद्र मोदी ने भी किया और भारत की इस खास उपलब्धि पर खुशी और गर्व भी महसूस किया। उन्होंने कहा कि जिन्होंने 200 सालों तक हमपर राज किया आज वह हमसे पीछे हैं। पांचवे नंबर से ज्यादा खुशी देश के लोगों को ब्रिटेन को पीछे करने की ज्यादा खुशी है।