जानिए ऐसी फिल्में जो रही विवादों में!

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आज हम आपको ऐसी फिल्मों के बारे में बताइए जो विवादों में रही है! अपने फर्स्ट लुक के बाद से ही आलोचनाओं का सामना करने वाली ओम राउत की ‘आदिपुरुष’ में लुक से लेकर डायलॉग तक जमकर कॉन्ट्रोवर्सी हुई है। इस घमासान में फिल्म का लुक और डायलॉग भी बदल दिए गए, मगर फिल्म को लेकर उठे विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। यह पहली बार नहीं है, जब कोई फिल्म विवादों के दायरे में आई हो। हिंदी फिल्म जगत में ऐसी अनगिनत फिल्में रही हैं, जो कभी अपने टाइटल के कारण तो कभी कॉन्टेंट की वजह से कॉन्ट्रोवर्सी का शिकार हुई हैं। कई फिल्में ऐसी भी रहीं, जो विवादों के चलते सिनेमाघरों का मुंह नहीं देख पाईं। कई ऐसी भी रहीं, जिन्होंने घोर विरोध के बावजूद छक कर कमाई की। ऐसी फिल्मों पर एक पड़ताल। आज से तकरीबन एक दशक पहले इंडियन सिनेमा की पहली फिल्म ‘राज हरिश्चंद्र’ को लेकर भी विवाद उठा था। मामला तब कोर्ट तक जा पहुंचा था, जब 1912 में प्रदर्शित हुई दादा साहब तोरने की फिल्म ‘श्री पुंडालिक’ ने भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म होने का दावा किया था, मगर अदालत में जीत ‘राजा हरिश्चंद्र’ की ही हुई थी। ‘श्री पुंडालिक’ के कैमरामैन ब्रिटिश थे, जबकि ‘राजा हरिश्चंद्र’ के छायाकार तेलंग थे, ऐसे में इसी फिल्म को भारतीय सिनेमा की पहली फिल्म होने का श्रेय मिला था।

1921 में प्रदर्शित हुई ‘भक्त विदुर’ को तो अंग्रेजी हुकूमत ने इसलिए बैन कर दिया था, क्योंकि इसमें विदुर का किरदार महात्मा गांधी से मिलता-जुलता था। 1933 में रिलीज हुई देविका रानी और उनके पति हिमांशु रॉय की फिल्म ‘कर्मा’ को लेकर बहुत बड़ा बवाल हुआ था। विवाद देविका रानी द्वारा पर्दे पर अपने पति हिमांशु रॉय को दिए गए चार मिनट के किसिंग सीन के कारण उपजा था। 1947 में दिलीप कुमार और नूरजहां स्टारर ‘जुगनू’ को भी हिंदू-मुस्लिम विवाद के चलते घोर विरोध का सामना करना पड़ा था, मगर रिलीज के बाद यह फिल्म सुपर हिट साबित हुई। जानी-मानी लेखिका इस्मत चुगताई की कहानी पर आधारित एम इस सथ्यू निर्देशित ‘गरम हवा’ को 1947 में धार्मिक सद्भाव बिगाड़ने के आरोप में विवादों का सामना करना पड़ा, मगर फिल्म ने दर्शकों का दिल जीत कर राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पिछले दिनों बॉलीवुड की दो फिल्मों ‘पठान’ और ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर विवाद अपने चरम पर रहा है। ‘पठान’ को लेकर बॉयकॉट ट्रेंड जोरों पर रहा, तो ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर बैन करने की मांग जोरों पर थी। इसके बावजूद इन दोनों ही फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर छप्पर फाड़ कमाई की। ‘पठान’ ने जहां एक हजार करोड़ का कलेक्शन क्रॉस किया, वहीं ‘द केरल स्टोरी’ जैसी छोटे बजट की फिल्म तकरीबन ढाई सौ करोड़ तक पहुंच गई। यह भी पहली बार नहीं था, जब विरोध और विवाद का सामना करने वाली फिल्मों को दर्शकों ने सिर आंखों पर बैठाया हो। इससे पहले भी छोटे बजट की ‘द कश्मीर फाइल्स’ हो या भव्य बजट वाली ‘पद्मावत’ या फिर ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘पीके’ या ‘मद्रास कैफे’ या ‘ए दिल है मुश्किल’, ‘डर्टी पिक्चर’, ‘ओ माय गॉड’ इन सभी का कड़ा विरोध हुआ, मगर रिलीज के बाद ये तमाम फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सिक्कों की बौछार करने में कामयाब रहीं। ‘कश्मीर फाइल्स’ को लेकर पोस्टर जलाए गए, तो ‘पद्मावत’ में दीपिका पादुकोण की नाक और सिर काटने की धमकी दी गई। ‘बाजीराव मस्तानी’ पर पेशवा के वंशजों ने आरोप लगाया कि मेकर ने फिल्म बनाते हुए ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की है। ‘पीके’ पर धार्मिन भावनाओं को आहत करने का इल्जाम था, जबकि ‘ए दिल है मुश्किल’ में फावद खान जैसे पाकिस्तानी एक्टर को लेकर विवाद था।

फिल्मकार दीपा मेहता की ‘वाटर’ को लेकर खूब हंगामा मचा था। इसमें वाराणसी के एक आश्रम में रहने वाली विधवाओं के जीवन की कुरीतियों को दर्शाया गया था। दीपा को धार्मिक संघटनों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा, उनके सेट पर तोड़फोड़ की गई। आखिरकार दीपा को अपनी फिल्म की शूटिंग बनारस से शिफ्ट कर श्रीलंका में करनी पड़ी। 1975 में प्रदर्शित ‘आंधी’ और 1977 में आई ‘किस्सा कुर्सी का’ इमरजेंसी के दौर में बैन कर दी गई थी।फिल्मकार दीपा मेहता की ‘वाटर’ को लेकर खूब हंगामा मचा था। इसमें वाराणसी के एक आश्रम में रहने वाली विधवाओं के जीवन की कुरीतियों को दर्शाया गया था। दीपा को धार्मिक संघटनों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा, उनके सेट पर तोड़फोड़ की गई। आखिरकार दीपा को अपनी फिल्म की शूटिंग बनारस से शिफ्ट कर श्रीलंका में करनी पड़ी। 1975 में प्रदर्शित ‘आंधी’ और 1977 में आई ‘किस्सा कुर्सी का’ इमरजेंसी के दौर में बैन कर दी गई थी। उसी तरह से 1994 में रिलीज हुई ‘बैंडिट क्वीन’ को फूलन देवी की याचिका के बाद कुछ समय के लिए सिनेमा हॉल से हटा दिया गया था। गुजरात दंगों पर आधारित राहुल ढोलकिया की ‘परजानिया’ भी बॉलीवुड की कॉन्ट्रोवर्शियल फिल्म मानी जाती है।उसी तरह से 1994 में रिलीज हुई ‘बैंडिट क्वीन’ को फूलन देवी की याचिका के बाद कुछ समय के लिए सिनेमा हॉल से हटा दिया गया था। गुजरात दंगों पर आधारित राहुल ढोलकिया की ‘परजानिया’ भी बॉलीवुड की कॉन्ट्रोवर्शियल फिल्म मानी जाती है।

विवाद और फिल्मों का गहरा नाता रहा है, मगर मेरा मानना है कि जब कोई फिल्मकार किसी राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक विषय पर फिल्म बनाता है, तो उसके लिए अपने कॉन्टेंट के प्रति ईमानदार रहना जरूरी है। उसे अपने फैक्ट्स को अच्छी तरह से जांच-परख लेना चाहिए। बहुत ज्यादा सिनेमैटिक लिबर्टी लेने के चक्कर में न रहे। अगर फिल्म बोल्ड विषय पर है, तब भी उसकी एक सीमा होनी जरूरी है, वरना विवाद होना जायज है।