जानिए अजीत डोभाल की अद्भुत कहानी!

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आज हम आपको अजीत डोभाल की अद्भुत कहानी सुनाने जा रहे हैं! जासूसी कहानियों पर बनी फिल्में हम जिस रोमांच के साथ देखते हैं, असल जिंदगी में इन जासूसों की जिंदगी उतनी ही मुश्किल भरी होती है। ये धर्म, पोशाक और जगह बदलकर खुफिया तरीके से जानकारी इकट्ठा करते हैं। कहा भी गया है कि हथियारों से लड़ी जाने वाली लड़ाई बार-बार लड़नी पड़ती है लेकिन बुद्धि हमेशा ताकत पर भारी पड़ती है। यही वजह है कि भारत ही नहीं, दुनियाभर के बड़े देश अपने जासूसों के जरिए दुश्मन की हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं। कभी ऐसा भी सुनने को मिलता है कि एजेंसी अपनी पेशेवर मजबूरियों के चलते जासूसों को खुलकर मान्यता नहीं देती लेकिन देश अपने जासूसों पर गर्व करता है। डोभाल 1-2 साल नहीं, पूरे सात साल तक भारत के जासूस बनकर पाकिस्तान में रहे। वहां से लगातार खुफिया जानकारी भारत भेजते रहे। हालांकि एक दिन पहचान लिए गए। वह पाकिस्तान में मुस्लिम गेटअप में रहते थे। लाहौर में औलिया की एक मजार है और वहां बहुत लोग आते हैं। एक दिन वह उस रास्ते से गुजर रहे थे, मस्जिद में आकर बैठे तो देखा कि एक आदमी बड़ी देर से उन पर नजर रखे हुआ था। उस आदमी की बड़ी सफेद दाढ़ी थी, उसका आकर्षक व्यक्तित्व था। उसने डोभाल को बुलाया। उसने कहा कि तुम हिंदू हो। डोभाल ने कहा- नहीं। उसने कहा- मेरे साथ आओ। डोभाल ने एक कार्यक्रम में बताया था कि वह उन्हें दो-चार गलियों से ले जाकर एक छोटे से कमरे में ले गया। दरवाजा बंद करने के बाद उसने कहा कि देखो तुम हिंदू हो। डोभाल ने कहा- आपको क्यों लगता है ऐसा? उसने कहा कि आपके कान छेदे हुए हैं। डोभाल ने बताया कि जहां का मैं रहने वाला हूं, वहां की प्रथा है, बच्चे छोटे होते हैं तो…। बाद में डोभाल ने हामी भरते हुए बात पलट दी। उन्होंने कहा कि हां, ऐसा है लेकिन बाद में वह कन्वर्ट हो गए थे। उसने कहा कि तुम बाद में भी कन्वर्ट नहीं हुए। उसने कहा कि इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो, इस तरह से घूमना ठीक नहीं है। एक कार्यक्रम में डोभाल जब इस घटना का जिक्र कर रहे थे तो उन्होंने बताया कि वैसा ही बाद में उन्होंने किया, अब कान का छेद कम दिखाई देता है।

उस रोज डोभाल लाहौर में चकित रह गए थे। उस सफेद दाढ़ी वाले शख्स से कहा था, ‘पता है, ऐसा मैंने क्यों कहा… क्योंकि मैं भी हिंदू हूं।’ उसने कहा, ‘मेरा सारा परिवार इन लोगों ने मार दिया था। मैं यहां पर किसी तरह से अपने दिन काट रहा हूं। मुझे बहुत खुशी होती है जब आप लोगों को देखता हूं। मैंने भी अपनी वेशभूषा बदली हुई है।’ उसने कमरे के कोने में एक आलमारी खोली। उसमें शिवजी और दुर्गा जी की तस्वीर थी। उसने कहा कि मैं पूजा करता हूं लेकिन बाहर मस्जिद में जाता हूं। यहां सब लोग मुझे बहुत धार्मिक मानते हैं।

पंजाब पाकिस्तान से लगा हुआ प्रांत है। एक समय यहां के तीन जिले- गुरदासपुर, अमृतसर और फिरोजपुर से बड़ी संख्या में युवा पाकिस्तान जा रहे थे। ये बात है ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद की। पाकिस्तानी आतंकी भारतीय सिखों को बरगला रहे थे कि आपका धर्मस्थल भारत सरकार ने तोड़ दिया है। वे बदला लेने के लिए उकसा रहे थे। टारगेट की लिस्ट आ रही थी। सिख रेजीमेंट की टुकड़ियों में विद्रोह हुआ। पीएम इंदिरा गांधी को उनके ही अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी कर दिया था। डोभाल बताते हैं कि 1988 अप्रैल-मई में ऐसी स्थिति बनने लगी कि बहुत सारे आतंकी जहां भी घटना करते थे, स्वर्ण मंदिर में चले जाते थे। वह एक तरह से सुरक्षित ठिकाना बन चुका था। इतना जबर्दस्त रिएक्शन हुआ था कि आतंकी मानकर चल रहे थे कि अब सरकार कोई दूसरा ऑपरेशन करने के बारे में सोचेगी भी नहीं। एके-47 लेकर बस रोककर मजदूरों को मारा जाता, गांव में हत्याएं हुईं। आतंक फैल चुका था, पुलिस की हिम्मत नहीं हो रही थी कि दिन ढलने के बाद गांव में जा सके। उस समय पूरा पंजाब आतंकवाद के हवाले था।

कई उग्रवादी और आतंकी संगठनों के लड़ाके स्वर्ण मंदिर में छिपे थे। वहां खालिस्तान की घोषणा कर सरकारी हेडक्वॉर्टर भी बना लिया गया था। उस समय डोभाल आईबी मुख्यालय में ऑपरेशंस हेड थे। एजेंसी चाहती थी कि बिना जवानों के अंदर घुसें, बिना खून बहाए कोई ऐक्शन लिया जाए और सिख समुदाय आहत न हो। इसके बाद ही ब्लैक थंडर की नींव पड़ी। पंजाब में लाखों लोग ऐसे थे, जो मदद करना चाहते थे। डोभाल का मानना था कि हमें ऐसे लोगों तक पहुंचना होगा। प्लान यह था कि इंटेलिजेंस के अफसर खालिस्तान आतंकियों के साथ जाकर रहें।

डोभाल खुद एक उग्रवादी के वेश में स्वर्ण मंदिर में घुस गए। उन्होंने ऐसा दिखाने की कोशिश की कि वह पाकिस्तान की तरफ से मदद करने के लिए आए हैं। वह घुलमिल गए। धीरे-धीरे उन्होंने पता कर लिया कि इनकी लीडरशिप कौन है। सारी प्लानिंग कौन कर रहा है। डोभाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हमको सब पता था, कुछ लोगों का विश्वास जीत लिया जिससे वे सलाह भी मानने लगे। इसके बाद वह गलत-गलत सुझाव देने लगे। इससे उनकी ताकत खत्म होती गई। आखिर में यह प्लानिंग थी कि स्थिति बिगड़ जाए तो इनसे कहा जाए कि भाई, अब कोई रास्ता नहीं है। अब आपको सरेंडर ही करना पड़ेगा। कहा जाता है कि 4-5 दिनों में 3 बड़े कमांडरों को उन्होंने अंदर ही मार गिराया। इसके बाद डोभाल बाहर आ गए। खालिस्तानियों में घबराहट बढ़ गई कि अब क्या होगा। इधर रात में एनएसजी के जवान अमृतसर में लैंड किए। रात में 1 बजे एनएसजी कमांडो वहां पहुंचे थे। डोभाल खुद एयरपोर्ट गए थे और बाद में ब्रीफिंग दी।

डोभाल बताते हैं कि अंदर का माहौल ऐसा था कि जासूसी का शक होने पर ही कई लोगों को मार दिया गया। अजीत डोभाल अंदर आते जाते रहे। गोल्डन टेंपल का घेरा रातोंरात एनएसजी ने पुलिस से ले लिया। कुछ स्नाइपर भी तैनात किए गए। पानी के कनेक्शन और बिजली काट दी गई। उग्रवादी अंदर ही बंद होकर रह गए। आतंकवादी एके-47 लेकर खुलेआम घूम रहे थे और फायर कर रहे थे लेकिन उसका जवाब नहीं दिया गया। आखिर में उग्रवादियों से माइक से अपील की गई कि आप सरेंडर कर दीजिए। उग्रवादी बाहर आए। कहा गया कि हाथ ऊपर रखिए, इस रास्ते से बाहर आइए। एक के बाद एक सबने सरेंडर कर दिया। कुछ आतंकियों ने साइनाइड खा लिए थे। यह डोभाल की ही रणनीति थी कि फायरिंग से किसी की मौत नहीं हुई।

मिजोरम के उग्रवादी संगठन मिजो नेशनल फ्रंट का आतंक एक समय चरम पर था। हर राज्य वहां अलग देश बनाना चाहता था। लाल डेंगा मिजोरम में ताकतवर हो चुका था। वह अपनी सरकार चला रहा था। दिल्ली में आईबी ऑफिस में मीटिंग बुलाई गई। डोभाल शादी करके लौटे ही थे। लेकिन उन्होंने हाथ खड़ा किया और मिजोरम जाकर गुट के अंदर तक पहुंच गए। लाल डेंगा के सात कमांडर थे। डोभाल की स्टाइल रही है कि वह दुश्मन के खेमे में घुसकर कुछ लोगों को दोस्त बना लेते थे। दोस्ती इतनी कर ली कि रोज शाम एक कमांडर से मिलते और उसे अपनी बात मानने के लिए राजी करते। धीरे-धीरे डोभाल ने सात में से छह कमांडरों को तोड़ लिया। स्पेशल स्टेट, पैसा, पावर का लालच देकर डोभाल ने लाल डेंगा को अलग-थलग कर दिया। अब लाल डेंगा कमजोर पड़ गया था। आखिर में वह डोभाल की बात मानने के लिए तैयार हो गया।