आज हम आपको उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की अद्भुत कहानी के बारे में बताएंगे! वर्तमान में उत्तर प्रदेश की गर्वनर आनंदीबेन पटेल भले ही लंबे समय से गुजरात से बाहर हैं, और संवैधानिक दायित्व निभा रही हैं, लेकिन गुजरात की राजनीति में उनका अक्सर जिक्र होता है। पिछले साल जब बीजेपी ने राज्य में नेतृत्व परिवर्तन किया। इसके बाद उनके निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर पहली बार के विधायक भूपेन्द्र पटेल सीएम बने, तो कहा गया कि वे आनंदीबेन के करीबी हैं। जो भी हो तीन दशक तक गुजरात की राजनीति में सक्रिय रही आनंदीबेन को पीएम नरेंद्र मोदी का विश्वासपात्र माना जाता है। कहा जाता है कि वे उनमें शामिल हैं। जिन पर नरेंद्र मोदी सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। यही वजह है कि जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो गुजरात के सीएम की कुर्सी आनंदीबेन पटेल को मिली और आनंदीबेन पटेल गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। अहमदाबाद के मोहिनाबा गर्ल्स हाई स्कूल में गणित की शिक्षक और फिर प्रिसिंपल रही आनंदीबेन का राजनीति में प्रवेश दुर्घटना के बाद हुआ था। बाद में वे आयरन लेडी ऑफ गुजरात कहलाईं।
साल 1987 की बात है, आनंदीबेन पटेल स्कूल की लड़कियों के साथ सरदार सरोवर जलाशय के पिकनिक पर गई हुई थी। पिकनिक के दौरान दो लड़कियां जलाशय में फिसल गईं। वे तैरना नहीं जानती थी। लड़कियों को डूबते देखकर आनंदीबेन ने जलाशय में छलांग लगाई और दोनों लड़कियों को बचा लिया। आनंदीबेन की इस बहादुरी की खूब चर्चा हुई, बाद में उन्हें राष्ट्रपति बहादुरी अवार्ड से सम्मानित किया गया। आनंदीबेन इस बहादुरी के लिए सुर्खियों में थी, तभी बीजेपी की टॉप लीडरशिप नजर उन पर पड़ी। पहले केशुभाई पटेल और फिर नरेंद्र मोदी के कहने पर वे बीजेपी में शामिल हो गईं।
आनंदीबेन जब बीजेपी से जुड़ी तब पार्टी में महिलाओं की संख्या न बराबर थी। उन्हें गुजरात प्रदेश महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया गया। इसके बाद वे संगठन को मजबूत करने के काम में जुट गईं। उनके अच्छे काम को देखते हुए उन्हें 1994 में पार्टी ने राज्यसभा भेज दिया। तब उनकी उम्र 53 साल की थी। वे 1998 तक राज्यसभा की सदस्य रहीं। 1998 में उन्हें पार्टी ने मांडल विधानसभा से चुनाव लड़ाया। वे अहमदाबाद के इस विधानसभा क्षेत्र से जीतकर विधायक बनीं और केशुभाई सरकार में उन्हें शिक्षा एवं महिला बाल कल्याण मंत्री बनाया गया।
2001 में प्रदेश की राजनीति में नरेंद्र मोदी की वापसी हुई। वे मंत्री के तौर पर कार्य करती रहीं। 2002 में चुनाव में पार्टी ने उन्हें पाटन विधानसभा से टिकट दिया। तब प्रदेश में ऐसी मान्यता थी कि गुजरात के शिक्षा मंत्री लगातार चुनाव नहीं जीत पाते हैं लेकिन आनंदीबेन पाटन से जीतीं और पुराने मिथक को तोड़ दिया। वे फिर शिक्षा मंत्री बनी। इस बार उन्हें कई अन्य महत्वपूर्ण विभाग भी मिले। इसके बाद आनंदीबेन पटेल ने मुड़कर नहीं देखा। वे 2007 के चुनाव में फिर से पाटन से चुनीं गई। इस बार भी उन्हें राजस्व मंत्री बनाया गया। 2012 के चुनाव में वे अहमदाबाद के घाटलोडिया सीट से चौथी बार विधायक बनीं। उन्हें शहरी विकास मंत्री बनाया गया। 2014 में जब नरेंद्र मोदी का देश के प्रधानमंत्री चुने गए तो उस वक्त गुजरात बीजेपी का हर नेता खुद को मुख्यमंत्री पद के प्रोजेक्ट कर रहा था, लेकिन सीएम की कुर्सी आनंदीबेन पटेल को मिली। 22 मई, 2014 से 7 अगस्त, 2016 तक गुजरात राज्य की प्रथम महिला मुख्यमंत्री रहीं। इसके बाद वे 5 अगस्त 2018 छत्तीसगढ़ की राज्यपाल नियुक्त की गईं। इसके बाद वे मध्य प्रदेश फिर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनीं।
आनंदीबेन जहां भी गईं अपनी अलग लकीर खींची। उनकी बेटी अनार पटेल के साक्षात्कार के अनुसार जब आनंदीबेन राजनीति में नहीं थी तब उन्होंने अपने भाई को बेटे का बाल विवाह को रोक दिया। पहले उन्होंने विरोध किया जब वे नहीं माने तो पुलिस में शिकायत कर दी थी। इतना ही नहीं राजनीति में प्रवेश के बाद आनंदीबेन की पहचान एक सख्त प्रशासक की रही। शायद इसलिए क्योंकि वे लंबे समय तक शिक्षक और प्रिसिंपल रहीं थी। आनंदीबेन पटेल के जीवन से जुड़ा एक और दिलचस्प वाकया है कि 1992 में भाजपा द्वारा आयोजित कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की एकता यात्रा में शामिल होने वाली गुजरात की एक मात्र महिला रही। कश्मीर में तिरंगा नहीं लहरा देने की आतंकवादियों की धमकी के बावजूद 26 जनवरी 1992 में श्रीनगर के लालचौक में राष्ट्रध्वज फहराने में शामिल रहीं। 2019 में बतौर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल उन्होंने एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गोल्ड मेडलिस्ट विद्यार्थियों से कहा कि वे शादी में गोल्ड न मांगें। तब उनके इस बयान की खूब चर्चा हुई थी।
मेहसाणा जिले के खरोद में जन्मी आनंदीबेन के जीवन पर उनके पिता जेठाभाई पटेल का गहरा प्रभाव है। पिता की तरह आनंदीबेन भी शिक्षक बनना चाहती थी। जब आनंदीबेन प्राइमरी की पढ़ाई कर रही थीं तब वे अपने स्कूल में इकलौती फीमेल स्टूडेंट थीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्हें साल 1958 में मेहसाणा जिला के स्कूल स्पोर्ट्स फेस्टिवल में बीर बाला पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके बाद 1960 में उन्होंने एमजी पंचाल साइंस स्कूल से बीएससी की पढ़ाई पूरी की और 1962 में मफतलाल पटेल शादी की और फिर 1967 में अहमदाबाद के मोहिनाबा गर्ल्स हाई स्कूल में बतौर शिक्षक की नौकरी से जुड़ गई। बाद में वे इसी स्कूल की प्रिसिंपल बनी और फिर राजनीति में आईं।