जानिए जांबाज ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की अद्भुत कहानी!

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आज हम आपको जांबाज ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की अद्भुत कहानी सुनाने जा रहे हैं! सीने में जुनून और आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं। दुश्मन की सांसें थम जाए, आवाज में इतनी धमक रखता हूं। हमारे वीर सैनिकों के बारे में यह लाइन एकदम सटीक बैठती है। भारतीय सेना और उसके रणबांकुरों की वीर गाथाओं की चर्चा जितनी की जाए उतनी कम है। आजादी से लेकर आज तक हमारे सैनिकों ने सीमा पर मुस्तैद-चौकन्ना रहकर भारत मां की, इस देश की रक्षा की है। 1947 के बाद से अब तक हुए युद्ध में मिली जीत ने यह साबित किया है कि अगर, दुश्मन देश की तरफ आंख उठाकर देखेगा तो उसे मिट्टी में मिला दिया जाएगा।वही ब्रिगेडियर उस्मान जिसने बंटवारे के समय पाकिस्तान को ठुकराते हुए उसी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। वही मोहम्मद उस्मान जिसे भारत-पाक के बीच हुए 1948 की जंग के बाद नौशेरा का शेर की उपाधि दी गई थी। तो आज उस वीर उस्मान की होगी, उसके जज्बे, बहादुरी और कभी न हार मानने वाले जुनून की होगी। आजादी से पहले मोहम्मद उस्मान का जन्म उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के बीबीपुर गांव में 12 जुलाई 1912 को हुआ था। कहते हैं न कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। उस्मान के बारे में भी यही लाइन बैठती है। उस्मान जब 12 साल के थे तभी से वह काफी बहादुर स्वभाव के थे। एक बार की बात है। एक दिन कुंए में बच्चा गिर गया। बच्चा गिरते ही लोगों की भीड़ कुंए के आस-पास जमा हो गई। वहीं से उस्मान भी गुजर रहे थे। उस्मान ने बच्चे को देखते ही कुंए में छलांग लगा दी। उस्मान की इस बहादुरी पर अंग्रेज सरकार ने उन्हें खिताब दिया था। उस्मान के पिता का सपना उन्हें यूपीएसएससी में भेजने का था लेकिन, उस्मान हकलाया करते थे। इस वजह से पिता ने उन्हें पुलिस में भेजने का निर्णय लिया। वहां एक अंग्रेज अफसर भी हकलाया करते थे। अफसर को लगा उस्मान उनकी नकल कर रहे हैं तो उन्हें निकाल दिया गया। हालांकि बाद में वह भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे।

मोहम्मद उस्मान ने अपनी पढ़ाई बनारस से की थी। इसके बाद ही उन्होंने सेना में जाने का फैसला किया था। साल 1934 के पहले दिन यानी 1 जनवरी को उन्होंने ब्रिटिश रॉयल अकादमी ज्वाइन की थी। खास बात यह थी कि उस्मान के बैचमैट सैम मानेरशॉ और मोहम्मद मूसा जैसे सेना के मशहूर लोग थे। जी वहीं मानेकशॉ जो बाद में भारतीय सेना के चीफ बने थे। मोहम्मद उस्मान को उस वक्त बलूच रेजीमेंट में पोस्टिंग दी गई थी। उस वक्त मोहम्मद उस्मान ने अपनी जांबाजी के चलते खूब सराहा गया। बर्मा में उस वक्त जापानियों से युद्ध किया और कई मोर्चों पर जीत हासिल की थी।

ब्रिगेडियर उस्मान के सामने सबसे विकट स्थिति तब हुई जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ। जिस देश में वह पले-बढ़े उसके कुछ हिस्सों को मिलाकर पाकिस्तान बन गया। उस समय मोहम्मद उस्मान के सामने भारत और पाकिस्तान में से कोई एक को चुनने का विकल्प दिया गया था। लेकिन, उस्मान ने ऑफर को ठुकराते हुए भारत में ही रहने का फैसला किया। हालांकि रेजीमेंट में मौजूद लोगों ने उन्हें कहा कि तुम मुसलमान हो तो पाकिस्तान में रह लो। लेकिन, मोहम्मद उस्मान ने उनकी बात न मानते हुए भारत को ही अपना देश चुना। बात यहीं खत्म हो जाती तो क्या था। मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान से भी ऑफर आया था। पाकिस्तान के कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना और पहले पीएम लियाकत अली खान ने उन्हें अपने देश में मिलाने के बदले जल्दी प्रमोशन का भी वादा किया था। लेकिन, उस्मान ने यह भी ठुकरा दिया।

यह वह साल था जब भारत- पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ था। विभाजन की आग में जल रहे भारत पर पाक की ओर से कबालियों ने पाक सेना की मदद से हमला बोल दिया था। हमला उस समय के सबसे संवेदनशील जगह कश्मीर पर हुआ था। कबालियों ने भारत के इलाके में घुसकर राजौरी, नौशेरा, मीरपुर, कोटली और पुंछ में कब्जा कर लिया था। 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर मेजर परांजपे घायल हो चुके थे। नौशेरा में भारतीय सैनिक तो थे लेकिन, चारों ओर से पाकिस्तानी सैनिकों से घिरे हुए थे। पाकिस्तानी सेना ने 7 नवंबर 1948 और बाद में कश्मीर के प्रमुख इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना का एक और मकसद था। 25 दिसंबर को मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन था। पाक सेना नौशेरा बतौर उन्हें तोहफे में देना चाहती थी। लेकिन, मोहम्मद उस्मान के प्लान के आगे यह कोशिश फेल हो गई। नौशेरा पर पाकिस्तान की ओर से 3 बार हमला हुआ लेकिन फेल रहा। पाकिस्तान के सामने उस्मान ढाल बनकर खड़े थे। पाकिस्तान ने मोहम्मद उस्मान पर 50 हजार का इनाम भी रखा था।

नौशेरा के शेर मोहम्मद उस्मान की शहादत पर पूरा देश रो रहा था। उनके पार्थिव शरीर को जम्मू लाया गया। वहां से दिल्ली विमान की मदद से लाया गया था। उस्मान के पार्थिव शरीर को रिसीव करने खुद पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आए थे। नेहरू के अलावा उस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और बाकी मंत्रिमंडल के सदस्य भी मौजूद थे। मोहम्मद उस्मान को मर्णोपरांत महावीर चक्र दिया गया था।