आयुर्वेद में दवाइयों और औषधियों का बड़ा ही महत्व बताया गया है! कहते हैं कि साँप अगर काट ले तो जहर से पहले आदमी डर से ही मर जाता है, लेकिन यदि आप सर्पगंधा के उपयोग के बारे में जानते हों तो आप न तो डर से मरेंगे और न ही जहर से। सर्पगन्धा की जड़ी साँप के विष को उतारने की एक अच्छी दवा है। सर्पगन्धा के बारे में अनेक रोचक कथाएं प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए कहा जाता है कि कोबरा से लड़ने से पहले नेवला सर्पगन्धा की पत्तियों का रस चूस कर जाता है। पहले इसे पागलों की दवा भी कहा जाता था क्योंकि सर्पगंधा के प्रयोग से पागलपन भी ठीक होता है।
यह कफ और वात को शान्त करता है, पित्त को बढ़ाता है और भोजन में रुचि पैदा करता है। यह दर्द को खत्म करता है, नींद लाता है और कामभावना को शान्त करता है। सर्पगन्धा घाव को भरता है और पेट के कीड़े को नष्ट करता है। यह अनेक प्रकार चूहे, साँप, छिपकिली आदि पशुओं के विष, गरविष (खाए जाने वाले जहर का एक प्रकार जो धीरे-धीरे असर करता है) को खत्म करता है। वात के कारण होने वाले रोग, दर्द, बुखार आदि को समाप्त करता है। इसकी जड़ अत्यंत तीखी तथा कड़वी, हल्की रेचक यानी मल को निकालने वाली और गर्मी पैदा करने वाली होती है।
पारंपरिक औषधियों में सर्पगन्धा एक प्रमुख औषधि है। भारत में तो इसके प्रयोग का इतिहास 3000 साल पुराना है। सर्पगन्धा स्वाद में कड़ुआ, तीखा, कसैला और पेट के लिए रूखा तथा गर्म होता है। सर्पगंधा एक छोटा चमकीला, सदाबहार, बहुवर्षीय झाड़ीनुमा पौधा है जिसकी जड़े मिट्टी में गहराई तक जाती हैं। जड़े टेढ़ी-मेढ़ी तथा करीब 18-20 इंच लम्बी होती है। जड़ की छाल भूरे-पीले रंग की होती है। जड़ गंधहीन और काफी तीखी तथा कड़वी होती है। पौधे की छाल का रंग पीला होता है।
इसकी पत्तियां गुच्छेदार, 3-7 इंच लम्बी, लेन्स की आकार की तथा डन्ठलयुक्त होती हैं। पत्तियां ऊपर की ओर गाढ़े हरे रंग की तथा नीचे हल्के रंग की होती है। इसमें आमतौर से नवंबर-दिसंबर माह में फूल लगते हैं। फल छोटे, मांसल तथा एक या दो-दो में जुड़े हुए होते हैं। हरे फल पकने पर बैंगनी-काले रंग के हो जाते हैं।
सर्पगन्धा की जड़ का प्रयोग रोगों की चिकित्सा में किया जाता है। सर्पगन्धा की मुख्य प्रजाति के अतिरिक्त और भी दो प्रजातियाँ होती हैं जिनका दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनमें से एक है वन्य सर्पगन्धा। यह एक छोटा झाड़ीदार पौधा होता है। इसकी पत्तियां एक साथ चार-चार की संख्या में लगी हुयी होती हैं। फूल गुच्छों में लगते हैं और हरे-सफेद रंग के होते हैं। फल गोलाकार, कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर जामुनी-गुलाबी रंग के हो जाते हैं। इसकी जड़ लम्बी तथा भूरे-सफेद रंग की होती है। सर्पगन्धा की जड़ में इसकी मिलावट की जाती है।
इसका प्रयोग मैनिया, ब्लडप्रेशर (रक्तचाप) आदि रोगों में किया जाता है। यह मासिक धर्म को ठीक करता है, पेशाब संबंधी रोगों को दूर करता है। सर्पगन्धा बुखार को ठीक करता है। रोगानुसार इसके लाभ और प्रयोग की विधि नीचे दिए जा रहे हैं।
कुक्कुर खांसी को काली खांसी भी कहते हैं। बच्चों में होने वाली यह एक संक्रामक बीमारी है। ज्यादातर 5 से 15 वर्ष आयु तक के बच्चों को होती है। कुक्कुर खांसी होने पर काफी तेज तथा लगातार खांसी उठती है। लगातार खांसने से रोगी घबरा जाता है। अंत में उसे उलटी हो जाती है।
सर्पगन्धा के प्रयोग से इसे ठीक किया जा सकता है। 250-500 मि.ग्राम सर्पगन्धा चूर्ण को शहद के साथ सेवन कराने से कुक्कुर खाँसी या काली खांसी में लाभ होता है।
दौड़ने से दम फूलना यानी सांसों का तेज चलने लगना एक सामान्य बात है, लेकिन यदि चलने से भी दम फूलने लगे तो यह एक बीमारी है। दम फूलने या सांस उखड़ने की परेशानी में एक ग्राम सर्पगन्धा चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करें। अवश्य लाभ होगा।पतले दस्त और उल्टी यानी हैजा होने पर 3-5 ग्राम सर्पगंधा की जड़ के चूर्ण को गुनगुने जल के साथ सेवन करें। इससे हैजा यानि विसूचिका में निश्चित लाभ होता है।10-30 मिली कुटज की जड़ के काढ़े में 500 मि.ग्राम सर्पगन्धा चूर्ण मिला लें। इसे पिलाने से खूनी पेचिश यानी पतले दस्त के साथ खून जाने की बीमारी में लाभ होता है।
सर्पगन्धा अपच और कब्ज को दूर करता है। यह गैस को समाप्त करता है। इन कारणों से होने वाले पेट के दर्द में सर्पगन्धा की जड़ का काढ़ा बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीएं। अवश्य लाभ होगा।हैजा में बड़ी इलायची के फायदे
आजकल प्रसव होने में थोड़ी सी भी कठिनाई होने पर सिजेरियन यानी ऑपरेशन से प्रसव कराया जा रहा है। यह डॉक्टरों के लिए अच्छी आय का साधन भी बन जाता है लेकिन इससे स्त्री के स्वास्थ्य को जीवन भर के लिए नुकसान होता है। ऐसे में अगर आप सर्पगन्धा का प्रयोग करेंगे तो प्रसव आसानी से होता है।
यदि प्रसव के दौरान दर्द हो रहा हो और प्रसव नहीं हो रहा तो सर्पगन्धा की जड़ के काढ़े का सेवन कराना चाहिए। इससे गर्भाशय में संकोचन होना प्रारंभ हो जाता है जिससे प्रसव होने में आसानी हो जाती है।
2-3 ग्राम सर्पगन्धा की जड़ के चूर्ण में बराबार भाग शक्कर मिला लें। इसे शहद के साथ सेवन कराने से भी सामान्य प्रसव में सहायता मिलती है।