उत्तर प्रदेश का एक जिला लखीमपुर खीरी अपने आपराधिक मामलों के लिए हमेशा खबरों में बना रहता है! लखीमपुर खीरी में रेप और मर्डर केस ने एक बार फिर यूपी की सियासत को गरमा दिया है। समाजवादी पार्टी सरकार के खिलाफ हमलावर है। प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पर सवाल खड़े किए गए हैं। वहीं, भाजपा इस पूरे मामले में अपराधियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की बात कर रही है। ये तो हो गई राजनीतिक बातें, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर लखीमपुर खीरी ही क्यों? पिछले दो सालों में देश में किसी एक शहर की किसी भी वजह से सबसे अधिक चर्चा की बात की जाए तो लखीमपुर खीरी का नाम सबसे अधिक दिखता है। नाम अपराध के मामलों को लेकर है। ऐसे में सवाल यह भी है कि आखिर यहां अपराध लोगों के बीच घर कर चुका है। आदत बन चुकी है। अगर आप यह सोचते हैं तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। गन्ने की पैदावार वाले बेल्ट में आना वाला लखीमपुर खीरी चीनी की मिठास के लिए जाना जाता रहा है। पिछले कुछ दिनों में लगातार अपराध के आए मामलों ने लखीमपुर की मिठास में कड़वाहट घोल दी है। सवाल लखीपुर पर नहीं, न्याय सिस्टम पर हो रहा है। जहां, अपराध के मामलों पर त्वरित न्याय नहीं होने के कारण कुछ अपराधी तत्वों का मनोबल बढ़ता है और अपराध के प्रति रुझान भी। उन्हें लगता है, बड़ा अपराध भी कानून के दर पर सजा दिलाने में सफल नहीं होगा। अभी जिन मामलों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वे काफी अहम हैं। इन पर विचार करने की जरूरत है।
लखीमपुर खीरी अभी दो नाबालिग दलित लड़कियों की रेप और हत्या के मामले में लखीमपुर गरमाया हुआ है। गांव में एक दलित परिवार में घुसकर बरामदे से घसीटते हुए लड़कियों को ले जाया गया। 15 और 17 साल की लड़कियों को एक प्रकार से अगवा किया गया। लड़कियों की मां ने अपने बयान में इसका जिक्र किया है। उनका कहना है कि पुलिस उनकी प्राथमिकी के आधार पर कार्रवाई नहीं की। गैंगरेप की धाराओं को आरोपियों पर नहीं लगाया गया है। इस प्रकार के दावे हैं। वहीं, पुलिस इस मामले में लड़कियों के सहमति से आरोपियों के साथ जाने की थ्योरी बता रही है। इस पूरे मामले में पुलिस और मृतका लड़कियों की मां का बयान अलग-अलग है। इससे साफ हो रहा है कि एक बार फिर पुलिस की थ्योरी पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है। खासकर परिवार वालों को।
पुलिस की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कुछ वैसे ही जैसे उन्नाव, हाथरस जैसे मामलों में उठते रहे हैं। इन तमाम परिस्थितियों ने यूपी की सियासत को एक बार फिर गरमाया हुआ। साथ ही गरमाया हुआ है लखीमपुर। मामले के सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। पुलिस की जांच चल रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप के बाद हत्या की पुष्टि हो चुकी है। ऐसे में अपराधियों को शीघ्र सजा दिलवाने की पुलिस की रणनीति पर हर किसी की नजर रहेगी।
लखीमपुर खीरी किसान आंदोलन के दौरान प्रदर्शन कर रहे किसानों पर एसयूवी चढ़ाए जाने को लेकर सुर्खियों में आया। 3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर के तिकुनिया में जो हुआ, वह इतिहास के पन्नों पर काले अक्षरों में अंकित होगा। प्रदर्शनकारी किसानों पर एसयूवी चढ़ा दी गई। इस घटना में चार किसानों की जान चली गई। घटना से आक्रोशित किसानों ने एसयूवी में सवार भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला बोल दिया। पलटवार में तीन भाजपा कार्यकर्ताओं की मौत हुई। घटना को कवर गए एक पत्रकार की भी इस पूरे मामले के दौरान हुई। आठ मौतों ने लखीमपुर को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित कर दिया। इसके बाद विवाद गहराता चला गया।
मामले की जांच शुरू हुई तो इसमें लखीमपुर से भाजपा सांसद अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा का नाम सामने आया। एसआईटी ने आशीष मिश्रा को गिरफ्तार किया। बाद में उसे जमानत भी मिली। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के दबाव के कारण एक बार फिर उसे जेल जाना पड़ा। मामले में जांच और सुनवाई दोनों चल रही है।
प्रदेश में चर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड का भी लखीमपुर कनेक्शन रहा है। दरअसल, मधुमिता शुक्ला लखीमपुर की रहने वाली थी। युवा कवियत्री की लखनऊ में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हालांकि, इस हत्याकांड के बाद भी लखीमपुर खासी चर्चा में आया था। 9 मई, 2003 को राजधानी लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में मधुमिता शुक्ला नाम की 24 वर्षीय कवियत्री की गोली मार कर हत्या कर दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मधुमिता के प्रेग्नेंट होने की बात सामने आई थी। डीएनए जांच में पता चला कि कवियत्री के पेट में पल रहा बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का है। इस घटना से यूपी के सियासी हलके में भूचाल आ गया था। मधुमिता की हत्या का आरोप अमरमणि पर लगा। इस पूरी साजिश में उनकी पत्नी मधुमणि भी शामिल थीं। छह महीने के भीतर ही देहरादून फास्टट्रैक कोर्ट ने अमरमणि, मधुमणि समेत चार दोषियों को उम्रकैद की सजा सुना दी। हालांकि, इस पूरे मामले से लखीमपुर के अपराध का कोई जुड़ाव नहीं था।
लखीमपुर खीरी में तेल का खेल उजागर करने वाले मंजूनाथ की हत्या कर दी गई थी। 19 नवंबर 2005 को इस वारदात को अंजाम दिया गया था। उस समय मंजूनाथ इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के सेल्स मैनेजर के पद पर कार्यरत थे। आईआईएम लखनऊ से पास आउट 27 वर्षीय मंजूनाथ की हत्या उस समय कर दी गई थी, जब वे इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी पवन कुमार उर्फ मोनू मितल के पेट्रोल पंप पर मिलावट का पता लगाने के लिए तेल का सैंपल लेने गए थे। लखीमपुर में मंजूनाथ ही हत्या कर उनके शव को पड़ोस के सीतापुर में फेंक दिया गया था। हत्या के अगले दिन उनका शव बरामद किया गया। इस मामले में मोनू मित्तल उर्फ पवन कुमार मित्तल, देवेश अग्निहोत्री, राकेश आनंद, विवेक शर्मा, शिवेश गिरी और राजेश शर्मा को आरोपी बनाया। उन्हें उम्र कैद की सजा मिली। सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी सजा को बरकरार रखा था। लेकिन, इस हत्याकांड में आरोपियों को न्याय दिलाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों ने कानूनी लड़ाई लड़ी।
गन्ना बेल्ट लखीमपुर में अपराध को लेकर कानून का डर दिखाए जाने की बात कही जा रही है। कहा जाता है कि अपराध को रोकने के लिए त्वरित और दिखने वाली कार्रवाई का अभाव यहां दिखता है। अपराधियों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई हो तो यहां की 9 चीनी मिलों से गन्ने चीनी ही पैदा करेंगे। अपराध के दानों को यहां से दूर किया जा सकेगा।