Friday, November 22, 2024
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जानिए देश के पहले आम चुनाव की दिल छू लेने वाली कहानी!

आज हम आपको देश के पहले आम चुनाव की दिल छू लेने वाली कहानी बताने जा रहे हैं! प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 22 नवंबर, 1951 को रात 8.30 बजे अपने रेडियो प्रसारण में देश के पहले लोकसभा चुनाव को कुछ इसी रूप में परिभाषित किया था। उन्होंने कहा था, ‘यह वयस्क मताधिकार पर हमारा पहला चुनाव है। हम अभी जो मानक तय करेंगे, वह मिसाल बनेगा और भविष्य के चुनावों की रूपरेखा तय करेगा।’ 1952 के प्रथम आम चुनाव के दौरान मद्रास प्रांत में पूरी जनवरी तक चुनावी प्रक्रिया चली। चुनाव से पहले जनता को वोट डालने के तरीके और वयस्क मताधिकार के उद्देश्य के बारे में जागरुकता के लिए ऑल इंडिया रेडियो पर विशेष प्रसारण हुए तो सिनेमा हॉलों में डॉक्युमेंटरीज दिखाए गए। वहीं, पत्रिकाओं में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों की संरचना को लेकर विस्तृत लेख प्रकाशित किए गए थे। उन दिनों मुश्किल से 20% आबादी साक्षर थी। इस कारण मतदान बूथों में चुनाव चिह्न लगे मतपेटियां कतार में रखी गई थीं। 92 वर्षीय पत्रकार ने बताया, ‘जिसे जिस उम्मीदवार को वोट देना था, उसे अपना मतपत्र उस बॉक्स में डालना होता था जिसमें उसके पसंदीदा उम्मीदवार का चुनाव चिह्न लगा होता था। लेकिन पहली बार लोग वोट करने पहुंचे थे तो उनमें कई ये समझ नहीं पाए कि बैलट पेपर को बक्से के अंदर डालना है। इसलिए कई मत पत्र बक्से के ऊपर रखे मिले। उस वक्त भी नैतिकता ताक पर ही होती थी। तभी तो लोग दूसरी मतपेटियों से मत पत्र बटोरकर अपने कैंडिडेट वाले बक्से में डाल दिया करते थे।’

गिनती कई दिनों तक चली और लोगों को परिणाम केवल अखबारों से ही पता चले। बहुत से लोग बहुत बुढ़ापे तक नहीं जी पाते थे, इसलिए डाक मतों का कोई सवाल ही नहीं था। उन्होंने कहा, ‘तंजावुर और त्रिची बेल्ट की महिलाएं प्रगतिशील थीं। उन्होंने मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन भी सक्रिय भूमिका निभाई थी।’ चेन्नई में प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रिंसिपल आर रामन कहते हैं कि यह देश का पहला ऐसा चुनाव था जिसमें कोई भी उम्मीदवार हो सकता था। इससे आम आदमी और श्रमिक वर्ग को बहुत आत्मविश्वास मिला। उन्होंने कहा, ‘तब तक स्थानीय जमींदारों के पास सत्ता थी और वे पंचायतों के अध्यक्ष थे। इसलिए 1952 का चुनाव जनता के लिए एक तरह का उत्सव था। उन्हें पहली बार लगा कि देश उनका है। इस अहसास ने लोगों को साथ लाया। बैठकें पूरी रात, सुबह 4 बजे और 5 बजे तक होती थीं, अक्सर चेन्नई के समुद्र तटों पर।’

मद्रास इन्फॉर्मेशन मैगजीन के 1951-52 एडिशन में प्रकाशित प्रचार के नियम में बताया गया था कि कोई भी व्यक्ति जो वोटिंग के दिन किसी मतदान केंद्र के 100 गज के भीतर अगर प्राइवेट प्लेस पर भी पब्लिक मीटिंग करता है या प्रचार करता है या फिर कोई इशारों में भी वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश करता है तो उसे बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है और 250 रुपये (आज के लिहाज से 20 हजार रुपये से ज्यादा) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। तब नियम था कि कोई भी व्यक्ति जो मतपेटी से छेड़छाड़ करता है, वह भविष्य के चुनावों में मतदान का देने का अधिकार भी खो देगा।

पूर्व चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति बताते हैं कि पार्टी के उम्मीदवार जो आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने के योग्य थे, उनको जारी पार्टी के चुनाव चिह्न के चारों ओर एक काला घेरा लगा दिाय जाता था। राष्ट्रीय और प्रादेशिक दलों को चुनाव चिह्न का आवंटन हो जाने के बाद निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए छह सिंबल तय थे- तीर-धनुष, नाव, फूल, घड़ा, ऊंट और दो पत्तों वाली एक टहनी। उन्हें इनमें से कोई तीन का चयन करना होता था। उनके चयन के आधार पर ही कोई एक सिंबल उन्हें दिया जाता था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक ‘गांधी के बाद का भारत’ में लिखते हैं कि उत्तर भारत में कई महिलाओं ने अपने नाम से रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, इसके बजाय ‘फलां’ की मां’ या ‘फलां’ की पत्नी’ के रूप में नाम लिखाए। वोटर लिस्ट से लगभग 28 लाख महिलाओं के नाम काट दिए गए थे। इस पर बवाल मचा तो देश के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने इसे अच्छा संकेत माना। नाम कटने का असर यह हुआ कि अगले चुनावों में महिलाएं अपना नाम लिखाने लगीं।

मद्रास के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एस वेंकटेश्वरन ने 1952 के चुनाव से पहले जनता को अपने संबोधन में महिलाओं से अपील की कि वो मतदान को लेकर किसी तरह का शर्म नहीं करें। उन्होंने कहा, ‘हमारे चुनाव तब तक संतोषपूर्ण नहीं होंगे जब तक कि पुरुष मतदाताओं की तरह ही हमारी महिलाएं बढ़-चढ़कर और बुद्धिमानी से अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करती हैं। एक मतदाता में सामान्य समझदारी होनी चाहिए जो हमारी महिलाओं में पर्याप्त है।’ उन्होंने यह भी ऐलान किया कि ‘गोशा महिला मतदाताओं (जो इस्लामी परंपराओं का सख्ती से पालन करती हैं) की अच्छी-खासी संख्या वाले बूथों पर पूरी तरह से महिला कर्मचारियों को ही तैनात किया जाएगा’ और केवल महिला मतदाताओं को ही वहां वोट डालने की अनुमति होगी।

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