आज हम आपको मुगलों से लेकर वर्तमान तक का राम मंदिर का इतिहास बताने जा रहे हैं! आम तौर पर जहां सेनाएं रहती हैं, उन जगहों को छावनी कहा जाता है, लेकिन प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली और मंदिरों की नगरी अयोध्या इस लिहाज से अलग है। यहां छावनियां हैं, लेकिन इनमें पुलिस या सेना के जवान नहीं बल्कि साधु-संत रहते हैं। ये छावनियां भी अपने आराध्य प्रभु राम की अगवानी को तैयार हैं। 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के रंग में ये छावनियां रंग चुकी हैं और इनमें रोज आरती और पाठ हो रहे हैं। यहां ठहरे हुए साधु संत और भक्त कीर्तन-भजन में लीन हैं और इंतजार कर रहे हैं उस वक्त का जब रामलला की उनके भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी। मणिरामदास की छावनी में भक्तों और साधुओं का आना-जाना लगा हुआ है। सुबह की शुरुआत यहां रामलला को भोग लगाने के बाद भजन कीर्तन से शुरू होती है। दिन भर भजन-कीर्तन का दौर चलता रहता है। बड़ी छावनी में भी ऐसा ही है। यहां के मंदिर में दिया बाती के बाद साधु यहां पाठ शुरू कर देते हैं। भक्त भी इसमें शामिल होते हैं। यह आयोजन दोपहर तक चलता रहता है। शाम को एक बार फिर पूजा-पाठ का दौर शुरू हो जाता है। तपसी छावनी में भी राम नाम का पाठ चल रहा है। लोग रामलला की स्तुति कर रहे हैं। आम तौर पर शांत रहने वाली इन छावनियों में इन दिनों चहल-पहल भी बढ़ी है और भक्तों और संतों की जुटान भी। सुबह से लेकर शाम तक तमाम आयोजन हो रहे हैं। अयोध्या में साधुओं की इन छावनियों का कोई लिखित इतिहास नहीं है। सबसे अलग-अलग दावे हैं कि ये छावनियां कैसे अस्तित्व में आईं और इन्हें छावनी क्यों कहा जाता है। हालांकि, यह एक बात जरूर सभी में समान है कि साधु-संतों का जमावड़ा धर्म की रक्षा और ईश्वर की स्तुति के लिए हुआ था।
अयोध्या में चार प्रमुख छावनियां हैं- तुलसीदास जी की छावनी, बड़ी छावनी, तपसी जी की छावनी और छोटी छावनी। छोटी छावनी को ही अब मणिरामदास छावनी कहा जाता है। बात तुलसीदास जी की छावनी की करें तो यह अब लगभग वीरान रहती है, या कहें कि इसका अस्तित्व अब खत्म सा हो चुका है। वजह बताई जाती है साधु-संतों की कम आवाजाही। तपसी जी की छावनी या तपस्वी जी की छावनी अयोध्या शहर के रामघाट इलाके में है।
भव्य इमारत और इमारत पर की गई कारीगरी यह बोध करा देती है कि इसका इतिहास काफी उजला रहा होगा। छावनी के वर्तमान महंत जगतगुरु परमहंस आचार्य बताते हैं कि त्रेता युग में जब श्रीराम का जन्म हुआ तब देश भर के साधु-संन्यासी उनका दर्शन करने के लिए अयोध्या आ जुटे थे। पहले तो वे पेड़ के नीचे ही रह लेते थे। यह क्रम चलता रहा। बाद में जब मुगलों का समय आया तो यहां रहने वाले साधु उनसे मुकाबिल हो गए। धर्म की रक्षा के लिए किलेबंदी की गई। उनकी सेनाओं को नगर के भीतर प्रवेश करने से रोका गया। वह दावा करते हैं कि अयोध्या में प्राचीनतम पीठ और सबसे सिद्ध पीठ तपसी जी की छावनी है।
इन छावनियों में केवल साधु-संत ही नहीं रहते, बल्कि भक्त भी रहते हैं। हालांकि दोनों के रहने के स्थान बिल्कुल अलग हैं। बड़ी छावनी अयोध्या नगर से दूर एक किनारे पर लगभग तीन एकड़ जमीन पर आबाद है। चारों तरफ बुलंद चहारदीवारी है। आने-जाने के लिए एक ही दरवाजा है। इसके भीतर दाखिल होने पर आपको संतों के इस स्थान को छावनी क्यों कहा जाता है, उसका बोध हो जाता है। मजबूत किलाबंदी यहां दिखाई देती है।
छावनी के बीच में एक मंदिर है, जिसे हजारा मंदिर कहा जाता है और इसी के चारों तरफ छोटे-छोटे कमरे बने हैं। एक तरफ के कमरों में साधु रहते हैं और दूसरी तरफ के कमरों में भक्त। इस व्यवस्था के बारे में यहां रहने वाले संत बताते हैं कि साधुओं की दिनचर्या अलग होती है, जबकि भक्तों की अलग। दोनों की दिनचर्या में कोई व्यवधान न हो, इसलिए यहां ऐसी व्यवस्था की गई है। यहां के लोग बताते हैं कि एक बार हजार-बारह सौ साधु अयोध्या में रुकने के लिए आए। तब इस छावनी के पहले महंत रहे रघुनाथ दासजी महाराज ने उन साधुओं को यहां एक साल तक रहने के लिए जगह दी। हालांकि तब ये रुके तो फिर वापस नहीं गए। साधु आते-जाते रहे, लेकिन यह जगह वैसे ही छावनी में तब्दील रही। माना जाता है कि इसका क्षेत्रफल सभी छावनियों में सबसे बड़ा है। लिहाजा, इसे बड़ी छावनी कहा जाता है।
यूं तो इसे छोटी छावनी कहा जाता है, लेकिन आज के समय में अयोध्या में इस छावनी का कद सबसे बड़ा है। बाकी छावनियों की तुलना में सबसे ज्यादा चहल-पहल भी यहीं रहती है। सीआरपीएफ के जवान सुरक्षा में तैनात रहते हैं। वजह यह है कि इस छावनी के वर्तमान महंत नृत्यगोपालदास श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के अध्यक्ष भी हैं। इस छावनी के बारे में भी यही कहा जाता है कि साधु-संतों का जमावड़ा यहां धर्म की रक्षा के लिए मुगल काल में हुआ था, तब यह अस्तित्व में आई थी।
कहा जाता है कि पहले काफी संख्या में साधु छावनियों में रहते थे, लेकिन अब इनमें उतनी संख्या नहीं है। बावजूद इसके 100-200 साधु-संत हर छावनी में रहते हैं। ज्यादातर अपने ही कमरों में रहकर ध्यान करते हैं। कुछ ही लोग हैं, जिनका निकलना सामान्य तौर पर बाहर होता है। ऐसा भी माना जाता है कि त्रेतायुग में जब श्रीराम वनवास को गए तब भी साधुओं ने नगर के आसपास डेरा डाल लिया था। वह अयोध्या के रक्षक के तौर पर यहां रहा करते थे। वह यहीं रहकर राम भजन में लीन रहते थे और श्रीराम के वापस आने का इंतजार करते रहे।