जानिए मोकामा विधानसभा सीट का दिलचस्प इतिहास!

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बिहार के मोकामा विधायक का इतिहास अपने आप में ही दिलचस्पता रहता है! मोकामा विधानसभा सीट पर 3 नवंबर को उपचुनाव होने हैं। इस सीट का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प है। साल 1967 का विधान सभा चुनाव केवल संयुक्त बिहार के लिए ही नहीं, बल्कि मोकामा विधान सभा के लिए भी स्मरणीय साबित हुआ था। यह वही संयुक्त बिहार था जहां कांग्रेस की सत्ता का सूर्य ढल गया था और राज्य में पहली बार गैर कांग्रेस की सरकार बनी और जन क्रांतिदाल के नेता महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। हालांकि विधायकों की संख्या बल सबसे ज्यादा कांग्रेस के बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की थी। पर कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी से हटाने के लिए समझौता हुआ और मुख्यमंत्री महामाया बाबू बने और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से कर्पूरी ठाकुर उप मुख्यमंत्री बने। मोकामा विधान सभा भी इस परिवर्तन के साथ रहा और यहां से भी कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई थी।

यह बिहार के लिए पहला मौका था जब कांग्रेस को 318 सीट में से सिर्फ 128 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। तब दूसरी बड़ी पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनी और उसे 67 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भारतीय जनसंघ को 26 सीटें, सीपीआई को 24, प्रजा सोशलिस्ट को 18 सीटें मिली थी। इस चुनाव की एक खासियत यह रही कि निर्दलीय भी 33 विधायक जीत कर बिहार विधान सभा के सदस्य बने। 1967 के विधान सभा में चुनाव में मोकामा कुछ कम चर्चा में नहीं रहा। इस चुनाव में एक साथ तीन रेकॉर्ड बने।

1967 के चुनाव में कांग्रेस का बोलबाला था। कांग्रेस इसके पहले तीन बार लगातार चुनाव जीत चुकी थी। प्रथम विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के जगदीश नारायण सिंह चुनाव जीते थे। दूसरी बार भी जगदीश बाबू को जीत हाथ लगी। तीसरी बार कांग्रेस ने नए उम्मीदवार को उतारा। नए उम्मीदवार सरयू नंदन प्रसाद सिन्हा चुनाव जीत गए। सो, कांग्रेस का मनोवल काफी बुलंद था। कांग्रेस को इस चुनाव में यह पता ही नहीं चल पाया कि राज्य में गैर कांग्रेस की हवा वह रही है। इस हवा की पीठ पर सवार होकर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को परास्त कर मोकामा विधान सभा एक नया रेकॉर्ड बनाया। रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल को 17174 मत मिले तो कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को 16137 मतों से ही संतोष करना पड़ा। और यह तब हुआ जब यहां का जातीय समीकरण सवर्ण के पक्षधर माने जाते रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा भूमिहार हैं। इसके बाद ब्राह्मण, कुर्मी, यादव के साथ पासवान का भी वोट हैं। पर ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र के भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत गर एक तरफ वोट कर दिए तो जीत पक्की मानी जाती थी।

इस चुनाव में पहला रेकॉर्ड बना की इस क्षेत्र के लिए यह कांग्रेस की पहली हार थी। दूसरा रेकॉर्ड यह बना कि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया एक मात्र मोकामा सीट ही जीत सकी। तीसरा रेकॉर्ड यह बना की सवर्ण बहुल क्षेत्र के समीकरण को तोड़ते पहली बार कोई पिछड़ी जाति के उम्मीदवार ने जीत का परचम लहराया हो।कांग्रेस को इस चुनाव में यह पता ही नहीं चल पाया कि राज्य में गैर कांग्रेस की हवा वह रही है। इस हवा की पीठ पर सवार होकर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को परास्त कर मोकामा विधान सभा एक नया रेकॉर्ड बनाया। रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल को 17174 मत मिले तो कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को 16137 मतों से ही संतोष करना पड़ा। और यह तब हुआ जब यहां का जातीय समीकरण सवर्ण के पक्षधर माने जाते रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा भूमिहार हैं। इसके बाद ब्राह्मण, कुर्मी, यादव के साथ पासवान का भी वोट हैं। पर ऐसा कहा जाता है कि इस क्षेत्र के भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत गर एक तरफ वोट कर दिए तो जीत पक्की मानी जाती थी। और यह रिकॉर्ड तो आज तक कायम है कि अभी तक मोकामा विधान सभा से केवल भूमिहार उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं। इनकी एक लंबी फेहरिस्त है, जिनमें दो बार जगदीश नारायण सिन्हा, एक बार सरयू नंदन सिन्हा, कामेश्वर प्रसाद सिंह, दो बार कृष्ण शाही, दो बार श्याम सुंदर सिंह धीरज, दो बार दिलीप सिंह, एक बार सूरजभान सिंह और चार बार अनंत सिंह चुनाव जीत कर विधान सभा का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।