आज हम आपको एक ऐसी प्रेम कहानी के बारे में बताएंगे जिसका अंत मर्डर पर हुआ!चार महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रहीं हूं… एक मां के रूप में मैं ऐसा नहीं कर सकती। क्या मैं महीनों तक इसे कोख में रखकर इसकी हत्या कर दूं’…ये शब्द बयां करते हैं एक मां का दर्द। ये शब्द बयां करते हैं एक मां की चाह। इन शब्दों में दिखती है मां की ममता और साथ ही मजबूरी। ये दर्द भरे शब्द उस महिला के हैं जो जीना चाहती थी, जो अपने बच्चे को जन्म देना चाहती थी, जो समाज में अपने बच्चे को पहचान दिलाना चाहती थी लेकिन बन गई सियासत के शातिर खेल का मोहरा। पावर पोलेटिक्स और पैसे की ये कहानी थोड़ी पुरानी है लेकिन सियासत है ही ऐसी चीज़ की अक्सर पुराने किस्से कहानियों को फिर याद दिला ही देती है। चेहरे बदलते हैं, वक्त बदलता है लेकिन राजनीति गलियारों में जुर्म की दास्ता करीब-करीब एक जैसी ही रहती है। नाम चाहे सोनाली फोगाट हो, या फिजा मोहम्मद या फिर मधुमिता, कहानी का दूसरा किरदार अक्सर नेताजी ही होते हैं और इसलिए हम आपके लिए लाए हैं तौबा नेताजी का प्यार नाम की सीरीज। इस सीरीज के दूसरे पार्ट में आज बात होगी मधुमिता और अमरमणि की।
9 मई 2003 की ये तारीख शायद आपको याद न हो लेकिन उत्तरप्रदेश की राजनीति में इस तारीख ने काफी कुछ बदला। इसी तारीख ने उत्तरप्रदेश की उस वक्त की तेज तर्रार कवयित्री मधुमिता की ज़िंदगी उससे छीन ली। इसी तरीख के बाद बदल गया यूपी के बाहुबलि नेता अमरमणि का राजनीतिक जीवन। अमरमणि की ज़िंदगी में इस तारीख ने क्या क्या बदला ये जानने के लिए पहले उस दिन की कड़वी सच्चाई को जानना होगा और समझना होगा सियासत के उस गंदे खेल को जिसने मधुमिता को मौत के घाट उतार दिया। लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी… 24 साल की मधुमिता अपने घर में बैठी थी। तभी डोरबेल बजती है। दो शूटर संतोष राय और प्रकाश पांडे अंदर आते हैं और मधुमिता से मिलते हैं। उसके बाद तीनों कमरे में चले जाते हैं, मधुमिता के हाउस हेल्प देशराज किचन में जाकर अपना काम करने लगते हैं। अभी थोड़ा ही वक्त बीता होता है कि घर में गोली चलने की आवाज़ गूंजती है। देशराज किचन से दौड़कर मधुमिता के कमरे की तरफ बढ़ते हैं ।कमरे में पहुंचकर देशराज के होश उड़ जाते हैं। मधुमिता अपने बेड पर खून से लथपथ पड़ी होती हैं। शूटर संतोष राय और प्रकाश पांडे घर से भाग चुके होते हैं।
मधुमिता के घर पर ही उनको गोलियों से छलनी कर दिया जाता है, महज 24 साल में मधुमिता की हत्या हो जाती है। मधुमिता की हत्या की खबर हर तरफ फैलती है। अखबार, टेलिविज़न,हर तरफ सुर्खियों में मधुमिता हत्याकांड होता है। मधुमिता वैसे तो पहले ही काफी नाम और शौहरत कमा चुकी थी। कवि सम्मेलनों से लेकर राजनीतिक गलियारों में मधुमिता के चर्चे पहले ही काफी थे लेकिन उनकी हत्या ने मधुमिता नाम घर-घर तक पहुंचा दिया। उत्तप्रदेश की कवियत्रि की हत्या का मामला उन दिनों सबकी जुंबा पर था। इस मर्डर केस के साथ एक और नाम सामने आया और वो था पूर्वांचल के कदावर नेता अमरमणि त्रिपाठी का। मधुमिता की हत्या के बाद जांच शुरू हुई तो उसकी कड़ियां उत्तरप्रदेश के बाहुबलि नेता अमरमणि तक जां पहुंचीं। एक ऐसा सुराग मिला जिसने उत्तरप्रदेश के 6 बार के विधायक,इस बेहद पावरफुल नेता का पूरा राजनीतिक जीवन ही खत्म कर दिया और उसे पहुंचा दिया जेल की काल कोठरियों तक।
मधुमिता की मौत के बाद कई नए सच सामने आए। तब तक जो लोग मधुमिता को नहीं भी जानते थे उनकी मौत के बाद वो भी उन्हें पहचानने लगे और जो लोग उन्हें जानते थे उनके लिए भी कई चौकाने वाले नए तथ्य सामने आए। यानी हैरान सभी थे। इन चौकाने वाले तथ्यों में सबसे बड़ा था ये खुलासा कि मधुमिता हत्या के वक्त प्रेगनेंट थी। जब उनकी हत्या हुई तो उनकी कोख में 7 माह का बच्चा पल रहा था। इस खबर को जिसने सुना वो हैरान हुए बिना नहीं रह पाया, क्योंकि तब तक ये बात नहीं पता था कि मधुमिता की कोख में किसका बच्चा था। मधुमिता शादीशुदा नहीं थीं तो फिर ये बच्चा किसका था। इस खबर के बाद कई तरह के कयास लगाए जाने लगे। मधुमिता हत्या कांड उस वक्त का सबसे चर्चित केस बन गया। मधुमिता का नाम पहले कई लोगों से जुड़ चुका था लेकिन इन सब में जिसका नाम सबसे आगे था वो था अमरमणि त्रिपाठी।
पुलिस को मधुमिता के घर से एक खत बरामद हुआ। ये वो खत था जो कुछ समय पहले खुद मधुमिता ने लिखा था। इसपर कोई तारीख नहीं लिखी थी लेकिन ये साफ था कि ये हत्या के चंद दिन पहले ही लिखा गया है। इस खत के आधार पर ही जांच आगे बढ़ी। इस खत में लिखा था। “चार महीने से मैं मां बनने का सपना देखती रहीं हूं। तुम इसे स्वीकार करने से इनकार कर सकते हो लेकिन एक मां के रूप में मैं ऐसा नहीं कर सकती’। क्या मैं महीनों तक इसे कोख में रखने के बाद इसकी हत्या कर दूं? क्या तुम्हें मेरे दर्द का अंदाज़ा नहीं है, तुमने मुझे बस एक उपभोग की वस्तु समझा है” इस खत के बाद कई चीज़े साफ होने लगी। पुलिस केस का करीब पहुंच गई थी। बच्चे के डीएनए के बाद ये पता चला कि ये बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का है।
जैसे ही मधुमिता की कोख में अमरमणि का बच्चा होने की बात सामने आई उत्तर प्रदेश के राजनीतिक जगत में सनसनी फैल गई। अमरमणि पर मधुमिता की हत्या के आरोप लगे। आरोपों के घेरे में अमरमणि की पत्नी मधुमणि भी आई। देशराज के बयान के आधार पर मधुमिता की हत्या की साजिश के आरोप दो शूटर प्रकाश पांडे और संतोष राय पर भी लगे। अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी पर हत्या की साजिश का केस दर्ज हुआ। मधुमिता के परिवार और समाजवादी पार्टी के विरोध के चलते इस केस की जांच सीबीआई को सौप दी गई। एक के बाद एक सबूत मिलते गए और करीब छह महीने बाद ही देहरादून की एक अदालत ने पांचों आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई। अमरमणि ने निचली अदालत के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर की लेकिन हाइकोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा।
मधुमिता की मौत के बाद अमरमणि और उसकी पत्नी मधुमणि जेल में ही सजा काट रहे हैं। 2007 में जेल से ही एक बार फिर अमरमणि ने चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की लेकिन बाद में हाइकोर्ट ने जब अमरमणि की सजा को बरकरार रखा तो अमरमणि को वो सीट छोड़नी पड़ी। इस पूरे मामले के बाद धीरे धीरे अमरमणि का राजनैतिक दबदबा खत्म होने लगा। हालांकि अमरमणि ने अपने बेटे को जरूर नौतनवां सीट से चुनाव लड़वाकर वहां का विधायक बना डाला। मधुमिता की हत्या हुई, अमरमणि का राजनीतिक करियर खत्म हुआ लेकिन ये सियासत की जुर्म की ये कहानी इसके बावजूद भी आगे बढ़ती गई। अमरमणि की तरह ही उसके बेटे अमनमणि पर भी हत्या का आरोप लगा। अमनमणि पर अपनी पत्नी के ही कत्ल के आरोप थे।