आज हम आपको अजीत डोभाल के रहस्यमई राज बताने जा रहे हैं! अजीत डोभाल देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। बतौर जासूस डोभाल का शानदार करियर रहा है। 30 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के साथ ही डोभाल का रिटायरमेंट खत्म करा दिया। 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे डोभाल ने इंटेलिजेंस ब्यूरो में रहते हुए पाकिस्तान जाकर जासूसी की, वह भी सात साल तक। पूर्वोत्तर के ऐंटी-इंसर्जेंसी ऑपरेशंस हों या खालिस्तानी उग्रवादियों से जूझता पंजाब, डोभाल पिछले चार-पांच दशक की अहम घटनाओं के गवाह रहे हैं। इतने साल तक जासूस रहे डोभाल की जासूसी करने की कोशिशें कई बार हुईं। डोभाल इस बात को लेकर हमेशा अलर्ट रहे। उनसे मिलने आने वालों को एक बात हैरान करती थी। वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा 1991 का एक किस्सा सुनाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या को कुछ दिन ही हुए थे। उस वक्त डोभाल आईबी में डेप्युटी डायरेक्टर थे। लुटियंस दिल्ली में उनका ऑफिस था। शर्मा भीतर दाखिल हुए तो पूरे कमरे का जायजा लेने लगे। तभी डोभाल ने एक सवाल दाग दिया। शर्मा और डोभाल के बीच में बड़ी सी मेज थी। डोभाल ने पूछा, ‘क्या आपको इस कमरे में कुछ अजीब लग रहा है?’ शर्मा थोड़े हैरान हुए, फिर बोले, ‘नहीं तो।’ फिर डोभाल ने सिगार निकाला और वो राज बताया। उन्होंने कहा, ‘आपने नोटिस किया इस कमरे में कोई तार नहीं है?’ डोभाल ने आगे कहा, ‘तार से चिंता होती है, हमारे दुश्मन बड़ी आसानी से हमारी बात सुन सकते हैं। तार के बिना वो कुछ नहीं कर सकते। इसलिए इस कमरे में एक भी तार नहीं है।’
आज डोभाल की यह बात अजीब लग सकती है लेकिन उस दौर की सोचिए। दूरदर्शन एकमात्र टीवी चैनल था। फोन कनेक्शन होना भी स्टेटस सिंबल माना जाता है। आज तकनीक काफी आगे बढ़ चुकी है मगर डोभाल की अलर्टनेस में कमी नहीं आई है। डोभाल रूप बदलने में माहिर हैं। सालों तक पाकिस्तान में रहकर उसके नापाक मंसूबों की खबर देते रहे। कहुता न्यूक्लियर प्लांट के बारे में डोभाल रियल-टाइम इंटेजिलेंस मुहैया करा रहे थे। वह सोचते भी शातिर तरीके से हैं और काम का अंदाज भी शातिराना है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो या इराक में फंसी नर्सों को बाहर निकालने का मिशन, डोभाल ने आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग से मुश्किलें सुलझाई हैं।
भारत के Spy Master अजीत डोभाल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कैसे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1988 में ऐसी स्थिति बनने लगी थी कि आतंकी वारदात करके स्वर्ण मंदिर में चले जाते थे। आतंकियों को भरोसा हो गया था कि इतना जबर्दस्त रिएक्शन हुआ है कि अब भारत सरकार किसी ऑपरेशन के बारे में सोच भी नहीं सकती है। सालों तक पाकिस्तान में रहकर उसके नापाक मंसूबों की खबर देते रहे। कहुता न्यूक्लियर प्लांट के बारे में डोभाल रियल-टाइम इंटेजिलेंस मुहैया करा रहे थे। वह सोचते भी शातिर तरीके से हैं और काम का अंदाज भी शातिराना है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो या इराक में फंसी नर्सों को बाहर निकालने का मिशन, डोभाल ने आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग से मुश्किलें सुलझाई हैं।बिना गोली चलाए या खून बहाए आतंकियों से निपटना था। इसके बाद कैसे आतंकियों का हितैषी बनकर उग्रवादी की वेशभूषा में डोभाल अंदर घुसे और उनका सरेंडर कराया, वह अपने आप में मिसाल और जासूसी का उत्कृष्ट उदाहरण है।
वायरल हो रहा वीडियो EPIC चैनल को दिए इंटरव्यू का एक हिस्सा है। इसमें डोभाल से पूछा गया कि क्या उन्हें डर लगता है? भारत के बॉन्ड कहते हैं कि खतरा सभी को लगता है। इसकी एक टाइमिंग है। कुछ लोगों को घटना से पहले लगता है। कुछ लोगों को घटना के वक्त लगता है और कुछ को घटना के बाद लगता है। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘मैं थर्ड कैटगरी वाला आदमी हूं।सालों तक पाकिस्तान में रहकर उसके नापाक मंसूबों की खबर देते रहे। कहुता न्यूक्लियर प्लांट के बारे में डोभाल रियल-टाइम इंटेजिलेंस मुहैया करा रहे थे। वह सोचते भी शातिर तरीके से हैं और काम का अंदाज भी शातिराना है। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हो या इराक में फंसी नर्सों को बाहर निकालने का मिशन, डोभाल ने आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग से मुश्किलें सुलझाई हैं। घटना से पहले मेरा दिमाग शायद उस बात पर नहीं रहता है कि इसमें मेरे लिए डेंजर कितना है। जब हो रही होती है तो सारा माइंड फोकस्ड रहता है कि आप कर क्या रहे हैं। जब सब कुछ हो जाता है। आप घर आ जाते हैं। सिगरेट पीने लगते हैं फिर लगता है यार क्या हो सकता था।’ यह कहकर डोभाल ठहाका लगाकर हंस पड़ते हैं।